अतीत की परछाईं
अतीत की परछाईं
मेरी दीदी जब भी मुंबई से घर आतीं तो उनके ढाट-बाट देख कर मैं हमेशा कहती-दीदी मैं भी बड़े होकर आप जैसी ही बनूंगी।
नहीं, नहीं, मेरी गुड़िया तू मेरे जैसी नहीं बनेगी और मुझे अपने सीने से चिपकाकर समझाते हुये कहतीं-तू तो पढ़ लिख कर यहीं कोई अच्छी सी सरकारी नौकरी कर लेना। मैं प्राइवेट नौकरी करती हूँ ना इसमें कोई इज़्ज़त नहीं है। यह कहते हुये अक्सर उनकी आँखों में आँसू आ जाते थे। मैं समझ नहीं पाती कि इतनी अच्छी नौकरी है सब सुख सुविधा है पैसा है और क्या चाहिये?
कभी कभी सोचती शायद दीदी नहीं चाहतीं कि मैं भी उनकी तरह तरक्की करूँ इसीलिए ऐसी बातें करतीं हैं। यह सोचकर उनसे नफरत सी होने लगती थी
धीरे धीरे दिन गुजरते गए और मैं आईपीएस की परीक्षा पास करके पुलिस अधिकारी बन मुंबई में ही आ गई। दीदी ने कभी अपने घर का पता नहीं दिया था इसीलिए मैंने भी उनको बताना जरूरी नहीं समझा।
एक दिन जब मैं डांस बार में। रेड डालने गयी तो वहाँ पर दीदी को देख कर उनके आँसुओं का राज समझ में आ गया साथ ही यह भी समझ में आ गया कि मुझे अपने पास ना बुलाने के पीछे क्या राज था। दीदी मुझे यूँ अचानक अपने सामने देखकर शर्म से गड़ गई और मेरी पिस्तौल छीन कर अपने आप को खत्म करने की कोशिश की किंतु मेरी तत्परता के कारण वो ऐसा नहीं कर पाईं। वहां से किसी तरह उनको निकाल कर अपने साथ ले आई। मैंने
उनको बहुत समझाया कि आत्महत्या करना पाप है कायरता है। तो वो बोली-हां,हां मैं पापी हूं मैं कायर हूँ तू जो समझे मैं हूँ पर अब मुझे जिंदा नहीं रहना है। सब कुछ ठीक हो जाएगा दीदी! मैं अपना ट्रांसफर किसी ऐसे शहर में करवा लूंगी जहां हमें कोई नहीं जानता हो। फिर हम दोनों साथ में रहेंगे आप मेरे साथ चलो। नहीं मेरी गुड़िया, तू यहाँ से चली जा और किसी को भी यह नहीं बताना कि तू मेरी बहन है वरना लोग तेरा भी जीना हराम कर देंगे। मेरी अतीत की परछाईं तुझे भी इज़्ज़त से जीने नहीं देगी। पर मैं उनको समझा-बुझाकर अपने साथ ले आई सब कुछ शांतिपूर्वक चल रहा था पिछला हम सब कुछ भुला चुके थे, बड़े भाई की शादी हो गयी थी तथा छोटे भाई की शादी की तैयारियाँ चल रहीं थीं। डांस का प्रोग्राम चल रहा था लड़की के परिवार वाले भी वहां पर उपस्थित थे।
लड़की के चाचा दीदी को देख कर बोले-अरे वाह! यहां तो बार गर्ल को भी बुलाया गया है। पर इस बूढ़ी को क्यूँ बुलाया? कोई कमसिन काया को बुलाते तो मज़ा आ जाता। चलो कोई बात नहीं सुना है पुरानी शराब और शबाब में बहुत नशा होता है आज आजमा भी लेते हैं। ऐसा कहते हुये वो दीदी के पास जाकर बैठ गए जब दीदी ने पीछे हटना चाहा तो बोले-इतना क्या नखरा कर रही है? इस उम्र में भी तुझे पूछ रहा हूँ एहसान मान मेरा वरना मुझे तेरे जैसी लड़कियों की कोई कमी नहीं है। अब चुपचाप चल कर मेरे साथ डांस कर। उनकी बात पूरी भी नहीं हो पाई थी कि एक ज़ोरदार थप्पड़ मैंने उनके गाल पर जड़ दिया। रुक जा अभी तुझे मज़ा चखाता हूँ ऐसा बोल कर वो डांस फ्लोर पर गए और माइक हाथ में ले कर ज़ोर ज़ोर से बोलने लगे-"सुनो भाइयों जिस घर में बार गर्ल को भी बुलाया जाता हो उस घर में मैं अपनी भतीजी की शादी हरगिज नहीं करूंगा।" इससे पहले किसी को कुछ समझ में आता मैंने पूछा -"अंकल आपको कैसे जानते हैं कि ये बार गर्ल है?"
अरे! इसे कौन नहीं जानता जब मैं मुंबई में था तो कितनी ही दफा इसके बार में जाकर इस पर हजारों लाखों रुपए लूटा चुका हूं।
तभी मेरा छोटा भाई बीच में आकर बोला- "अंकल तमीज से बात करो वो दीदी है मेरी। मैं पूछता हूँ अगर दीदी बार में डांस करती थी तो आप वहां क्या करने जाते थे। मेरी दीदी की मजबूरी थी पापा को कैंसर हो गया था और मम्मी ज्यादा पढ़ी लिखी नहीं थीं पापा की दवाइयों का ख़र्चा,चार बच्चे उनके खाने पीने का प्रबंध कैसे हो, इसी मौके का फायदा उठाकर शर्मा अंकल ने नौकरी दिलाने के बहाने दीदी को डांस बार में पहुंचा दिया। पर आपकी ऐसी कौन सी मजबूरी थी जो आप बार में जाकर सैकड़ों हजारों रुपए पानी की तरह बहाते रहे और अपनी पत्नी को धोखा देते रहे।"
तभी घर की नौकरानी ने आकर हांफते हुए बोला-"साहब जल्दी चलो दीदी ने अपने कमरे का दरवाज़ा अंदर से बंद कर लिया है। सब लोग दीदी के कमरे की तरफ भागे दरवाज़ा खुलवाने की बहुत कोशिश की किंतु बाद में दरवाज़ा तोड़ दिया गया।
अंदर देखा तो दीदी ने पंखे से लटककर आत्महत्या कर ली थी वहीं सामने टेबल पर एक कागज़ रखा था उस पर लिखा था-
मेरी गुड़िया मैंने तुझसे कहा था ना कि मेरी अतीत की परछाईं मेरा पीछा नहीं छोड़ेगी इस दलदल में जो फँस जाता है वो फिर कभी इससे बाहर नहीं निकल पाता अतीत की परछाईं उसका पीछा नहीं छोड़ती है। मैं अपने भाई बहन की बेइज्जती बर्दाश्त नहीं कर सकती इसीलिए जा रही हूँ। मेरी गुड़िया मुझे माफ़ कर देना।
