मानो या ना मानो
मानो या ना मानो
हमारे समाज में अक्सर ऐसे लोग मिल जाते जो कहने को नास्तिक होते है लेकिन असल में वो आस्तिक होते हैं।
मेरा मानना है कि अगर आप गॉड को नहीं मानते या देवत्व को पाखंड मान रहे है तो आप मान सकते हो लेकिन किसी को बाध्य नहीं कर सकते हो।
और आप ऐसा भी नहीं कर सकते कि आप खुद जिस तरह विरोध कर रहे है लोगो की मानसिकता को चोट पहुंचाएं।
मैं सिर्फ देवत्व की बात नहीं कर रहा हूं और भी कई विषयों पर नजर डाल सकते है आप।
अगर आप खुद बिना किसी सहारे के खड़े है तो जाहिर है कि लोग आपको गिराने की कोशिश करेंगे।
वर्तमान सरकार के बारे में अगर कुछ कहें तो कुछ लोगो का मानना है कि सरकार हिंदुत्व की है,किसी का कहना है सरकार सिर्फ अंबानी की है, किसी का कहना है की सरकार तानाशाह है।
"अरे भाई किसे कह रहा है तू , तूने ही तो ये सरकार बनाई है और तू ही इसमें कमियां निकाल रहा है।"
यही था मेरे कहने का तात्पर्य कि समाज ऐसे ही लोगों से भरा पड़ा हुआ है।
जो खुद की बात खुद है कट देते है, और समाज को दोषी ठहरा देते है।
मानो या ना मानो.... कहने का तात्पर्य यह है कि कभी कभी कोई अनकहा, अनदेखा, अनसुना कोई ऐसा भी चीज़ होता है।
जिसे, हम माने या ना माने पर वह सत्य होता है।
इसी प्रकार हमारे जीवन में कुछ ऐसी भी घटनाएं हो जाती हैं।
जिसे, हम माने या न माने, पर सरकार या कोई और वह चीज़ हमें करने पर मजबूर कर देती है।
लोगों को एक नया जीवन देने का प्रयास करें, हमारे गांव में एक ऐसे गणमान्य महानुभाव हैं जो खुद के घर की पूजा पाठ को बिना किसी कर के पूरा करते है।
और बाहर लोगों के लिए ज्ञानचंद बनकर इसे छोड़ने को बोलते हैं, अक्सर उनकी बात कोई नहीं टालता है क्योंकि वो दो टूक इंसान है।
सब सुनते है बाद में तो गाली भी निकाल देते हैं। एक दिन मैंने कह दिया कि ताऊजी आप तो पूजा करते है फिर हमेशा हमारे ही पीछे पड़े रहते हो।
तू कुछ बोले नहीं।
अजीब है ये दुनियां खुद की बात खुद काटकर खुद को ही महात्मा समझ लेते है।
किसी ने सच ही कहा कि इंसान की समझ बस इतनी है कि जानवर कहो तो नाराज हो जाता है और शेर कहो तो खुश हो जाता है,
ये भी नहीं जानता कि शेर भी एक जानवर ही है।