Manoj Kumar Meena

Drama Fantasy Thriller

4.5  

Manoj Kumar Meena

Drama Fantasy Thriller

शिववाणी-एक अनोखी प्रेम कहानी

शिववाणी-एक अनोखी प्रेम कहानी

4 mins
408


                एपिसोड -1


( ब्रह्माण्ड की उत्पति के समय )


जिसने हमें जीवन दिया है वो चाहे तो उस जीवन को हमसे छिन भी सकता है,

इस ब्रह्माण्ड में अगर भगवान का अस्तित्व है तो शतन का अस्तित्व भी है,

जब ब्रह्मा इस धरती की रचना कर रहे थे तो कुछ पल के लिए उनका ध्यान भटक गया और उनकी आँखे बंद हो गई तभी जन्म हुआ अंधकार का और उस अंधकार से उत्पन्न हुआ एक असुर 'अंधकासूर'

वो अंश था इस ब्रह्माण्ड के रचयेता का इसी लिए वो अद्भुत शक्तियों का स्वामी था,

अंधकासूर को अपनी शक्तियों पर बहुत घमंड था और वो इंद्र को प्रजीत कर खुद इंद्र बनना चाहता था, इसिलए उसने स्वर्ग पर आक्रमण किया और सभी देवताओ को प्रजीत कर स्वयं इंद्र बन बैठा और इस युद्ध का परिणाम भोगना पड़ा पृथ्वी को जहा पर सिर्फ रौशनी थी वहा अब अंधकार ही अंधकार था,

पर अंधकासूर को अभी तक वो हासिल नहीं हुआ था जो उसे चाहिए था, 'अमृत'

अमृत के लालच में वो 'सत्य लोक' पहोच गया अपने पिता ब्रह्मा जी के पास और उनसे अमृत की मांग करने लगा,

भले ही वो ब्रह्मा जी का पुत्र था पर था तो असुर ही, इसीलिये ब्रह्मा जी ने उसे अमृत देने से इंकार कर दिया और उसे बहुत अपमानित किया, अंधकासूर अपमान बर्दाश नहीं कर पाया और उसने अपने पिता के विरुद्ध शस्त्र उठा लिया, इस बात से भगवान श्री हरी क्रोधित हो गए और ब्रह्मा की रक्षा के लिए वो अंधकासूर से युद्ध करने लगे, युद्ध करते-करते कई वर्ष बीत गए मगर युद्ध समाप्त नहीं हुआ, तब भगवान शिव सत्ये लोक आये और उन्होंने कहा "श्री हरी" "अन्धका" इस युद्ध को यही समाप्त करो क्युकी तुम्हारे युद्ध का भीषण परिणाम इस ब्रह्माण्ड को सेहना पड़ रहा है, तुम इस युद्ध को अब यही पर विराम दो ताकि ये ब्रह्माण्ड अपनी वास्तविक स्थिति में पुनः आ सके और भगवान शिव ने अंधकासु को श्राप दिया,

"अंधकासुर तुम्हारे कारण इस संसार में अन्धकार की उत्पति हुई है और इसीलिए हर युग में तुम नारायण के हाथो पराजित होगे और अंत काल कलयुग में तुम्हे मेरे हाथो मोक्ष मिलेगा.


श्री कृष्ण की मृत्यु पश्चात कलयुग का आरम्भ ( धरती ) वर्तमान में


भारतवर्ष का एक राज्य 'मोटगोमरी' जहा भगवान शिव का एक विशाल मंदिर है "रुद्रश्वर मंदिर" जो मंदिर कई वर्षो से बंद पड़ा है और वहां पर सिर्फ उस राज्य के "राजा विशपति" की ही पूजा होती है अगर कोई महादेव का नाम भी लेता है तो उसे जिन्दा जला दिया जाता है या बंधी बना लिया जाता है,

उस रुद्रश्वर मंदिर का पुजारी और उसकी पत्नी इसी आस में प्रतिदिन मंदिर की सीढ़ियों पे बैठे रहते है की एक दिन खुद भगवान शिव आएंगे और पुरे राज्य को उस राजा से मुक्ति दिलवाएंगे, और रोज़ की तरह आज भी दोनों पति पत्नी हाथ जोड़कर प्राथना करते है,

"हे महादेव आप समस्त संसार चलाते हो आपकी मर्ज़ी के बिना एक पत्ता भी नहीं हिल सकता, आप तो सर्वये व्यापी हो आपको तो पता ही है की हमारा राजा कंस और रावण से भी अधिक निर्देई है वो अज्ञानी खुदको ही भगवान समझ बैठा है, हमें तो सिर्फ उस शुभ घड़ी का इंतज़ार है जब आप इस धरती पर आएंगे और उस दानव को मृत्यु प्रदान करेंगे"

तभी आकाश से एक दिव्ये वाणी आती है,

"रंगनाथ, तुम्हारी चिंता का निवारण शीग्र ही होगा, स्वयं महादेव का अंश तुम्हारी पत्नी के गर्भ से जन्म लेगा और उसी के हाथो राजा विशपति का वध होगा आठ दिन बाद सावन आरम्भ होने वाले है और सावन के आरम्भ में ही तुम्हारी पत्नी 'वसुंदरा' गर्भ धारण करेगी"

जैसे ही आकाशवाणी पूरी हुई अचानक ही वर्षा होने लगी और नीले बदलो ने पुरे आकाश पर डेरा डाल लिया.


(सावन का पहला दिन)

अचानक वसुंदरा का शरीर ज्वाला की भाती तपने लगा और आँखे रक्त की तरहा लाल हो गई जब रंगनाथ ने अपनी पत्नी की ये हालत देखि तो वो घबरा गया और अपनी पत्नी को वेदय के पास लेकर जा ही रहा था की तभी घर के बाहर से आवाज आई,

'भिक्षाम दे.....और ये सुनकर रंगनाथ ने बाहर जाकर देखा तो एक साधु खड़ा था जिसका रूप मानो साक्षात् वेरभद्र के समान हो माथे पर तेज शरीर पर राख और भगवे वस्त्र धारण किये वो साधु बोलने लगा, "सुभारम्भ है उत्सव का, सुभारम्भ है मोक्ष का, अंत से आरम्भ होगा, नव जीवन का प्रारम्भ होगा"

बस इतना कहते ही वो साधु वहा से चला गया, और रंगनाथ चिंतित हो गया वो समझ नहीं पाया उस साधु की बातो को मगर अभी तो उसे अपनी पत्नी की चिंता ज्यादा हो रही है जैसे ही वो घर के अंदर जाता है और अपनी पत्नी का हाथ पकड़ता है उसे वेदय के पास लेजाने के लिए तो वो महसूस करता है की अब उसकी पत्नी का बुखार सही हो गया है और वो पहले से भी ज्यादा स्वस्थ और खुश है, तभी रंगनाथ के मन में आकाशवाणी वाली बात आती है और वो समझ जाता है की स्वयं रूद्र का अंश उसकी पत्नी के गर्भ में है तो उसे भला क्या हो सकता है।


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