स्मृतियां
स्मृतियां
"'बंद करो यह नाच गाना " घुंघरुओं की आवाज मुझे बिल्कुल पसंद नहीं है यदि मेरे घर में रहना है तो ये गाना बजाना छोड़ना होगा।' सुनंदा देवी ने दहाड़ते हुए अपनी बहू नीलम से कहा।
उनका ऐसा रौद्र रूप देखकर उनकी 5 वर्षीय पोती वैशाली अपनी मां के पीछे छुप गई। 'पर माँ मैं तो अपनी बेटी को भरतनाट्यम सिखा रही थी कोई चलताऊ नृत्य नहीं...' पर नीलम की बात पूरे होने से पहले ही सुनंदा देवी ने कहा - "कत्थक हो, भरतनाट्यम हो या फिल्मी नृत्य, मेरे घर में यह सब नहीं होगा और अगर यही सब अपनी बेटी को सिखाना है तो अपना रहने का इंतजाम कहीं और कर लो।
आज शाम को राजेश से बात करती हूं। शाम को राजेश घर पर आया तो वैशाली दौड़ कर अपने के पास पहुंची और बोली- पापा! पापा ! आज दादी ने मां को बहुत डांटा, कहा अगर अपनी बेटी को डांस सिखाना है तो अपने रहने का इंतजाम कहीं और कर लो।
पर पापा आपने तो कहा था कि मैं डांस सीख सकती हूं ? फिर दादी ने मम्मी को क्यों डांटा?
कोई बात नहीं बेटा! शायद दादी का मूड ठीक नहीं होगा इसीलिए उन्होंने ऐसा बोला होगा। तुम प्रैक्टिस करती रहो ,मैं तुम्हारी दादी से बात करूंगा। वह मना नहीं करेंगी। तुम अपने स्कूल के सालाना फंक्शन में जरूर डांस करोगी।
परंतु राजेश सोचने लगा कि आखिर ऐसी क्या बात है ? माँ ने नीलम को क्यों डांटा। एक-दो दिन के पश्चात राजेश ने अपनी मां को खुश देखकर वैशाली के डांस सीखने की बात पुनः छेड़ी।
नृत्य की बात सुनकर नंदा देवी फिर से भड़क उठीं। रमेश समझ नहीं पा रहा था। ऐसी क्या बात है जो मां के नाम से इतनी नफरत करती है ? एक दिन जब वैशाली और उसकी मां घर पर नहीं थे तो राजेश ने अपनी कसम दिलाकर मां से पूछा - "माँ आखिर ऐसी क्या बात है जो तुम नृत्य से इतनी नफरत करती हो?" तो उन्होंने कहा -बेटा जब मैं तेरह, चौदह साल की थी तो मेरे ऊपर भी कत्थक सीखने का भूत सवार था। अपनी माँ से पूछा तो उन्होंने सहर्ष अनुमति दे दी। फिर क्या था? मेरे सपने उड़ान भरने लगे और एक के बाद एक प्रतियोगिता जीतती गई। पहले अपने शहर, फिर प्रदेश उसके पश्चात देश और एक दिन विदेश में प्रोग्राम करने का अवसर मिला। मैं उस दिन बहुत खुश थी। घर में सभी लोग खुश थे ।पर मेरी मम्मी ने कहा- मैं तुमको सिंगापुर अकेले नहीं भेजूंगी। मैं भी साथ में चलूंगी ।मैं अपने साथियों, गुरुजी तथा मम्मी के साथ सिंगापुर गई। वहां का अनुभव बहुत शानदार था
गुरुजी ने अपने व्यवहार से मम्मी का दिल जीत लिया था उसके पश्चात तो विदेश में प्रोग्राम करने का सिलसिला आरंभ हो गया। धीरे धीरे घर के सभी लोग गुरुजी पर आंख बंद करके भरोसा करने लगे। दुबई फेस्टिवल में मैं अपने पूरे ग्रुप के साथ वहां गई। मम्मी किसी रिश्तेदारी में शादी होने की वजह से मेरे साथ नहीं गई थीं।
वैसे भी गुरुजी हैं ना ! तो फिर किस बात की चिंता? ऐसा बोलकर मम्मी ने मुझे दुबई भेज दिया।
प्रोग्राम तो बहुत ही उम्दा था किंतु प्रोग्राम के पश्चात गुरुजी ने मुझसे कहा- तुम्हारे वीजा में कुछ प्रॉब्लम आ गई है इसलिए तुम हम लोग के साथ इंडिया वापस नहीं आ सकती हो। लेकिन तुम चिंता मत करो बेटी, यहां मेरे दोस्त का घर है तुम उसके साथ रुक जाना। उसकी पूरी फैमिली यहां पर रहती है तुम्हें कोई दिक्कत नहीं होगी। आठ दिन के पश्चात दूसरे प्रोग्राम के लिए जब मैं आऊंगा तब तक वीजा की प्रॉब्लम भी सॉल्व करवा लूंगा। तब मेरे साथ तुम वापस चली चलना।
अविश्वास करने का तो कोई कारण ही नहीं था इसीलिए मैं वहां रुक गई ।और यही मेरी जिंदगी की सबसे बड़ी भूल साबित हुई ।गुरुजी सुबह-सुबह मुझे अपने साथ लेकर अपने दोस्त के घर गए और मेरा परिचय करवा कर वहां से चले गए। आठ दिन तक मैं गुरु जी का इंतजार करती रही। वह लोग भी निहायत शराफत से पेश आ रहे थे।
आठ दिन के पश्चात जब गुरुजी वहां पर नहीं पहुंचे तो उन लोगों ने बताया कि अब वह कभी वापस नहीं आएंगे उन्होंने तुम्हें मुझे बेच दिया है। आज से तुम्हारे ऊपर मेरा अधिकार है अब से जितने भी प्रोग्राम होंगे उनसे जो कुछ भी मिलेगा वह सब तथा उसके अलावा और जो कुछ भी मैं बोलूंगा तुमको करना होगा। आखिरकार ऊंचे दाम देकर मैंने तुमको खरीदा है। इतना कहकर उस शेख ने गुरुजी और उसके एग्रीमेंट के कागज उसको दिखाये। यह देख सुनकर मेरे पैरों तले जमीन खिसक गई। क्या करूं ? क्या ना करूं? कुछ समझ में नहीं आ रहा था। उसके और उसके दोस्तों के लिए नाचने गाने का काम करने लगी। बेटा उसके आगे का मत पूछो, मैं तुमको बता नहीं पाऊंगी। किसी तरह दो तीन साल बीतने पर तुम्हारे पिताजी की सहायता से मैं भारत आई और इस शहर में रहने लगी।
तुम्हारे पिताजी भी वहां पर गाना सुनने आने वालों में से एक थे परंतु पता नहीं कैसे उन्होंने मेरी मजबूरी समझ ली और मुझसे कहा - जैसा जैसा यह लोग बोल रहे हैं वैसा करती जाओ। मैं कोशिश करूंगा कि तुमको यहां से निकालकर भारत पहुंचा दूँ। उनकी कोशिश और रोज-रोज का मिलने से धीरे-धीरे मेरे मन में उनके लिए और उनके मन में मेरे लिए सहानुभूति पनपने लगी। एक दिन मौका पाकर हम लोग वहां से भाग निकले। एक दिन शेख के किसी आदमी को पता चल गया कि हम लोग यहां पर रह रहे हैं तो उसने अपनी गाड़ी से हम लोगों का एक्सीडेंट करवा दिया। तुम्हारे पिताजी तो घटनास्थल पर ही साथ छोड़ कर चले गए। मैं अभागी जिंदा बच गई। मां की बातें सुनकर राजेश चुपचाप वहां से उठकर चला आया।
मां से गुरुजी का जो नाम और पता उसने सुना था उससे वह गुरुजी पर नजर रखने लगा पुलिस के सहयोग से राजेश ने गुरु जी के काले कारनामों का पर्दाफाश कर दिया। आज गुरुजी जेल में है और राजेश की मां को थोड़ा सा सुकून मिल गया।
एक दिन सुनंदा देवी राजेश के कमरे में आईं और उससे बोलीं- बेटा यदि मेरे लिए इतना कुछ कर सकता है तो मैं तेरे और तेरी बेटी की खुशी के लिए उसको नृत्य सीखने की अनुमति क्यों नहीं दे सकती ? जाओ बेटा ! अपनी बच्ची का दिल मत तोड़ो. बहू को बोलो कि वह वैशाली को डांस सिखाएं और स्कूल के सालाना फंक्शन के लिए उसको तैयार करे।
मैं माँ की तरफ भौचक्का सा देखता रह गया। उन्होंने प्यार से मेरे सर पर हाथ फेरा और अपने कमरे की ओर चली गई।
