माँ मैं ठीक हो गई
माँ मैं ठीक हो गई
बात उस समय की है जब मेरी अवस्था मात्र 5 से 6 बरस रही होगी
एक हादसे में मेरे दाहिने पैर का अंगूठा चोटिल हो गया और ऑपरेशन से उसे जोड़ने का कार्य डॉक्टरों द्वारा किया गया । परंतु सेप्टिक न फैल जाए इसकी जांच चल रही थी।
ज़ाहिर सी बात थी कि घर के सभी लोग बहुत चिंतित थे, माँ हर समय दुआओं में रोती । दादाजी पापा और चाचा हर डॉक्टर के पास मेरी रिपोर्ट्स लेकर घूमते।
परंतु इन सब चिंताओं से परे , मेरा बालमन बहुत प्रसन्न था। शायद मुझे उस समय उस डर का अंदाज़ा ही नही था जो मेरे अंगूठे के दोबारा काटने को लेकर सबके मन में था।
मुझे तो सबका खास अटेन्शन मिलना कुछ ज़्यादा ही पसंद आ रहा था।
जो भी आता मुझे अत्यधिक प्यार करता। मासी ,बुआ तरह- तरह के खिलौने मेरी पसंद के हर तरह के समान लेकर आते।
एक छोटे बच्चे को इतना स्पेशल फील कराया जा रहा था , तो वह चोट किसी सुखद भावना का अनुभव कराती।
फिर आखिर डॉक्टर ने अंगूठे की सब रिपोर्ट सही पाकर , 2 महीने का प्लास्टर किया।
माँ रोज़ गोद मे स्कूल लेकर जाती , वहां भी सभी टीचर्स का ममतामयी रूप दिखाई देता। घर पर ना ज़्यादा tv देखने पर डांट पड़ती , पसंद का खाना आदि मिलता अलग।
कुछ दिन तो इस सब मे बहुत आनंद आया । मगर एक बच्चे के लिए खुली हवा में घूमना , खेलना , कूदना और लड़कियों को खासकर नृत्य करना यही तो बचपन होता है।
धीरे धीरे समय बीतता गया । प्लास्टर खुलने में 8-10 दिन बाकी थे। जाने मन मे क्या विचार आया कि प्लास्टर खोलने की कोशिश करने लगी। माँ खाना आदि बनाने में व्यस्त थी। हमारी रसोई भी कमरे से काफी दूर थी। प्लास्टर लंबे बूट की शेप का था । हिला हिला कर पहले उसे निकाल दिया। फिर अंगूठे पर बंधी पट्टी खोली।
उफ्फ्फ वह प्रसन्नता!
कितने दिनों बाद प्लास्टर के बिना आज अपने पैरों पर खड़ी थी। भागी, कूदी दस -बारह चक्कर बरामदे में लगाने के बाद प्लास्टर हाथ मे लिए माँ के पास पहुंची।
माँ मैं ठीक हो गई देखो बिल्कुल ठीक
मगर यह सब देखते ही मां बहुत बुरी तरह घबरा गई। फ़ौरन पापा को दुकान से डॉक्टर के यहाँ पहुंचने को कहकर, माँ मुझे लेकर डॉक्टर के यहाँ भागी। डॉक्टर जी ने एक महीने का प्लास्टर फिर से बांध दिया।
मगर मेरा बालमन तो यह सोच सोचकर प्रसन्न था कि आज कितने दिन बाद मैं जी भर के भागी कूदी और नाची थी।