Priyanka Shrivastava "शुभ्र"

Drama

4.8  

Priyanka Shrivastava "शुभ्र"

Drama

मायका

मायका

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नाती-नतनी जब मेडिकल और इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने हॉस्टल विदा हो गए तब पूरे बाइस सालों बाद बिटिया इत्मिनान का समय बिताने मेरे पास आ रही थी। मैं भी काफी उत्साहित थी। उसके पसंद से घर सजा-संवार रही थी। इसी बीच समधन जी का फोन आया - “मैं बहुत खुश हूँ कि पूनी आपके पास कुछ समय गुजारने जा रही है। उसे बिल्कुल बाइस साल पूर्व वाला माहौल दीजिएगा, वही पढ़ने-लिखने वाली बिटिया समझिएगा। मेरे पास आती है तो वह कर्तव्य बोध से बंधी रहती है। मैं कितना भी चाहूँ वो कर्तव्य बोध उससे बचपना छीन लेता ……”

वो जाने क्या-क्या बोले जा रही थी और उनकी प्यार वाली बोली से भी न चाहते हुए भी मुझमें खीज सी उत्पन्न होने लगी थी। वो मेरी बेटी है, ऐसा गुमान सा होने लगा था और मैं मेरी बेटी की भावना में बह कुछ ज्यादा ही तैयारी कर ली। 

  पूनी जब आई तो खुशी के मारे उसके बदले मेरे पाँव धरती पर नहीं पर रहे थे। घर का हर कोना उसके पसंद को दर्शा रहा था। खाना में तो इतने व्यंजन बन गए थे कि पूनी हँसते हुए मुझसे लिपट गई - “मम्मा.. पूरे माह का खाना एक ही दिन बना लिया क्या..? तुमने मुझे क्या समझ लिया; मेरी भी उम्र हुई अब मैं इतना कुछ पल में थोड़े ही न खा सकती हूँ।” 

  अरे हम सब मिल कर खाएँगे। पति भी मुस्काते हुए बोले चार दिन से तुम्हारे आने की तैयारी कर रही हैं तुम्हारी माँ। इसी बात पर एक प्यारी सी नोक-झोंक हो गई।

  पूनी इतने दिनों बाद मायके बिल्कुल अकेले आ रही है कुछ दिन हमलोगों के साथ रहने, ये बात पूनी के ननिहाल ददिहाल सभी जगह फैल चुकी थी। सब बहुत खुश थे। सभी फोन कर मिलने आने की बात कर रहे थे। तभी मेरी छोटी नन्द का फोन आया - “भाभी मेरी भतीजी से कोई काम मत करवाइएगा। उसे मायके का पूरा सुख उठाने दीजिएगा। मायका का सुख बहुत अनोखा होता है भाभी। यहीं आकर तो हम लड़कियाँ अपने सारे गिला-शिकवा को भूल रिलैक्स हो जाते हैं। शांत मन से रहने में जो सुकून मिलता है उससे शारीरिक और मानसिक दोनों तरह का आराम कितना मिलता है क्या बताएँ। हम आपलोगों के साथ यह सुख बहुत उठाए हैं, इसलिए इसकी महत्ता जानते है…”

  उनकी बातों के साथ मैं पुराने दिनों में खो गई - जब भी छोटी ननद आती उनसे मिलने और दोनों बड़ी बहनें भी आ जाती। उनकी सहेलियों में से एक या दो अवश्य मंडराती हुई अपने-अपने ससुराल से आ टपकती। अब मेरी ड्युटी इन लोगों के खिदमत में लग जाती। मुझे बड़ी कोफ़्त होती। हमेशा सोचती ऐसे नहीं चलेगा अब तो कुछ कहना पड़ेगा पर इतने प्यार से वो गले लग कहती - भाभी आपके साथ रह बचपन याद आ जाता है। कैसे चिंता मुक्त हो विचरते थे। केवल पढ़ाई की चिंता रहती थी उन दिनों, आज कुछ भी नहीं। आज भी वही बचपन वाला आनन्द आता है। यहाँ आ बिल्कुल रिलैक्स हो जाती हूँ ….

  प्यारी ननद जब मायका के महत्व पर प्रकाश डाल रही थी तो समधन की बातें भी जो उस समय अजीब लग रही थी अब प्यारी लगने लगी। वही ननद जिनके आगमन को सुन मन भारी हो जाता आज उनके लिए भी प्यार छलक उठा। वो भतीजी के लिए प्यार का प्रदर्शन कर रही थी और मैं उन दिनों की वादियों में पहुँच उस समय की जमी हुई खीज को प्यार की गर्माहट से पिघला रही थी।

      


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