“चार आना (25 पैसे) पॉकेट मनी” (संस्मरण )
“चार आना (25 पैसे) पॉकेट मनी” (संस्मरण )
डॉ लक्ष्मण झा परिमल
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पहिले करहलबिल नगरपालिका स्कूल, दुमका, मेरे ही खपडेल मकान और एक फूस के छप्पर के नीचे चलता था ! दुमका नगरपालिका के पास कोई मकान नहीं हुआ करता था ! नगरपालिका ने मात्र 35/- रुपये में किराए ले रखा था ! सन 1963 में नगरपालिका का निजी स्कूल बन गया और नगरपालिका ने मेरे मकान को खाली कर दिया ! यह स्कूल वाला मकान हमारे पैतृक मकान से पैदल 5-6 मिनट का रास्ता था !
मेरे पिता जी ने मुझसे एक दिन कहा ,------"बेटे ! तुम वहीं रहो और अपना अध्ययन करो ! इससे घर की देख -भाल भी होती रहेगी और तुम्हारी पढ़ाई भी !"
उस समय ,मैं 6th क्लास में प्रवेश लिया था !वहाँ रहना मेरे लिए सुखद था ! शांत वातावरण ,हरे भरे पेड़ ,शाम को सिर्फ चिड़ियों की चहचहाटें ही सुनने को मिलती थीं ! मेरे मकान के सामने खुला मैदान था और दूर दूर तक खेत ही खेत नज़र आते थे ! इन्हीं परती जमीन पर रतन सिंह का एक बड़ा कुआँ था ! और कुआँ के चारों तरफ चबूतरे बने थे ! उस इलाके के सब लोग पानी पीने के लिए यहीं से भरते थे और पुरुषवर्ग स्नान भी करते थे ! ये खेत और खुले मैदान सबों का टॉइलेट हुआ करता था ! 12 महीने इन खेतों में पानी रहता था ! बरसात के दिनों में सारे खेत जलमग्न हुआ करते थे !
सभी लोग एक दूसरे को जानते थे और पहचानते थे ! कभी कुआँ के पास तो कभी टॉइलेट जाने के समय एक दूसरे से हालचाल पूछ लिया करते थे !
हमारे मुहल्ले ही नहीं सारा शहर दुमका बिजली से महरूम था ! वैसे प्रक्रिया की बात हो रही थी पर हमलोग डिबिया और लालटेन का प्रयोग ही करते थे ! सामाजिक उत्सव के समय पेट्रोमेक्स या जेनेरेटर का प्रयोग होता था !
डिबिया और लालटेन के लिए केरोसिन तेल (मिट्टी तेल) का इस्तेमाल होता था ! और ये मिट्टी तेल कंट्रोल दुकान में उपलब्ध होते थे ! मैं अपने को बड़ा भाग्यशाली मानता था ! मेरे मकान के सामने एक लाइट पोस्ट बनाया गया था ! मेरे मोहल्ले का गेना नगरपालिका की ओर से अंधेरा पक्ष में शाम 7 बजे पेट्रोमेक्स जला कर उसे रस्सी से खींचकर ऊपर लटका देता था ! रास्ते उजाले हो जाते थे ! गेना के पास मिट्टी तेल होता था ! मैंने सोचा क्यों नहीं इससे फाइदा उठाया जाय ? उन दिनों मुझे पॉकेट मनी हरेक दिन एक चौवन्नी (25 पैसे) मिला करती थी ! मेरे पिता जी जिन्हें मैं "बाबा" कहता था ! 25 पैसे मुझे शाम को दे देते थे !
एक दिन गेना को मैंने पूछा ,---
"भैया ! क्या मुझे आप 10 पैसे का मिट्टी तेल दिया करेंगे ?"
"देखो , मैं दे तो दूँगा, पर याद रहे ये बातें फैलनी नहीं चाहिए !" ---गेना ने जबाव दिया !
चलो तेल की समस्या पूरी हो गई ! 10 पैसे में एक लालटेन की टेंकी भर जाती थी !
अपने पॉकेट मनी का 15 पैसे बच जाते थे ! शाम को ही 10 पैसे का 100 ग्राम देशी चना खरीद लेता था और 5 पैसे का गुड़ ! चना को रात में ही भिंगने दे देता था और सुबह कसरत के बाद चना और गुड़ खाता था !
चार आना (25 पैसे) पॉकेट मनी का साथ बहुत दिनों तक मेरा रहा ! सचमुच वह पॉकेट मनी मेरे जीवन का सौगात था ! 25 पैसे तो अब चलन में नहीं रहा पर उसकी याद बहुत आती है !
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डॉ लक्ष्मण झा" परिमल "
साउंड हेल्थ क्लिनिक
एस0 पी 0 कॉलेज रोड
दुमका
झारखंड
भारत
15.05.2025
