STORYMIRROR

Dr Lakshman Jha "Parimal"Author of the Year 2021

Inspirational

3  

Dr Lakshman Jha "Parimal"Author of the Year 2021

Inspirational

" मैं और मिथिलाक्षर /तिरहुता लिपि "(संस्मरण )

" मैं और मिथिलाक्षर /तिरहुता लिपि "(संस्मरण )

4 mins
11


उद्देश और लक्ष्य की परिकल्पना मनुष्य स्वयं करता है और उस लक्ष्य की प्राप्ति में कभी -कभी दृग्भ्रमित भी हो जाता है ! परन्तु इन सपनों को साकार करने की दिशा में गुरु का योगदान अद्वितीय माना गया है ! उनकी पारखी नज़र, उनके अनुभव और उनकी दक्षता अपने शिष्यों को कहीं और नहीं भटकने देती है ! पर इस तरह की बातें सिर्फ आदि काल के इतिहासों में ही हमें मिलती है यह कहना तर्क संगत ना होगा ! आज भले ही गुरुओं की छत्र -छाया सम्पूर्ण अपने छात्रों के लिए समर्पित ना हो फिर भी इनके सलाह,निर्देश और हितोपदेश के वल पर ही शिष्यों के भविष्य की रूप रेखा बन पातीं हैं !अपवाद हमें हरेक युग में देखने को मिलता है ! एकलव्य एक भील बंजारा था ! उसने गुरु दोर्ण से अपने गुरु बनने का अनुरोध किया पर गुरु दोर्ण ने उसे अपना शिष्य नहीं बनाया ! एकलव्य ने उनकी मूर्ति बनाई और उन्हें गुरु मानकर अभ्यास करने लगा और अर्जुन से भी निपुण धनुर्धर बन गया ! सच्ची लगन, परिश्रम और अनुशासन के मापदंडों पर खरे उतर जाएँ तो हर कार्य सफलता के करीब पहुँच जाता है !2002 में मेरी सेना से सेवानिवृति हुई ! दुमका झारखंड की उप- राजधानी है ! अपने घर पहुँच गए ! दुमका में हिन्दी ,भोजपुरी ,बंगला ,खोरठा,अंगिका,अपभ्रंश बंगला और मैथिली के साथ -साथ संथाली भाषा बोली जातीं हैं ! इन सारी भाषाओं प्रयोगात्मक भंगिमा का आभास हो गया था ! परंतु हमलोग अपने घरों में मैथिली भाषा का प्रयोग करते हैं ! बोलना तो जानते ही थे ! लिखने के प्रयोग में देवनागरी लिपि का ही प्रयोग करते हैं !भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में 22 भाषाएं शामिल हैं ! मैथिली भाषा भी इनमें से एक है ! मुझे मिथिलाक्षर /तिरुहुता लिपि सीखने की जिज्ञासा होने लगी ! बहुत से जानकार और अनुभवी लोगों से संसर्ग किया परंतु उनके निर्देश काम नहीं आये ! कोई बड़े- बड़े लेख मिथिलाक्षर में लिखकर फेसबूक के माध्यम से भेजने लगे ! किसी ने कहा ,---“आप एक लिपि की किताब खरीद लें और अभ्यास करें !”कई महानुभावों ने तो “मिथिलाक्षर अभियान” ही चला रखा है ! ग्रुप और व्हात्सप्प का भी ताँता लगा हुआ है ! परंतु उनकी रफ्तार “बुलेट ट्रेन” की गति से चलती थी ! और मैं ठहरा एक अनाड़ी ! मुझे तो धीरे -धीरे सीखना था ! उम्र के आखिरी पड़ाव बस एक ललक लग गयी थी ! यह मैं भलीभाँति जनता हूँ कि मिथिलाक्षर /तिरहुता लिपि को जानने वाले बहुत कम हैं ! यहाँ तक मैथिल अपनी पहचान को धूमिल कर रहे हैं ! अपनी भाषा मैथिली को अपने घर में नहीं बोलते हैं ! अधिकांश लोग मैथिली देवनागरी लिपि में भी नहीं लिख सकते ! सभी भाषाओं को सम्मान देना चाहिए परंतु इसका अर्थ यह नहीं कि अपनी मातृभाषा की अवहेलना करें !मिथिलाक्षर /तिरहुता लिपि वर्णमाला गूगल से डाउन लोड किया और प्रत्येक दिन वर्णमाला को सीखना प्रारम्भ किया ! संयुक्त अक्षर लिखना एक टेढ़ी खीर थी ! किसी न किसी तरह लिख- लिख कर अपने फेसबूक टाइम लाइन डालने लगे !बहुत से मैथिलों ने मुझे कहा ,-----“यह तो बंगला लिपि है!”मुझे बहुतों को समझाना पड़ा,--------“भाई ,मिथिलाक्षर /तिरुहुता लिपि बहुत प्राचीन लिपि है ! इसी से प्रभावित होकर बंगला ,आसामिया और ओडिया लिपिओं की संरचना हुईं !”मिथिलाक्षर/तिरहुता लिपि का विकास आठमी शताब्दी में हो गया था ! अन्य लिपियाँ बंगला ,आसामिया और ओडिया का विकास कालांतर में हुआ !एक दो मैथिली ग्रुप के अड्मिन ने मुझसे आग्रह किया,----” हमरा ग्रुप सं जुड़ि जाऊ हम मिथिलाक्षर क ट्रेनिंग सेहो दैत छी !”आखिर उनलोगों से भी जुड़ा पर दूर रहकर बड़े -बड़े लेखों को मिथिलाक्षर में पढ़कर और भी मैं पेचीदा बनता गया ! विडम्बना तो देखिये गूगल में हरेक लिपियाँ हैं ! आप सारी लिपिओं का प्रयोग कर सकते हैं पर मैथिलाक्षर में लिखने का अप्प नहीं आया है !प्रयास निरंतर मेरा चलने लगा ! मेरे सपनों को साकार करने में एक व्यक्ति का योगदान है जिन्होंने मुझे सीएसआरआईओट कन्वर्ट का गूढ़ रहस्य दिया और मैं अपने अथक प्रयास से कुछ हद तक सफल हुआ।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Inspirational