Vidyashree Mehta

Abstract

4.4  

Vidyashree Mehta

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मां मेरी मां

मां मेरी मां

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एक दिन अचानक से मां की आवाज रसोईघर से आया, मां की आवाज में घबराहट ,परेशानी थी। अंदर जाकर देखा तो मां नीचे गिर पड़ी थी। घर में ना पापा थे ना भैया डर के मारे हाथ पैर कांप रहे थे। झट से पापा को फोन लगाइए तो पापा का फोन नहीं लग रहा था। और भैया का फोन लगाने की कोशिश करी तो स्विच ऑफ आ रहा था।

पड़ोसियों के मदद से मां को अस्पताल ले गई, जांच के बाद डॉक्टर ने कहा " बस कमजोरी की वजह से आपकी मां गिर पड़ी मां का ख्याल रखो और दवाई समय पर देते रहो" थोड़ी देर के बाद मां को होश आया और पूछने लगी "क्या तुम ठीक हो, तुम मेरे लिए खामखा परेशान हो गई मेरी बच्ची !चलो घर चलो घर में बहुत काम है और तुम्हें पढ़ाई भी करना है ना"

तभी मैं सोचने लगी मां अभी भी अपने बारे में नहीं हमारे बारे में सोच रही है फिर मां ने कहा चलो बहुत देर हो गई पापा और भैया आते होंगे।

घर जाने के बाद मां दवाई ले कर बोलने लगी "बेटी तुम पढ़ाई करो तुम्हारे लिए चाय बना कर ले आऊंगी।"

अरे मां क्यों परेशान हो रही हो तुम बैठो मैं देख लूंगी। मां "चलो ठीक है कहां कर सो गई "

रात के 9:00 बजने लगा पापा और भाई का कोई पता नहीं, फोन करने की कोशिश करी फिर भी कोई उत्तर नहीं मिला क्या करूं मुझे तो खाना बनाना नहीं आता था। और मां के बनाए हुए खाने की शिकायत करती थी।सोचने लगी मां हर दिन कहती थी "पढ़ाई के साथ-साथ घर का काम भी सीख लो लड़कियों को पढ़ाई और घर का काम दोनों भी जरूरी है और हर बेटी को एक ना एक दिन मां बनना ही पड़ेगा यही तो भारतीय संस्कृति है। इसलिए शास्त्रों में स्त्री को देवी का दर्जा दिया गया है"|

अभी मुझे एहसास हुआ कि पापा और भैया का इंतजार करते-करते मां थक जाती थी।मां जब पापा को पूछती थी "क्या हुआ इतनी देर क्यों हो गई "तब पापा का उत्तर" तुम क्या समझोगे ऑफिस का काम घर मैं कुछ काम धंधा नहीं बस फोन करती रहती हो"। लेकिन अब मुझे समझ में आ रहा है मां का दर्द मां अपने लिए कम अपने परिवार के लिए ज्यादा सोचती है। अपनों को छोड़कर पापा के परिवार को अपनाती है।

हर गम को भुला कर खुशी खुशी अपनों के साथ बिताती हैं।

हर गलती माफ करती है।

हे मां मेरी मां बस ईश्वर से यही दुआ है कि तुम सदा खुश रहो।

मां मेरी मां


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