Twinckle Adwani

Drama Inspirational

3.8  

Twinckle Adwani

Drama Inspirational

मानसिकता

मानसिकता

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पड़ोस में रहने वाली सुधा लंबे समय से नेत्रदान जागरूकता का काम कर रही थी इसी बीच उनके पड़ोसी दादा की मृत्यु हो गई थी डॉक्टर टीम को बुलाकर नेत्रदान कराना चाहा मगर दादी व चाचाजी नहीं मानी, नेत्रदान करेंगे तो अगले जन्म में अंधे पैदा होंगे।

सुधा ने बहुत कोशिश की मगर व सफल ना हो पाए उलटा दस बातें सुना दी गई, बेवजह के काम करती हो यह सब फालतू काम में ईश्वर ने जो शरीर दिया है सोच समझ कर दिया जिसको अंधा पैदा करना था ना ,किया तुम क्या किसी को रोशनी देने का काम में लगी हुई है भगवान बनना चाहती हो क्या


मगर सुधा उसे अनसुना कर गई अपने काम में लगी रहती है उसके जागरूकता अभियान के कारण कुछ लोगों में जागरूकता आई और कई लोगों को नेत्रदान हो पाए अक्सर अखबार की सुर्खियों में भी वह रहती थी लोगों को लगता, दिखावा है और वास्तव में ऐसा नहीं था, और निस्वार्थ कई सालों तक इस काम में लग रही जिसके चलते उसे कई बार समाज द्वारा सम्मानित किया गया

 मगर कुछ लोग उससे चढ़ते और उसे ढोंगी कहते हैं

 कुछ सालों बाद पड़ोस में ही रहने वाली दादी ,चाची थी जो हमेशा नेत्रदान का विरोध करती थी, उनके बेटे को खेलते समय आंखों में इतनी गहरी चोट लगी जो कई दिनों तक अस्पताल में रहा व उसके नेत्रों की ज्योति चली गई, तब उन्हें नेत्रदान का महत्व समझ में आया और सुधा को जब पता चला वह खुद उससे मिलने गई, और आश्वासन दिया कि जब भी कोई नेत्रदान के लिए आएगा तो मैं जरूर कोशिश करूंगी कि पहले बच्चे को नेत्र ज्योति मिले और कुछ ही महीनों बाद ऐसा संभव हो पाया जिससे बच्चे की नया जीवन मिला

जो लोग उसका विरोध करते थे उसे ढोंगी कहते थे वह शर्मिंदा होने लगे, 

सुधा ने कहा, वास्तव में जीवन बड़ा ही अनमोल होता है और शरीर भी उतना ही शरीर का एक भी अंग न होना ,निराशा, परेशानी का कारण बनता है किसी को भी किसी भी तरह की मदद कर सकते हैं उसे करना चाहिए

नकली हाथ पैर बाल से तो काम चल जाता है मगर नकली आंखों से काम नहीं हो सकता इसलिए हमें समय रहते जागरूकता समाज में लानी चाहिए 


 जब परिस्थितियां खुद पर होती तो लोगों की मानसिकता बदल जाती है। मगर उसके पहले बदल जाए तो ज्यादा उचित है



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