मायानगरी
मायानगरी
अरे यार स्निग्धा, उठ देख तेरे लिए किसी फ़िल्म डायरेक्टर का फोन आया है।” चित्रा ने कहा तो स्निग्धा को यकीन नहीं हुआ। वो नींद में ही बोल पड़ी- “देख यार चित्रा, मैं मज़ाक के मूड में नहीं हूँ। मुझे नींद आ रही है। वैसे भी कल सुबह से लेकर आज सुबह चार बजे तक मैंने पोस्टर तैयार किया है।”
“नहीं यार मैं सच कह रही हूँ। चल अब ब्यूटी क्वीन की तरह तैयार हो जा। मैं भी तेरे साथ चलती हूँ। फर्स्ट ऑडिशन है तेरा, कही कोई गड़बड़ी ना कर दे।” चित्रा ने कहा।
इतना सुनते ही स्निग्धा उछलकर खड़ी हुई और तैयार होने के बाथरूम में भागी। उसके मन मे हज़ारों उमंगों ने करवट ली। वहाँ जाऊँगी तो यह करूँगी, वह करूँगी सोचते सोचते स्निग्धा ऑडिशन की जगह पंहुची तो उसकी हर उमंग घबराहट में बदल गई।
जब उसे अंदर बुलाया गया तो पहले उसने जाने से मना कर दिया। फिर चित्रा के समझाने पर जैसे ही वो अंदर गई तो मुँह में पान मसाला खाते हुए एक मोटे से आदमी को देखकर डर गई। उस आदमी ने उसे एक कागज पकड़ाया और संवाद बोलने के लिए कहा लेकिन उसे कुछ सूझ ही नही रहा था।
जब उससे एक भी डॉयलॉग नहीं बोला गया तो वो मोटा आदमी उसके पास आकर उसे गलत तरीके से छूने लगा। यह देखकर स्निग्धा के हाथ पैर फूल गए और वो बिना कुछ कहे वहाँ से भाग गई। भागते हुए उसके कानों में यही बात गूंज रही थी- “अरे कहाँ जा रही हो? फिल्मों में भी तो तुम्हें यही सब.......
तालियों की गड़गड़ाहट से उसकी सोच टूटी जहाँ पर उसके छोटे कद को बेइज्जत नहीं बल्कि उसके हुनर को सलाम किया जा रहा था।