गंधर्व किले का रहस्य - भाग 1
गंधर्व किले का रहस्य - भाग 1
आधी रात का वक्त हो चला था और तेज हवाओं पर भी खामोशी का जबर्दस्त पहरा था।
वहीं ठीक उस आलीशान कमरे की बिस्तर पर वह ग्यारह साल का बच्चा बड़े ही सुकून की नींद सो रहा था पर उसकी कसमसाहट और चेहरे पर मौजूद पसीने की बूँदें ये बयाँ कर रही थीं कि शायद वह कोई बुरा ख्वाब देख रहा था और अचानक एक झटके से साथ उठकर वह बिस्तर पर बैठ गया।
उसके माथे पर ठंडी पसीने की बूँदें अब भी विराजमान थीं और साँसें राजधानी एक्सप्रेस की स्पीड से चल रही थीं। शायद उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि अब तक वह जो कुछ भी देख रहा था वह सपना था या हकीकत।
खैर कमरे में चारों ओर अच्छी तरह से निगाहें दौड़ाने के बाद आखिरकार उसे समझ में आ गया कि अब तक वह जो कुछ भी देख और सुन रहा था वह सब हकीकत नहीं बल्कि एक बुरा ख्वाब था।
पुरानी मगर भारी-भरकम पलंग पर बैठे-बैठे ही उसने अपने कमरे में चारों ओर नजर दौड़ाई और हालात का जायजा लेने लगा। बाहर काफी अंधेरा था मगर फिर भी कमरे में जल रही उस जीरो वाट के बल्ब की नारंगी रोशनी में सबकुछ साफ नजर आ रहा था।
उसने अपने बायीं ओर देखा तो पाया कि बिस्तर पर सिर्फ़ एक बेतरतीब पड़ा चादर और तकिया रखा हुआ था और बिस्तर की सिलवटें देखकर ऐसा लग रहा था मानों थोड़ी देर पहले वहाँ कोई सोया हुआ था।
जो अभी हाल ही में उठकर बाहर गया होगा।
हालांकि कमरे का दरवाजा ठीक से बंद था फिर भी सिटकनी नीचे थी मतलब वह जो कोई भी था फिलहाल कमरे से निकल कर कहीं बाहर गया हुआ था।
इस अजीब से हालात में वह डरा-सहमा सा लड़का कुछ सोंच विचार कर ही रहा था कि अचानक कमरे में दाहिनी ओर मौजूद वह खिड़की खुल गई और उस खिड़की से उस कमरे में एकसाथ तेज हवाओं के कुछ झोंकों ने प्रवेश किया।
“कौन है ?”
अचानक उस लड़के ने अपनी सहमी हुई आवाज में उस खिड़की की ओर देखते हुए पूछा।
शायद उसे वहाँ खिड़की के बाहर किसी की मौजूदगी का एहसास हुआ था, पर यह कैसे मुमकिन था।
वह तो दूसरी मंजिल पर था और इसीलिए खिड़की से बाहर वहाँ किसी के मौजूद होने का कोई सवाल ही नहीं उठता।
पर शायद वह बच्चा इतना कुछ सोंच और समझ नहीं सकता था क्योंकि डर और आश्चर्य के मारे सिकुड़ी हुई उसकी आँखें अब भी उसी खिड़की की ओर मुड़ी हुई थीं।
“मिशी... मिशी तुम हो क्या?”
उस बच्चे ने उसी खुली हुई खिड़की की ओर देखते हुए एक बार फिर से सवाल किया पर इस बार भी उसे कोई जवाब नहीं मिला और इसीलिए इस बार वह खुद बिस्तर से नीचे उतर गया और धीरे-धीरे कदम बढ़ाता हुआ उस खुली हुई खिड़की की ओर बढ़ने लगा।
उसकी उम्र कम थी, दिल मासूम था और चेहरे पर डर और घबराहट भी मौजूद थी पर साथ ही गजब का दुस्साहसी था वह जो यूँ इतने डरावने माहौल में भी उस खिड़की की ओर बढ़ा चला जा रहा था और वह भी एकदम अकेले।
खैर धड़कते दिल के साथ वह उस खिड़की के पास पहुँचा और वहाँ पहुँचकर उसने ध्यान से अपने चारों ओर देखा।
वहाँ कोई भी नहीं था बावजूद इसके कि उसे अब भी वहाँ किसी की मौजूदगी का एहसास हो रहा था और अचानक एक बार फिर एक ठंडी हवा का झोंका आया जो उसके कोमल शरीर को बेधता हुआ चला गया।
एक पल के लिए तो वह भी डर के मारे सिहर उठा पर इस बार भी उसने गजब की हिम्मत दिखाई और वहीं खिड़की के पास रखी टेबल पर चढ़कर उसने वह खुली हुई खिड़की बंद कर दी।
खिड़की बंद करने के साथ ही वह दोबारा अपने बिस्तर की ओर मुड़ गया जो अब बिल्कुल खाली था और फिर उसकी नजरें कमरे में एक पुरानी अलमारी और फर्नीचर से होते हुए दरवाजे पर जा टिकीं।
इस बार वह सीधा दरवाजे की ओर बढ़ने लगा और कुछ कदम आगे बढ़ने के बाद वह दरवाजे के एकदम करीब पहुँच गया।
दरवाजे के पास पहुँचकर उसने अपना हाथ दरवाजे के हैंडल की ओर बढ़ा दिया और अभी वह दरवाजा खोलने ही वाला था कि अचानक उसके हाथ उसी दरवाजे की हैंडल पर जाम होकर रह गये।
अब वह दरवाजा खोलने की बजाए दरवाजे के पास कान लगाकर कुछ सुनने की कोशिश कर रहा था।
शायद उसे बाहर किसी की आवाज सुनाई दे रही थी और यकीनन इस बार यह उसका कोई वहम नहीं था।
सचमुच दरवाजे के पास कुछ लोगों के फुसफुसाने की आवाजें आ रही थीं।
अगले कुछ मिनटों तक वह लगातार उन आवाजों को सुनने की कोशिश करता रहा पर उसे कुछ भी साफ सुनाई नहीं दे रहा था बस ऐसा लग रहा था मानों दरवाजे के पीछे खड़े होकर कुछ लोग आपस में बहस कर रहे हों और आखिरकार इस बात से खीझकर उसने एक झटके में दरवाजा खोल दिया।
पर एक बार फिर उसे गहरा आश्चर्य हुआ क्योंकि बाहर दरवाजे के पार वहाँ कोई भी मौजूद नहीं था और इस बात से हैरान वह दरवाजा पार करने के बाद उसने खुद को एक बड़े से बंगले के हॉल में खड़ा पाया जिसके दोनों ओर कई सारे कमरे नजर आ रहे थे और साथ ही सीढ़ियां भी जो दोनों ओर गोल-घुमावदार इस तरीके से बनाई गई थीं कि उतरने वाला किसी भी तरफ से उतरे वह सीधा नीचे बने हॉल में ही पहुँचता।
बहरहाल अगले कुछ पलों तक वहीं खड़े रहकर उसने वह फुसफुसाने की आवाज दोबारा सुनने की कोशिश की जो अब भी उसके कानों तक आ रही थीं मगर बेहद धीमीं,
शायद इस बार बाईं ओर से और यही सोंचकर वह बायीं ओर मुड़ गया।
वह बँगला काफी बड़ा और डरावना नजर आ रहा था और बड़ी हैरानी की बात थी कि इस पूरे बंगले में वह ग्यारह साल का बच्चा यूँ अकेला भटक रहा था।
बार-बार उसे वहाँ अपने आस-पास किसी की मौजूदगी का एहसास हो रहा था मानों वहाँ कोई ऐसा था जो उसका पीछा कर रहा था पर फिर भी वह बच्चा बिना डरे आगे बढ़ रहा था और इस बार य
ूँ ही आगे बढ़ता हुआ वह सीढ़ियों पर पहुँच गया और वहाँ पहुँचकर एक पल के लिए रुक गया।
ठीक उसी पल रुकने के बाद उसने तेजी से पीछे की ओर अपनी गर्दन घुमाई पर वहाँ उसे कोई नजर नहीं आया जबकि उसे बार-बार ऐसा लग रहा था मानों कोई उसका पीछा कर रहा हो और उस पर हर पल नजर रखे हुए हो।
खैर यह शायद उसका वहम था और उसे भी ऐसा ही लगा इसलिए एक बार फिर उसने आगे बढ़ने का फैसला किया और सीढ़ियों से नीचे उतरने लगा।
“मीशी माँ!”
एक बार फिर उसने थरथराती हुई जुबान से अपनी माँ को पुकारा पर वह जवाब नहीं दे रही थी लेकिन फिर भी वह बच्चा बिना डरे आगे बढ़ता ही जा रहा था।
आखिरी पायदान पर से उतरने के बाद उसने सामने नजर आते मुख्य दरवाजे की ओर देखा जो अंदर से बंद था और फिर उसने दायीं ओर नजर घुमाई जहाँ आगे चलकर किचन मौजूद था।
“शायद किचन में होगी मीशी माँ।“
उसने मन ही मन सोंचा और किचन की ओर चल पड़ा बावजूद इसके कि वहाँ काफी अँधेरा था इतना कि एक-दो हाथ की दूरी तक का दृश्य ही नजर आता था मगर फिर भी वह बेझिझक आगे बढ़ रहा था।
भगवान जाने उसके दिल में किसी बात का खौफ था भी या नहीं।
जो भी हो वह अपनी माँ को ढ़ूँढ़ता हुआ किचन की ओर बढ़ने लगा कि तभी अचानक उसे एहसास हुआ मानों कोई बेहद तेजी के साथ उसके पीछे से गुजरा हो,
ऐसे जैसे कोई हवा का झोंका और जितनी तेजी से यह घटना घटित हुई उतनी ही तेजी से वह पीछे की ओर मुड़ गया पर उसे वहाँ कोई भी नजर नहीं आ रहा था।
हालांकि सीढ़ियों के दायीं ओर यानी उसके ठीक सामने गैलरी के पार देखकर ऐसा लग रहा था मानों वहाँ कोई साया मौजूद हो पर यह सिर्फ बस एक पल के लिए लगा क्योंकि अगले पल जब उसने मारे हैरत के पलकें झपकाईं और दोबारा देखा तो वहाँ कुछ भी नहीं था।
“मीशी माँ तुम हो क्या ?”
उसने एक बार फिर अपनी माँ को आवाज दी पर इस बार भी उसे कोई जवाब नहीं मिला।
ठीक उसके सामने जहाँ एक पल पहले उसे वह साया नजर आया था, वहाँ कमरे का दरवाजा खुला हुआ था और उसके भीतर से हल्की पीली और नारंगी रोशनी छनकर बाहर आ रही थी।
“मीशी माँ।“
अपनी माँ को आवाज लगाता हुआ वह लड़का तेजी से उस ओर दौड़ा और सीढ़ियों के बगल में मौजूद उस संकरी सी गैलरी को दौड़ कर पार करने के बाद अब वह उस कमरे के सामने खड़ा था।
अगले कुछ पलों तक वहीं खड़ा वह कुछ सोंचता रहा और आखिरकार कुछ तय करने के बाद उसने दरवाजे को धकाकर थोड़ा और खोला और उस कमरे में प्रवेश कर गया।
कमरे में मद्धम रोशनी का हल्का पीला सा बल्ब जल रहा था जो जल कम रहा था और किसी बुझते हुए दिये की तरह टिमटिमा ज्यादा रहा था।
बावजूद इसके कमरे का पूरा वातावरण उसे साफ नजर आ रहा था।
भले ही वह कमरा बडा़ था पर वहाँ मौजूद चीजें और उनकी हालत ये साफ बयाँ कर रही थीं कि इस बड़े और वीरान बँगले में मौजूद इस कमरे का उपयोग किसी स्टोर रूम की तरह किया जाता था।
जहाँ चारों ओर ढे़र सारे पुराने फर्नीचरों, टूटे-फूटे खिलौनों, पुरानी किताबों और कई बिना मतलब के चीजों की भरमार थी और वहीं एक कोने में एक काठी का छोटा सा घोड़ा भी रखा हुआ था जिसकी डरावनी सी परछाईं सामने की दीवार पर बन रही थी।
यकीनन इस वक्त यहाँ मौजूद किसी भी इंसान की हालत बुरी तरह खराब हो सकती थी पर फिर भी वह बच्चा वहाँ खड़ा चारों ओर देख रहा था।
उसे वहाँ किसी की तलाश थी, शायद अपनी मीशी माँ की और इसी तलाश में भटकती हुई उसकी नजरें उस काठ के घोड़े और दीवार पर बनती उसकी परछाईं पर पड़ीं।
पर इससे पहले कि वह उसे छोड़ किसी और चीज की ओर देखता अचानक दीवार पर बने उसे घोड़े की परछाईं के साथ एक और परछाईं दिखी जो यकीनन किसी औरत की थी और वह उस घोड़े पर बैठी हुई थी।
यह दृश्य देखकर ही उसके रौंगटे खड़े हो गये और बुरी तरह डरे सहमे उस बच्चे ने परछाईं से नजरें हटा कर उस काठी के घोड़े की ओर देखा पर उस पर कोई भी नहीं था जबकि उसकी परछाईं में अब भी वह औरत उस पर बैठी हुई दिख रही थी और झूल रही थी।
उसके लम्बे बिखरे हुए बाल हवा में उड़ते नजर आ है थे और वह शायद कुछ गा रही थी...
“लकड़ी की काठी,
काठी पे घोड़ा
घोड़े की दुम पे
जो मारा हथोड़ा
दौड़ा दौड़ा दौड़ा
घोड़ा दुम उठा के दौड़ा...”
डर के मारे कांपते हुए उसने एक बार फिर परछाईयों से नजर हटा कर उस काठी के घोड़े की ओर देखा और इस बार वह सचमुच उस घोड़े पर बैठी नजर आ रही थी।
बल्ब की नारंगी रोशनी में उसका चेहरा नजर आ रहा था जो खून से सना दिख रहा था।
वह उस काठी के घोड़े पर झूल रही थी और फिर अचानक उस बच्चे ने उसे पुकारा।
“मीशी माँ।“
उस बच्चे की आवाज सुनते ही काठी के घोड़े पर बैठी वह औरत फौरन उसकी ओर घूम गई।
उसने अपनी खून सी लाल आँखों से उस बच्चे को घूर कर देखा।
एक पल पहले वह औरत उस काठी के घोड़े पर बैठी हुई थी और अगले ही पल वह उसके सामने खड़ी थी।
उसका वह डरावना, बेहद डरावना चेहरा उस बच्चे की आँखों से बस इंच भर की दूरी पर था।
वह चेहरा उसके अपने चेहरे के इतने करीब था कि वह उस चेहरे पर नजर आते गुस्से और दर्द तक को साफ महसूस कर पा रहा था।
यह भयानक दृश्य देखकर उस बच्चे के होश उड़ गये और इससे पहले कि उसकी समझ में कुछ भी आता वह बुरी तरह चीख उठी।
उस भयानक औरत की चीख इतनी जोरदार थी कि न चाहते हुए भी उस बच्चे को अपने कानों पर हाथ रख लेना पड़ा और चीख सुनते ही वह एक ही झटके में उठ कर बैठ गया...