मैं अपनी किस्मत खुद लिखूंगी
मैं अपनी किस्मत खुद लिखूंगी
उसे फिक्र नहीं थी कि किस्मत की लकीरों में क्या लिखा है...क्योंकि वो अपनी किस्मत खुद लिखने पर यकीन करती थी ...उसका मानना था किस्मत का रोना कमजोर लोग रोते है और वो कमजोर नहीं ...आप सोच रहे होंगे मैं जिसके बारे में बात कर रही हूं वो या तो किस्मत की धनी है या ईश्वर की कृपा है उसके ऊपर तभी वो ऐसा सोचती है....! पर ऐसा बिल्कुल नहीं है ....उसकी कहानी जानने से पहले मैं आपको उसका परिचय तो दे दूं.....
ये कहानी है एक अपाहिज लड़की दिशा की ...चलिए आपको दिशा की जिंदगी से रूबरू करवाते हैं...!
" मां मै निकल रही हूं परीक्षा के लिए समय से पहुंचना है मुझे !" दिशा बैंकिंग की परीक्षा देने जाते वक़्त मां से बोली।
क्योंकि दिशा एक छोटे कस्बे में अपने परिवार के साथ रहती थी इसलिए उसे परीक्षा देने रेल से जाना था..!
" रुक रुक ये दही गुड खाती जा सब अच्छा होगा !" दिशा की मां सुनयना भागते हुए आई और बेटी को दही गुड खिलाने लगी।
" ओहो मां आप भी ना ...ये दही गुड से कुछ नहीं होता मैने मेहनत की है तो मेरा पर्चा तो अच्छा जाना ही है !" दिशा बोली।
" हां ...हां मुझे पता है तू इन सबमें विश्वास नहीं रखती पर मां के विश्वास पर तो विश्वास रखती है उसी के लिए खा ले !" सुनयना बेटी के मुंह में दही डालती बोली...दिशा हंसते हुए दही गुड खा निकल गई परीक्षा देने !
ट्रेन से उतरते में भीड़ के धके से उसका पैर फिसल गया और वो पटरी पर जाकर गिरी । कितने दिन जिंदगी और मौत से लड़ते हुए बीते और आखिर में जीत जिंदगी की हुई। पर इस जीत में वो अपना दांया हाथ खो बैठी। कितने दिन रोते गुजरे पर रोने से हाथ वापिस थोड़ी आता। पर हाथ बिना सपने कैसे पूरे हो ? ये सवाल सुरसा के मुंह सा खड़ा था सामने ...!
" किस्मत की यही मर्जी थी शायद !" हर आने जाने वाला उसे यही तसल्ली देता।
" नहीं मैं किस्मत को नहीं मानती ...मुझे अपनी किस्मत खुद लिखनी है !" एक दिन सबकी बातें सुनकर तंग अा चुकी दिशा खुद से और घर वालों से बोली।
" पर बेटा सीधे हाथ के बिना क्या करेगी तू ...जाने क्यों भगवान ने हमे ये दिन दिखाए !" ये बोल सुनयना जी रो दी।
" मां रोना कायरता की निशानी है ...ये आंसू पोंछ दो देखो मेरी आंख में भी आंसू नहीं है ..!" दिशा मां के आंसू पोंछती हुई बोली।
अकेले में बैठ दिशा ने बहुत सोचा कि अब आगे क्या करना है ...अपने हाथ को देखा जो अब नहीं था ..".नहीं एक हाथ नहीं तो क्या मैं जिंदगी से निराश हो जाऊं ....ईश्वर ने उस ऐक्सिडेंट में मेरी जिंदगी बचाई है वो क्या कम है ...मेरी जिंदगी बचाई है ईश्वर ने तो मेरे लिए कुछ सोचा भी होगा ही...पर उसके लिए मेहनत तो मुझे करनी होगी ! " दिशा खुद से बोली।
बस तभी उम्मीद की एक नन्ही सी लो टिमटिमाई और दिशा ने बाएं हाथ से लिखने की कोशिश की ...ये मुश्किल जरूर था पर दिशा जैसी मजबूत इरादों वाली लड़की के लिए मुश्किल नहीं था ....दो महीने के कठिन परिश्रम के बाद दिशा बाएं हाथ से अच्छे से लिखने लगी।
अब आगे क्या ...? सिर्फ इतने से तो कुछ नहीं होगा ना।... उसने सोचा।
" बेटा इन सबका अब फायदा क्या है ?" हालातों से संघर्ष करती बेटी को देख मां बाप दोनों कराह कर बोलते ...क्योंकि दिशा अपने किसी काम में किसी भी घर वाले की मदद नहीं लेती थी भले कितनी तकलीफ हो काम खुद से करती थी..!
" मां ...पापा जिंदगी तो जीनी है ना तो क्यों दूसरों का सहारा ले कर जी जाए क्यों ना खुद को ऐसा बनाया जाए कि दुनिया हम पर नाज़ करे!" दिशा अक्सर कहती।
दिशा ने कंप्यूटर कोर्स शुरू कर दिया वो बाएं हाथ से कंप्यूटर चलाती वो भी इतनी कुशलता से कि सामने वाला दंग रह जाता । कंप्यूटर कोर्स के साथ साथ उसने अपनी आगे की पढ़ाई जारी रखी।
पढ़ाई पूरी हो गई पर जिंदगी अभी इतनी आसान नहीं थी ...जहां भी नौकरी के लिए जाती रिजेक्ट कर दी जाती ... यही तो हमारे समाज में कमी है एक इंसान खुद से , किस्मत से यहां तक की भगवान से लड़ जाता पर हमारे समाज का क्या जहां किसी की क्षमता को उसके रंग रूप , या शारीरिक सरंचना से जज किया जाता है....! हिम्मती इंसान का साथ देने की जगह उसे पल पल उसकी अक्षमता का एहसास करवाया जाता है।
खैर ये भी सच है कि हमारे ही समाज में कुछ एक अच्छे लोग भी हैं शायद उनसे ही इंसानियत का वजूद जिंदा है। वैसे भी जब दिशा किस्मत के भरोसे बैठ अपनी तकदीर का रोना नहीं रोई तो कहीं ना कहीं कोई ना कोई तो उसके हौसलों की कद्र करने वाला होगा ही।
" मिस दिशा क्या आपको लगता है आपके काम में आपके साथ हुआ हादसा रुकावट नहीं बनेगा !" एक कंपनी में इंटरव्यू के दौरान ये सवाल पूछा गया।
" सर अगर वो हादसा रुकावट बनना होता तो अब तक बन चुका होता। अब ना तो कोई हादसा ना ही किस्मत मेरी राह की रुकावट बन सकती है क्योंकि मैने अपनी किस्मत खुद लिखी है जो सुनहरे अक्षरों से नहीं मेहनत की स्याही से लिखी गई है !" दिशा ने आत्मविश्वास के साथ कहा।
" और अगर आपका यहां सिलेक्शन नहीं होता है तो ..?" उससे फिर से सवाल किया गया।
" तो दूसरी जगह ट्राई करूंगी वहां नहीं हुआ तो फिर तीसरी जगह ...पर हां थकूंगी नहीं !" दिशा मुस्कुरा कर खड़ी होती हुई बोली।
" अरे मैडम कहां चली आप भले किस्मत को ना मानती हों पर हम तो मानते हैं और किस्मत ने आप जैसी हिम्मती और मेहनती लड़की से हमे मिलाया है यूंही तो नहीं जाने देंगे हम आपको !" कंपनी का बॉस मुस्कुरा कर बोला।
और आखिरकार दिशा ने अपनी किस्मत अपनी मेहनत से बदल ही दी ...! आज दिशा ने अपनी जिंदगी की दिशा तो मोड़ हो दी बल्कि कितने लोगों को दिशा दिखाने का काम भी करती है वो ... खुद के जैसे हादसा झेले लोगों की काउंसलिंग करके।
दोस्तों ये सच है हिम्मते मर्दा तो मददे खुदा। वरना हादसों के बाद किस्मत का रोना रोते हुए बैठ जाने वाले लोग हमेशा रोते ही रह जाते।
उम्मीद है दिशा की कहानी आपको भी एक दिशा दिखाएगी!
