STORYMIRROR

Manoj Kumar Meena

Romance

4  

Manoj Kumar Meena

Romance

मैं और तुम भाग 2

मैं और तुम भाग 2

15 mins
265


‘भूतकाल,

एक पल को तो ऐसा लगा जैसे मुझे सब मिल गया हो, मगर अगले ही पल समीक्षा मेरी बाहो से हवा में ऐसे घुल गई जैसे की वो वहा थी ही नहीं, सिर्फ मेरा ख्वाब था, मगर उसकी मौजूदगी का एहसास मुझे हर पल हो रहा था!

 मैं अपने आंसू पोछकर कुछ पल वहां ठहरा, और घर को चल दिया!

अचानक बारिश होने लगी,

 बारिश की बूंदे मेरे चेहरे पर गिर रही थी, अचानक सामने से एक ट्रक आया और मैं खुदको संभालता उससे पहले उससे टकरा गया!

 मेरी आंखों के सामने अंधेरा छा गया ऐसा लग रहा था मानो मैं किसी खुली जगह पर हूं और दूर-दूर तक सिर्फ अंधेरा ही अंधेरा है, और जब मेरी आंख खुली तो मैंने खुदको अस्पताल में पाया, और मेरे बगल में समीक्षा बैठी हुई थी, जो भीगी पलकें लिए मुझे निहार रही थी, उसके आंसू ऐसे लग रहे थे जैसे पत्तों पर ओस की बूंदे, मैं उसे देख पा रहा था मगर ना ही कुछ बोल पा रहा था और ना ही हिल पा रहा था, मानो जैसे बर्फ की तरह जम चुका हूं, तभी डॉक्टर और समीक्षा चीख-चीख कर डॉक्टर से पूछने लगी आखिर मानव को हुआ क्या है, आखिरी वो कुछ बोल क्यों नहीं रहा, और डॉक्टर ने उसे ऐसे नजरअंदाज किया जैसे की वो वहां पर है ही नहीं, वैसे भी वो वहां पर होकर भी नहीं थी, वो तो सिर्फ एक रूह थी, जिसे मैं देख सकता था, मैं महसूस कर सकता था!

डॉक्टर ने मुझे इंजेक्शन लगाया और उसके बाद मैं फिर से गहरी नींद में चला गया!

और जब दोबारा मेरी आंख खुली तो मेरे ऑफिस के सभी सहकर्मी वहां पर मौजूद थे, उन्होंने मुझे बताया कि मेरा एक्सीडेंट हुआ था, किसी ने मेरे फ़ोन से उन्हें ये सब बताया!


वो सभी अस्पताल से मुझे घर पर छोड़ कर गए, और कुछ दिन तक आराम करने के लिए कहा!

मैं बिस्तर में लेटे-लेटे समीक्षा के बारे में ही सोच रहा था, की समीक्षा मेरे सामने आ ख़डी हुई, और चलकर मेरे पास आई और धीरे से बोली…

मानव...... क्या तुम मेरी कहानी लिखोगे? तुम एक बेहतरीन लेखक हो लोग पड़ते है तुम्हारी किताबें…

क्या तुम मेरी कहानी उन तक पहोचाओगे? बस यही मेरी आखरी ख्वाहिश है, शायद यही मेरी रूह को शांति पहोचा सके और में चेन से मर सकूँ!

मैं अपने बिस्तर से उठा और समीक्षा का हाथ थामकर बोला,

बिलकुल! मैं तुम्हारी कहानी जरूर लिखूंगा और उसे लोगो तक पहोचाऊंगा, तुम बताओ मुझे तुम्हारे और समीर के बारे में!समाक्षी ने नम आँखो से कहा, मैं नहीं!

तुम समीर के पास जाओ और उसे बताओ सारी बाते और ये भी की मैं हमेशा उसके साथ ही थी और अब भी उसके पास ही हु, भले ही वो मुझे ना देख सके मगर मैं हमेशा उसे देखती हु, और अब भी उससे उतनी ही मोहब्बत करती हु जितनी की पहले करती थी! पर अभी तुम आराम करो फिलहाल तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं और हो सके तो मुझे माफ़ करना, मैं कितनी मतलबी हु ना!

ऐसी हालत में भी सिर्फ अपने बारे में ही सोच रही हु!

तुमने सुबह से कुछ खाया भी नहीं है, मगर मैं क्या करू मैं कुछ कर भी तो नहीं सकती तुम्हारे लिए,

 तुम सबसे पहले अपने लिए खाना मंगवावो और खाना खाकर आराम करो, मैं यही तुम्हारे पास ही हु, तुम जब भी मुझे याद करोगे तो मैं जरूर आउंगी!

बस इतना कहकर वो फिर से मेरी आँखो के सामने से ओझल हो गई!

मैंने खाना ऑडर किया और थोड़ी ही देर में खाना आगया, मैं खाना खाकर सो गया, पर उस वक़्त भी में समाक्षी के बारे में ही सोच रहा था!


10, जनवरी, बुदवार, सुबह 07:00 बजे,

मेरी आँख खुली, और मैं थोड़ा बेहतर महसूस कर रहा था, मैं बिस्तर से उठा और नाश्ता बनाया और नाश्ता खाकर तैयार हुआ, समीक्षा के घर जाने के लिए, दरवाजा लॉक किया और चाबी को पायदान के निचे रख दिया, मैंने उसी नंबर पर फ़ोन किया जिस नंबर पर आखरी बार मेरी समीर से बात हुई थी, और उससे उसके घर का पता पूछा ये कहते हुए की मुझे समीक्षा के बारे में कुछ बात करनी है उससे, बस फिर बाइक स्टार्ट करी और चल दिया, एक नये सफर और नई कहानी की तलाश में,

 कुछ दूर पहोचा ही था तभी मुझे एहसास हुआ की समीक्षा मेरे साथ ही है, धीमी सी आवाज़ में मेरे कान में बोली,

आज मौसम कितना सुहाना है ना, तुम्हे पता है जब मैं और समीर पहली बार मिले थे तो बिलकुल ऐसा ही मौसम था, उस दिन क्या लग रहा था वो, बिलकुल ऐसे जैसे सिर्फ ऊपरवाले ने उसे मेरे लिए ही भेजा हो!

अभी तुम समीर से मिलोगे ना तो उसे बताना जरूर की मैं अब भी उसके पास ही हु!


‘वर्तमान'

वो बोले जा रही थी, और मैं उसकी मीठी सी आवाज़ को सुनता जा रहा था, दिल चाहता था की काश ये पल ऐसे ही थम जाये और वो मुझसे दूर ना जाये, कही बैठकर उसे निहारता राहु सर्फ़ निहारता राहु, मगर वो कहते है ना की वक़्त कभी थमता नहीं है बस उस दिन भी वैसा ही हुआ!


"की खुदा से मांगू थोड़ी मोहलत और, तेरे साथ ये पल बिताने की, तेरा हाथ थामकर तेरे साथ चलने की और तेरा साथ निभाने की"


‘भूतकाल’

 मैं समीर के घर पहुंचा, और दरवाजा खटखटाया, समीक्षा मेरे साथ ही थी, समीर ने दरवाजा खोला, और मुझे अंदर बुलाया, समीर ने आँखो में आसूं लिए मुझसे पूछा,

 तुम्हें साक्षी के बारे में बात करनी थी ना, बोलो!

 मैंने गहरी सांस ली और समीर को समीक्षा के बारे में सब बताया, बीते कुछ दिनों में जो भी मेरे साथ हुआ, जो भी चल रहा था मेरी जिंदगी में, समीक्षा का आना, मुझसे बातें करना, और उसका ख्वाब!

 समीर को मेरी बातें सुनकर बहोत अजीब सा लगा, वो मेरी बातों पर विश्वास नहीं कर पा रहा था!

 विश्वास करता भी तो आखिर कैसे, क्योंकि कुछ वक्त पहले तो मुझे भी अपनी आंखों देखि पर विश्वास नहीं हो रहा था!

 वो उठा और चलकर अलमारी के पास गया और अलमारी के पास जाकर खड़ा हो गया, कुछ पल तक तो उसके हाथ कांपते रहे, और कांपते हाथो से उसने अलमारी खोली और मुझे दिखाते हुए बोला,

ये देखो, ये यादें है हमारी, हमने जितने पल साथ बिताए जितने पल दूर रहे, वो सब आज इस अलमारी के अंदर बंद है, मेरी हिम्मत भी नहीं होती इसे खोल कर देखने की, क्योंकि डर लगता है कहीं मैं खुद को संभाल नहीं पाया तो,

अगर जो तुम बोल रहे हो वो सब सच है तो मैं उसे क्यों नहीं देख पा रहा, मैं तो उससे मोहब्बत करता था ना, फिर क्यों चली गई वो मुझे छोड़कर!

 मानव जैसे वह खुद को संभालना ना पाया हो, और बेसहारा सा होकर फर्श पर घुटनों के बल गिर गया, और रोते हुए मुझसे पूछा!

 क्या वो यही मेरे साथ हैं? क्या अब भी मुझे देख सकती है वो?

अगर हाँ तो मैं क्यूँ नहीं?


‘वर्तमान'

 सवाल मेरे और समीर के मन में बहोत सारे थे, मगर वो कहते हैं ना, कि कुछ सवालों के जवाब कभी मिलते नहीं!


‘भूतकाल"

 समीक्षा मेरे साथ में ही बैठी हुई थी, और समीर को रोता देख उसकी भी आंखें नम हो गई, तभी मैं उठा और समीर को संभालते हुए कहा!

 मुझे नहीं पता क्यों तुम उसे नहीं देख सकते आखिर क्यों नहीं सुन सकते तुम उसकी आवाज, मगर हां एक बात बता सकता हूं, कि वो आज भी तुम्हें उतनी ही मोहब्बत करती है जितनी पहले करती थी, हर पल तड़पती तुम्हारे लिए, उसकी एक ही तो आखिरी ख्वाहिश है, क्या वो ख्वाहिश तुम उसके खातिर पूरी नहीं कर सकते, तड़पती है उसकी रूम हर पल हर लम्हा, शायद ये ख्वाहिश ही उसको सुकून दे सके!

 क्या तुम अपनी मोहब्बत के लिए इतना नहीं कर सकते?

 समीर ने अपने आसूं पोछते हुए कहा,

 देखो मुझे नहीं पता, जो तुम कह रहे हो उसमें कितना सच है और कितना झूठ, मगर हां, मैं अपनी मोहब्बत के लिए कुछ भी कर सकता हूं, मैं उसकी आखिरी ख्वाहिश पूरी करने में तुम्हारी मदद जरूर करूंगा!

 मेरी मोहब्बत की कहानी लिखने में तुम्हारी जितनी हो सके उतनी मदद करूंगा, सिर्फ समीक्षा के लिए!

 तुम बताओ मुझे क्या करना होगा?

 मैं हल्की सी मुस्कान के साथ और नम आंखें लिए समीर से बोला,

 कल से हम इस कहानी को शुरू करेंगे, तुम शुरुआत से बताना तब तुम पहली बार मिले थे, समीक्षा भी यही चाहती है, इस पूरी दास्तां को तुम खुद मुझे बताओ!

 फिलहाल में निकलता हूं, कल इसी समय मैं तुमसे मिलने आऊंगा, तुम अपना ध्यान रखना!

 और मैं उठ कर वहां से चल दिया!

समीक्षा भी मानो वहा की हवा में खुशबु की तरहा घुल गई!


‘वर्तमान'

वो लम्हा, मानो किसी काटो भरी रहा पे चलने जैसा था!

" की मेरे इश्क़ की मोहब्बत की दास्तां लिखने चला हु, और तन्हा इस सफर में, मैं उसके साथ ख़ामोशी की चादर ओढ़े खड़ा हु”


‘भूतकाल' 11'जनवरी, गुरुवार,

सुबह जैसे ही मेरी आँख खुली मैंने समीर को फ़ोन लगाया, मगर उसका फ़ोन out of reach था, मुझे लगा शायद नेटवर्क में कोई परेशानी होंगी तो मैं फ़ोन रख के थोड़ी देर बैठा और समीक्षा के बारे में सोचने लगा, तभी मेरा फ़ोन बजा, मुझे लगा की समीर का फ़ोन होगा, मगर जब फ़ोन उठाया तो देखा की ऑफिस से फ़ोन आ रहा था, मैंने फ़ोन उठाया और बात करी!

'फ़ोन पर बात करते हुए'

Excuse me sir, I need a few more days off, I am working on a story, as soon as the story is completed, I will surely come with that story, please accept my request sir.

मगर शायद मेरी किस्मत उस दिन मेरे साथ नहीं थी, इसलिए मुझे ऑफिस से निकल दिया गया, सिर्फ इतना बताया गया की मेरी पिछली कहानी की वजह से कम्पनी को बहोत नुक्सान ह

ुआ, इसलिए उन्होंने मेरी जगह किसी और को काम पर रख लिया!

मगर मुझे उस वक़्त इस बात का इतना दुख नहीं हुआ!

मैं तैयार होकर समीर से मिलने उसके घर के लिए निकला, मगर कुछ अजीब सी बेचैनी थी मन में, ना जाने क्यूँ, मैं समीक्षा के बारे में सोच रहा था पर ऐसा लग रहा था आज वो मुझसे दूर है ना उसके पास होने का एहसास हो रहा था ना हवाओ में वो खुसबू थी जो उसके पास होने से घुल जाया करती थी!

मैं जैसे ही समीर के घर पंहुचा तो उसके घर का दरवाजा खुला हुआ था और जैसे ही मैं अंदर गया, तो समीक्षा फर्श पर बैठी रो रही थी, मैं दौड़ कर उसके पास गया और पूछा, क्या हुआ समीक्षा? तुम रो क्यूँ रही हो और समीर कहा है, मैंने फ़ोन किया पर उसका फ़ोन भी नहीं लगा!

उसने रोते हुए मेरी बातो का जवाब दिया!

वो चला गया मानव....... वो चला गया...मैंने बहुत कोशिश करी उसे रोकने की मगर कोई फायदा नहीं.... कल जैसे ही तुम यहाँ से निकले तो उसी वक़्त उसने अपना सामान पैक किया और वो चला गया, मैं चीखती रही, मगर मेरी आवाज़ ना उसके कानो तक पहोची ना मेरी मोहब्बत उसके दिल तक, उसके लिए मैं मर चुकी हु और शायद वो यही चाहता था, वो भूल चुका है मुझे और मेरी मोहब्बत को,

 ये प्यार अधूरा रह गया..... मानव..... मेरा ख्वाब अधूरा रह गया!

उसके दिल में भले ही मेरे लिए जगह ना रही हो, मगर मेरी उससे मोहब्बत आज भी उतनी ही है जितनी पहले थी!

पर अब सब खत्म हो गया........ सब खत्म!

मैं फर्श पे बैठा और उसके आसूं पोछते हुए उसे गले लगाया और उससे कहा,

भले ही तुम्हारी मोहब्बत अधूरी रह गई मगर मैं तुम्हारा ख्वाब अधूरा नहीं रहने दूंगा, तुम्हारी ये आखरी ख्वाहिश जरूर पूरी होगी!

और मैं उसे लेकर अपने घर आगया!

 ‘वर्तमान'

मैं तो क्या उस वक़्त जो समीक्षा पर बीत रही थी वो कोई भी महसूस नहीं कर सकता, अपनी मोहब्बत को इस कदर टुटा देख में भी टूटने लगा था मगर मैं भी टूट जाता तो उसे कौन संभालता, मैंने खुदको उसके सामने कमजोर नहीं होने दिया, और उसे संभाला! अब उसके पास मेरे सिवा और मेरे पास उसके सिवा कोई नहीं था!

बहोत दिन लगे उसे सम्भलने में और उस हालात से निकलने में,

1 महीने बाद वो अपना गम भुलाकर पहली बार मुस्कुराई, और उसको मुस्कुराता देख मेरे दिल को बहोत सुकून मिला, अब मेरी सुबह की शुरुआत उसके चेहरे से होती थी, रोज़ हम बहोत सारी बाते करते और एक दूसरे से अपने बीते वक़्त के किस्से संझा करते, और फिर वो वक़्त भी आया जब उसने मुझे अपनी और समीर की मोहब्बत की दास्तां बताई!


'भूतकाल' 14 फरवरी, बुधवार,

समीक्षा अपनी कहानी बताते हुए,

आज ही के दिन हम मिले थे करीबन पांच साल पहले, मैं अपनी दोस्तों के साथ शिमला गई हुई थी घूमने, वहा की वादिया जैसे कुछ कहने की कोशिश कर रही थी मुझसे, मैं वहा अपनी सभी दोस्तों के साथ एक होटल में ठहरे थे, और उसी होटल में मेरी और समीर की मुलाक़ात हुई, वो अपने परिवार के साथ आया था!

 कब हमारी नजरे मिली और कब हमें एक दूसरे से प्यार हुआ कुछ पता ही नहीं चला, और फिर वो वक़्त भी आया जब हमें एहसास हुआ की हम एक दूसरे के बिना अब रह नहीं सकते, कुछ दिन बीते और मैंने समीर से अपने प्यार का इज़हार किया, और उसने भी हाँ कर दी, मगर उसके परिवार वाले नहीं चाहते थे की समीर और मेरी शादी हो, क्युकी मैं अनाथ थी, मेरा कोई परिवार नहीं था, पर समीर अपने वादे से पीछे नहीं हटा और उसने अपने परिवार के खिलाफ जाकर मुझसे शादी करी, और और दिल्ली वपस आगये, कुछ वक़्त तक हम सबसे दूर, किराये के घर में रहे, और फिर अपना घर ले लिया, वक़्त बीतता रहा और हमारा प्यार वक़्त के साथ और भी गहरा होता गया, जो कभी मैं ग़ुस्सा होती तो वो मुझे मनाया करता था, मगर कभी भी उसने मुझे ये एहसास नहीं होने दिया की मेरा कोई नहीं है, मेरी दुनिया बन चूका था वो और उसकी मैं!


‘वर्तमान'

वो कहते है ना की रिश्ते हमेशा दोनों तरफ से निभाए जाते है, तो ही वो रिश्ते पक्के होते है, और उन रिश्तो की डोर मजबूत होती है, कुछ ऐसा ही था इन दोनों का रिश्ता, मोहब्बत अगर फिरसे लिखी जाये तो उसमे इनका नाम जरूर होगा!


कुछ सवाल हमेशा अधूरे ही रहते है! सभी सवालों के जवाब सिर्फ कहानियों में ही मिला करते है, हकीकत में नहीं, जैसे की मेरे, समीक्षा के बहोत से सवाल थे जिंदगी से जिनके जवाब हमें नहीं मिले, जैसे समीर का अचानक यु कही दूर चले जाना, समीक्षा का मर कर भी ज़िंदा रहना, मेरे सिवा किसी और को समीक्षा का ना दिखना, और सबसे बड़ा सवाल की समीक्षा को आखिर उस दिन छत से किसने धक्का दिया?

पर शायद एक वक़्त आएगा जब हमें हमारे सभी सवालों के जवाब मिलेंगे इस लिए उस वक़्त हमने सब ईश्वर पे छोड़ दिया!

मैंने समीक्षा की कहानी लिखी और वो 2-3 महीने बीत गए पता ही नहीं चला, और मैंने वो कहानी पब्लिश करवाने के लिए दे दी!

बहोत से लोगो ने उस कहानी को नकारा मगर आखिरकार वो कहानी किसी को इतनी पसंद आई की उन्होंने उस कहानी को एक किताब का रूप दिया, और 1 महीना लगा उसे पब्लिश होने में, इस एक महीने में मेरी सारी सेविंग्स खत्म होने को थी, और कोई काम भी नहीं था मेरे पास, मगर समीक्षा से मैंने इस बारे में कोई बात नहीं करी, क्युकी उसके हस्ते चेहरे को मैं फिर से उदास नहीं देखना चाहता था, उसने पहले ही बहोत कुछ सहा है, मैं उसे अपनी परेशानी बताकर और उदास नहीं कर सकता था,

मेरे दिल में जो उसके लिए मोहब्बत थी वो अब और भी गहरी हो चुकी थी! सोचता था की उसे बता दू की कितना चाहता हु मैं उसे बचपन से, मगर डर लगता था उसे खोने का उसकी दोस्ती और भरोसे का टूटने का, शायद इसी लिए मैं ना बचपन में बता पाया ना उस वक़्त।



'भूतकाल' 24' दिसंबर,

सुबह में एक कशिश थी, मैं उठा तो मेरे बगल में समीक्षा बैठी थी, मुस्कुराते हुए मुझे निहारे जा रही थी,

मैंने पूछा क्या हुआ? तुम मुझे ऐसे क्यूँ देख रही हो?

मगर उसने बस ये कहा की,

मेरा दिल कर रहा है बस तुम्हे देखने का इसलिए देख रही हु!

मैं बिस्तर से उठा और नाश्ता बनाने चला गया, और वो मेरे पीछे पीछे ऐसे घूम रही थी जैसे कुछ कहना चाहती हो मगर कह नहीं रही थी, तभी दरवाजे पर किसी ने दस्तक दी, मैंने दरवाजा खोला तो, पब्लिशर खुद मुझे मेरी लिखी कहानी की पहली कॉपी देने आये थे अपनी शुभकामनाओ के साथ, मैंने भी उनका धन्यवाद किया और फिर वो चले गए ये कहकर की अभी बहोत काम है आज तुम्हारी कहानी "मैं और तुम" पब्लिश हो जाएगी और सभी लोगो तक पहोच जाएगी तो मुझे ऑफिस जान पड़ेगा जैसे ही ये पब्लिश होती है मैं तुम्हे तुम्हारी पेमेंट भिजवा दूंगा!

और वो चले गए वाकई में आज खुदा मेहरबानी दिखा रहा है लगता है कुछ बड़ा ही वसूल करेगा मुझसे, मैं ये कहते हुए मुस्कुराया और वो किताब लेकर अपने बैडरूम में आया, समीक्षा वही बैठी थी!

 मैंने मुस्कुराते हुए कहा....

मैंने कहा था ना की मैं तुम्हारा ख्वाब जरूर पूरा करूंगा.......

पता है मेरे हाथो में क्या है?

तुम्हारी कहानी और ये सिर्फ मेरे पास नहीं कुछ वक़्त बाद सभी पढ़ रहे होंगे तुम्हारी इस कहानी को...... आज मैं बहोत खुश हु समीक्षा.....

मैंने ये कहते हुए उसकी तरफ पीठ करी और थोड़ी हिम्मत जुताई... इज़हार करने के लिए... और तभी उसने मेरा हाथ थामा और मुझे गले लगा लिया और धीमी सी आवाज में नम आँखो से और हल्की सी मुस्कान लिए कहा,

मानव...... तुमने जो मेरे लिए किया है....... अगर मुझे किसी भी जन्म में मौका मिला तो मैं तुम्हारे लिए अपनी जान देने से भी पीछे नहीं हटूंगी........ तुम सच्ची मैं बहोत नासमझ हो बहोत भोले हो तुम.... अपने दिल की बात अपनी ज़ुबान पर लाने में बहोत देर कर दी तुमने...... बस एक आखरी वादा चाहती हु तुमसे, की तुम हमेशा खुश रहना और मुस्कुराते रहना....!

बस इतना कहते ही वो मेरी बांहों से ओझल हो गई और हवा में घुल गई, मैं उसका नाम पुकारता रहा, पर शायद ये उसकी ख्वाहिश ही थी जिसकी वजह से उसकी रूह को सुकून नहीं मिल रहा था, शायद अब वो इस दुनिया से बहार किसी और दुनिया में थी, खुदा की बनाई वो दुनिया जहां जाने के लिए कीमत नहीं लगती!


मेरी आँखो से पानी बहे जा रहा था! मगर मुझे ख़ुशी थी की आखिरकार समीक्षा को वो सुकून मिला जिसकी वो हक़दार थी!

पर वो मुझे बहोत ही सवालों के साथ छोड़ गई!


उसकी मोहब्ब्त भी अधूरी रही, और मेरी मोहब्बत भी!

आखिर मोहब्बत अधूरी ही अच्छी लगती है, जैसे राधा कृष्ण!

शायद इस दुनिया के परे मिलूं उससे तो इज़हार कर पाऊं?


बहोत से सवालों के साथ मैंने उस किताब को अपनी अलमारी में बाकि किताबों के साथ रखा और चल दिया जिंदगी के नये सफर पर, किसी और कहानी की तलाश में!


'वर्तमान'

आज 4 साल बीत गए उस बात को, मगर ऐसा लगता है की समीक्षा से में कल ही मिला था, और अब भी वो इन हवाओ में मेरे साथ है और इंतज़ार कर रही है इस दुनिया से दूर कही मेरे आने का!

अब भी रोज़ उसकी कहानी को अपनी बांहों में लेकर सोता हु, एक एहसास के साथ!


मगर कहानी अभी खत्म नहीं हुई ये तो सिर्फ शुरुआत है मेरी मोहब्बत की.........


"मैं ओर तुम"


"मैं और तुम, दूर कही चले जाते है, चलो मोहब्बत की इन रस्मो में हम दोनों बंध जाते है, जो हो दर्द तुझे तो आसूं मेरे बेह जाते है, चलो मैं और तुम दूर कही चले जाते है"


मोहब्बत की शुरुआत......


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Romance