"मां की सीख"
"मां की सीख"


सच पूछा जाये तो स्कूली शिक्षकों ने मुझे ज्यादा प्रभावित नहीं किया या कहो कि हमारे समय में शिक्षक छात्रों से ज्यादा घुलते-मिलते नहीं थे।इसका एक और कारण हो सकता है कि जिस स्कूल में हम पढते थे,वहां हमारी मम्मी स्वयं अंग्रेजी विषय की अध्यापिका थीं।मम्मी स्वभाव की बहुत सख्त थीं। कहीं किसी शरारत की उनके पास शिकायत ना चली जाए तो वैसे भी एक सीमा में ही रहते थे।पढ़ाई में ठीक ठाक थे।.
फिर दूसरे शहर में 12वीं तक पढ़ाई हमने रेगुलर की पर ये को-एड इण्टरकालेज था जहां पुरुष शिक्षक ही थे। किसी भी अध्यापक ने हमें कोई ज्यादा प्रभावित नहीं किया।उसके बाद बीएड मैं एक प्राध्यापिका थीं शारदा जी नाम था शायद जो हमें साइकोलॉजी और इंग्लिश सब्जेक्ट पढ़ाती थीं। वह भी बस अपने स्टाइल की वजह से हमें अट्रैक्ट करती थीं।अर्चना जी कम उम्र की बजह से। बस ये सब कक्षा में आतीं,पढातीं और चली जातीं।
इस तरह विद्यालयी शिक्षक ने तो नहीं लेकिन एक शिक्षक के रूप में सबसे ज्यादा जो प्रभावित किया है वह हमारी मां ही थीं।बेशक उनसे बहुत डरते थे हम,उनकी बहुत सी रोक-टोक हमें पसंद नहीं थी।कई बार हम भाई-बहन आपस में उनकी आलोचना भी करते थे।लेकिन सच्चे अर्थों में कहीं ना कहीं हम दिल से जानते थे कि वह अपनी जगह सही हैं और हमें सही मार्गदर्शन दे रही हैं।
उनकी सबसे बड़ी सीख थी वह थी लड़कियों को हर माहौल में एडजस्ट करना आना चाहिए क्योंकि शादी के बाद अलग माहौल,अलग परिवार,अलग खानपान,अलग रीति- रिवाज बहुत कुछ अलग अलग हो जाता है और जीवन में बिना त्याग के कुछ नहीं मिलता।सीख तो और भी बहुत थीं उनकी लेकिन एक सीख विशेष के बारे में बताऊंगी जिसने जीवन में बहुत साथ दिया। वह चीज थी जिसे हम सब बहिनों ने गांठ बांध लिया।जिसने मुझे शादी के बाद बिल्कुल अलग माहौल अलग संस्कृति में ढलने में काफी मदद की।
मैं यू. पी. की और पति हरियाणा के यानि कि बहुत सी चीजें बिल्कुल अलग,बोलना-चालना, खाना-पीना,पहनना और रीति रिवाज भी।एक तो ससुराल में वैसे ही निभाना कोई आसान बात नहीं है ऊपर से सब कुछ अलग अलग हो तो..
लेकिन मां की जो सीख थी सामंजस्य स्थापित करने की उसने बहुत ज्यादा मदद की उनकी डांट डपट की बजह से सास की डांट का बुरा नहीं माना,उनकी चुप रहने की सीख ने सासु को शांत रखने में मदद की और उनकी एडजस्ट करने की सीख ने ससुराल में सभी के साथ सामंजस्य बिठाने में अत्यधिक मदद की।
और आज मैं कह सकती हूं कि मैंने ससुराल में अपना एक स्थान बनाया और आज मैं एक सुखी जीवन जी रही हूं वह उसी सीख का नतीजा है।
सामंजस्य बिठाना परिवार से,समाज से,अपनी और दूसरों की इच्छाओं से।
आज मां नहीं हैं पर उनकी सीख हमेशा मेरे साथ है।