Arunima Thakur

Inspirational

4.7  

Arunima Thakur

Inspirational

माँ

माँ

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    माँ पर कहानी लिखनी है तो मेरे मेरे बचपन की सारी यादें उस छोटी सी याद को गोद में लेकर कर खड़ी हो गई I यह तब की बात है जब हम बहुत छोटे थे, गाँव में रहते थे। गाँव का तिमंजिला बहुत बड़ा घर, बहुत ही बड़ा दुवार और दुवार को घेरकर बना गल्लाघर, गाय की गौशाला, भैंसों का तबेला, गाड़ियों के खड़ा करने के गैराज, घोड़े का अस्तबल, अतिथि घर, पुरुषों का रसोईघर जहाँ मांसाहार पकता था। वही बगल में मुर्गियों का दड़बा जहाँ बहुत सारी मुर्गियाँ पली थी। वही एक कोने में चक्कीघर और पोस्ट ऑफिस भी था और पोस्ट ऑफिस के बगल में कबूतरों का घर, बड़े-बड़े तीन नीम के पेड़ और दुवार के बीचो बीच में गोदनी का पेड़ और उसके चारों तरफ चबूतरा। वही एक बड़ी सी मड़ैया, वहीं बाबा की चौपाल लगती थी। बहुत सारी गाय भैंसों और घोड़े के साथ दुआरे चौदह कुत्ते भी रहते थे। सुनते हैं पहले हाथी भी था। समझ लीजिए पूरा घर नहीं अजायबघर / चिड़ियाघर था। अरे मैं तो बताना भूल ही गई आठ खरगोश भी थे लाल लाल आँखों वाले सफेद बर्फ के गोले जैसे। 

      इन सब के बीच एक दिन ना जाने कहॉं से भटकता हुआ वह आ गया। वह हाँ एक छोटा सा बंदर। पता नहीं कहाँ से आया था। किसी मदारी का बंदर था या अपने समूह से बिछड़ गया था। लोग अटकलें लगाते कि उस दिन फलाने परियर / बिठूर नहाने गए थे उन्हीं की बैलगाड़ी के पीछे पीछे चला आया होगा। खैर यह तो पता नहीं चला कि वह कहाँ से आया पर वह बड़े अधिकार से सीधे हमारे घर में आया। मानो उसे मालूम था कि उसे यहाँ आसरा मिल जाएगा। आते ही गोदनी के पेड़ पर चढ़कर बैठ गया। दोपहर को खाना खाने के बाद जब बाबा कुत्तों को रोटी डाल रहे थे तब कुत्तों से डरे बगैर सीधे बाबा के सामने जाकर खड़ा हो गया। मजे की बात कुत्तों के लिए फेंकी गई रोटी नहीं उठाई I बाबा भी थोड़ी देर देखते रहे बंदर को बंदर उन्हें। जब उसने गिरी हुई रोटी नहीं खाई तो बाबा बोले, "अच्छा जाओ बैठो तुम्हरे लिए खाना मंगवाइत हन।" वह गोदनी के पेड़ के नीचे चबूतरे पर जाकर बैठ गया। बाबा ने आवाज लगाकर उसके लिए एक कटोरी में दूध रोटी मंगवाई। 

         सबको लगा था जैसे भटकता हुआ आया है वैसे ही चला जाएगा। पर वह नहीं गया। वह था बहुत ही शैतान। सुबह उठते ही हम सब की आदत थी जब पापा नौकरों के साथ दूध दूहा रहे होते थे हम भी वही पहुँच जाते। बिरजू काका सीधे गाय या भैंस के थन से दूध हमारे मुँह में डालते। हमें भी बहुत मजा आता। अब हमारे खेल में वह भी शामिल हो गया। सुबह हम जाते वह भी पीछे से आ जाता। हम बच्चों को खींचकर पीछे कर देता, मानो बोल रहा हो मैं पहले। हम दूध पीने जाते तो भैंस के गले से जाकर चिपक जाता अब भैंस बिदक जाती पर वह तो मानो जैसे दूध पीने के बाद आभार व्यक्त करता था या भैंस को परेशान करता था समझ नहीं आता। वैसे तो गोदनी के पेड़ पर बैठा रहता पर जहाँ हमें देखता या चार लोगों को वहीं पहुँच जाता। घोड़े की जब मालिश हो रही होती तो वह भी वहीं खड़ा रहता, कभी चक्कर काटता। जब कोई नहीं होता तो जाकर घोड़े के ऊपर बैठ जाता, उसके कान खींचता, कभी पूछ खींचता। मुर्गियाँ वही घूमती रहती, कुत्ते तक मुर्गियों को कुछ नहीं बोलते थे वह मुर्गियों को दौड़ाएँ रहता। पूरा दुवार मानो उसकी जागीर थी और तीनों नीम के पेड़ उसकी सल्तनत। अब तो वह इतना बदमाश हो गया था कि घर के ऊपर छत पर सूख रही चीजों को भी फैला देता था। आखिर उससे परेशान होकर उसके गले में जंजीर डालकर के पेड़ से बाँध दिया गया। जंजीर बहुत लंबी थी तो वह अपनी सुविधानुसार कभी पेड़ पर कभी चबूतरे पर बैठ सकता था। मजा तो तब आता, जब बाबा दोपहर को उसी चबूतरे के पास सोने जाते और वह उसी चबूतरे पर अपनी जंजीर पटकता। बाबा जग जाते तो वह दाँत दिखाकर हँसता। बाबा डंडा दिखाते तो शांत हो कर बैठ जाता। चालाक तो इतना कि उसने कुछ दिनों से जंजीर खोलना भी सीख लिया था| जब भागता था तो जंजीर को हाथों में पकड़ लेता था कि कोई जंजीर को पकड़कर उसे पकड़ ना सके। जंजीर खोलना भी उसे इसलिए सीखना पड़ा कि जब हम सुबह सुबह दूध पीने जाते तो उसे पीने नहीं मिलता था। वह वहीं पेड़ के पास चक्कर काटता, उछलता। वैसे हमने एक बात पर ध्यान दिया कि वह सब गाय भैंस के गले नहीं लगता था। एक भैंस जिसका नाम गुलाबो था, जिसको अभी एक माह का बछड़ा था बस उसी को परेशान करता था। कभी-कभी तो वह बछड़े पर जाकर बैठ जाता। नन्हा सा बछड़ा बेचारा डर कर भागता तो यह महाशय खूब खुश होते और सवारी का आनंद उठाते। अक्सर वह अपनी जंजीर छुड़ाकर आकर भैंस के गले में लटक जाते। भैंस खूब जोर से सिर हिलाती तो यह दूर जाकर गिरते, बद्‌द सेl एक दिन की बात है दोपहर को सब सो रहे थे। नौकर लोग भी शायद आराम कर रहे थे। बाबा भी वही पेड़ के पास सो रहे थे। बन्दर ने जंजीर पटकना शुरू किया। बाबा ने डंडा दिखाया फिर भी चुप नहीं हुआ। आखिर पटक-पटक कर कैसे भी करके उसने अपनी जंजीर खोल ली I वैसे तो इतने होशियार है कि जंजीर उठाकर भागते हैं। उस दिन जंजीर छोड़कर भैंसों के तबेले की तरफ भागे। बाबा डंडा लेकर उनके पीछे कि "तुमका बहुत दूध का चटकारा लग गवा है।" पर यह क्या वह तो आनन-फानन में वहाँ से एक बहुत बड़े काले साँप को पकड़ कर ले आया। सब की सिट्टी पिट्टी गुम, बंदर ने साँप के मुँह को पकड़ रखा था। साँप पूरी ताकत से उसके हाथों पैरों से लिपट रहा था। बंदर भाग कर आ कर अपने चबूतरे पर बैठ गया और साँप के मुँह को चबूतरे पर रगड़ना शुरु कर दिया तो साँप की पकड़ ढीली हुई। हम डर रहे थे कि बंदर है कहीं साँप को छोड़ दिया तो साँप उसको काट खाएगा। पर वह साँप को रगड़ता रहा। बीच-बीच में पता नहीं क्या. . उसको देखता सूंघता और फिर रगड़ता। रगड़ रगड़ उसने साँप के मुँह का छिलका निकाल दिया। 

        सब बहुत खुश हुए कि उसकी सतर्कता से एक बड़ी दुर्घटना बच गई। कहीं साँप जाकर छुप गया होता तो ? दूध निकालते समय या चारा डालते समय किसी को डस सकता था। कहीं भैंस को ही डस लेता तो ? दिन बीत रहें थे। बंदर जाड़ों में आया था। पूरी गर्मी बीत गई अब बारिश का मौसम आ गया था तो बाबा ने उसके रहने का इंतजाम गल्ला घर के बाहर वाले छप्पर के नीचे कर दिया था। यहाँ मुश्किल यह थी कि एक लंबे बाँस में उसकी जंजीर का गोल छल्ला डालकर बाँस को गाड़ दिया गया था। तो अब यहाँ पर वो जंजीर खोल नहीं पाता था। वहाँ बाबा के पास था तो कुत्तों की हिम्मत नहीं थी। यहाँ बंदर के लिए खाना रखा जाता और कुत्ते आकर मुँह डाल देते। एक-दो दिन तो उसने देखा फिर तो जैसे ही कुत्ते उसके खाने के पास आते वह चट् से कुत्ते की पीठ पर बैठकर उनकी पूँछ मरोड़ देता। कुछ दिन बाद कुत्ते भी उससे डरने लगे थे। बारिश का समय था तो हम भी रोज सुबह उठकर भैंस का दूध पीने नहीं जाते थे। क्योंकि फिसलन का डर था, तो बंदर को भी संतोष था। पर जिस दिन वह हमें भैंस के पास देख लेता खूब जंजीर पटकता, उछलता, शोर मचाता। 

       एक दिन की बात है पापा खेत से आए और ट्रैक्टर खड़ा किया और रामदीन को बोले, "रामदीन सुबह चार बजे ही निकलना है ट्रैक्टर में पेट्रोल भर लो। वही गल्लाघर के सामने ही ओसारे में पेट्रोल डीजल के बड़े-बड़े ड्रम रखे रहते थे। यह रामदीन का रोज का काम था। वह पाइप लेकर मुँह से खींच कर पाइप ट्रैक्टर में लगा देता था। शाम के पाँच साढ़े पाँच बजे होंगे पर बादल के कारण हल्का अंधेरा था। सरजू वही छप्पर के नीचे कुपिया (दिया) जलाने आया था। और पता नहीं क्या हुआ ? इधर सरजू ने कुपिया जलाने के लिए माचिस जलाई उधर रामदीन ने पेट्रोल का ड्रम खोला। भड़ाम ! कोई समझ ही नहीं पाया क्या हुआ ? क्या सरजू ने जलती हुई तीली हवा में उछाल दी थी ? पता नहीं पूरा पेट्रोल जलता हुआ हवा में छप्पर, गल्लाघर, रामदीन सब जल रहे थे। रामदीन तो जानवरों के लिए बनाई गई पानी की टंकी की ओर भागा और उसमें कूद गया। बाकी लोग कुएं से पानी निकालने के लिए दौड़े। उस समय कहाँ नल और पाइप होते थे ? जब तक कुएँ से पानी निकाला जाता छप्पर धूं धूं कर के जलने लगा। बाँस जलने के कारण चिटक रहे थे और उड़ उड़कर घर की छत पर रखे बिस्तरों पर गिर रहे थे ( उस जमाने में शाम से ही बिस्तर खोल देते थे कि थोड़ा ठंडा होते रहेंगे )। सब तरफ आग ही आग घर की औरतें छत पर भागी, जलते हुए गद्दे नीचे फेंके। कुछ लोग आग बुझा रहे थे। कुछ लोग रामदीन को लेकर शहर के अस्पताल की ओर भाग रहे थे I 

      इन सबके बीच में किसी को ना तो याद रहा। ना ही किसी को बंदर की चीखें सुनाई दी। बंदर अंदर उछल कूद रहा था। चिल्ला रहा था, जंजीर खोलने की कोशिश कर रहा था। तभी तबेले से गुलाबो खूंटा तूड़ा कर भागी और जलते हुए छप्पर के अंदर घुस कर उसने बाँस को ठोकर मारी। बाँस तो जल ही रहा था। झट से गिर पड़ा। बंदर उछलकर उसके गले से चिपक गया। इस बार गुलाबो ने सिर हिला कर उसे गिराया नहीं। वह जलते हुए छप्पर के नीचे से एक अवांछित जीव को बचा लाई थी। आखिर माँ थी। उसने बंदर को दूध पिलाया था जलने के लिए कैसे छोड़ देती ! 



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