माँ की सूती साड़ी
माँ की सूती साड़ी
आज मीता के यहाँ उसके बेटे का मुंडन संस्कार था। जिसके उपलक्ष में उसके ससुराल वालों ने छोटी सी पार्टी रखी थी। जिसमें उसके मायके से उसके छोटे भाई, बहन आये थे। मीता तीन भाई बहनों में सबसे बड़ी थी। उससे छोटी एक बहन और सबसे छोटा भाई।
कहने को तो उसका भाई चौदह, पन्द्रह साल का हो गया पर आज पहली बार माँ को छोड़ कर अकेले उसके घर आया था। तो मीता उसका बहुत ख्याल रख रही थी।
घर में चूहे बिल्ली की तरह लड़ने वाली उसकी छोटी बहन गीता भी अपने भाई का खूब ख्याल रख रही थी।
भाई बहन दोनों को अपने सामने खाना खिलाने के बाद मीता ने उन्हें लिटा दिया। और खुद जाकर बाकी के काम निपटाने लगी।
सभी काम करके जब वो अपने कमरे में अपने बेटे के पास जा रही थी तो वो एक बार फिर भाई बहन को देखने आ गई कि वो सोये है कि नहीं।
पर ये क्या बहन तो जहाँ सब भूल कर स्वप्न लोक में जा चुकी थी वहीं भाई परेशान होकर करवटें बदल रहा था। मीता वही बैठ कर प्यार से भाई के बालों में उंगलियाँ घुमाते हुये पूछा..... .....
"क्या हुआ बेटा ? नींद नहीं आ रही है क्या?
भाई मीता की गोदी में सर रखते हुये बोला.....
" नहीं दीदी!! वो माँ की साड़ी मुँह पर ढक कर सोने की आदत है न। इसलिये बिना उनके मुझे नींद ही नहीं आ रही। कब से सोने की कोशिश कर रहा हूँ।"
भाई की बात सुनकर मीता को हंसी आ गई। शादी से पहले वो भी तो अपनी माँ की साड़ी की फ़ैन थी। जब भी वो कॉलेज से या कहीं से भी आती दौड़ कर अपनी माँ से चिपक जाती थी। और माँ अपनी नर्म मुलायम सूती साड़ी से प्यार से उसका माथा पोंछते हुये बोलती.......
"मेरा बच्ची कितनी थक गई। तू बैठ मैं अभी पानी लेकर आती हूँ। "
पर मीता हमेशा अपनी माँ की ठंडी - ठंडी साड़ी को अपने चेहरे पर लगा कर बोलती....
" नहीं माँ पानी की जरूरत ही नहीं है। आपकी ये साड़ी कितनी ठंडी और नर्म है। बस आप यूँ ही मेरे पास बैठिये और मैं इसे ऐसे ही अपने चेहरे पर लगाये रहूँगी। बड़ा अच्छा लग रहा है। "
माँ भी खुश होकर कूलर पंखे चलने के बावजूद अपने पल्लू से हवा करके बड़े प्यार से अपनी गोद में लिटा लेती !
सच में भाई की तरह मीता भी कहाँ भूल पाई थी उस एहसास को। ससुराल में गर्मी में काम करती मीता को अक्सर वो माँ की साड़ी का पल्लू याद आता था। तभी तो वो माँ की एक सूती साड़ी उठा लाई थी अपने साथ।
जब भी उसे माँ की याद आती वो उसी साड़ी को अपने से चिपटा कर माँ के मखमली एहसास में खो जाती। "
आज भी मीता ने माँ की वो साड़ी अपने भाई को उड़ा दी। जिसे देखकर वो खुश होते हुये बोला........
" वाह दीदी माँ के एहसास के साथ इसमें से उनकी खुशबू भी आ रही है। अब में चैन से सो जाऊंगा। "
और सच में थोड़ी देर में ही भाई स्वप्न लोक की सैर करने लगा था।
मीता ने धीरे से अपने भाई का सर गोदी से तकिये पर रखा और निश्चिंत होकर खुद भी अपने बेटे के पास चल दी। क्योंकि अब उसे यकीन था की माँ की सूती साड़ी की ठंडक उसके भाई को रात भर चैन से सुलायगी।