Kameshwari Karri

Tragedy Inspirational

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Kameshwari Karri

Tragedy Inspirational

माँ की चिट्ठी

माँ की चिट्ठी

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पति के गुजरने के बाद भवानी के बेटे ने उसे अपने साथ घर ले जाना चाहा पर भवानी अपने पति की यादों के सहारे यहीं इसी गाँव में ही रहना चाहती थी । इसलिए उसने बेटे से कहा अभी नहीं आऊँगी ।एक साल तक तो यहीं रहने दे बाद में सोचूँगी । बेटे ने भी सोचा ठीक है एक साल की तो बात है बीच बीच में आकर देख लूँगा ।ऐसा सोचकर वह अपनी पत्नी के साथ वापस चेन्नई चला गया । पूरा घर ख़ाली होने के बाद भवानी अकेले ही घर में रह गई । बीते हुए दिनों की यादों ने उसे आ घेरा । ऐसा लगता था कि जैसे कल की ही बात है ।भवानी जब अठारह साल की थी तब ही उसकी शादी घनश्याम से हो गई थी । एकदम छुई-मुई सी बनकर ढेरों सपनों को आँखों में सजाकर ससुराल में कदम रखा था । ससुराल में सब बहुत अच्छे थे ।ससुराल में बहुत प्यार मिला था कभी भी यह महसूस ही नहीं हुआ कि उसने अपना मायका छोड़ दिया है । घनश्याम तो उसे अपनी सखा समझता था हर छोटी से छोटी बात उसे बताता था । उसका बहुत ध्यान देता था । दिन पंख लगाकर ऐसे उड़े कि उस उड़ान भरने में सास ससुर पीछे रह गए ।उन्हें छोड़ कर चले गए थे । भवानी के भी दो बच्चे हुए लड़का बड़ा था अमित और प्यारी सी लड़की थी रचना । कब बच्चे बड़े हो गए पता ही नहीं चला । साल महीने गुजर गए जैसे कि रात सुबह के आते ही छुप गई हो । अमित इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करके नौकरी भी करने लगा और रचना ने बी एस सी कर लिया । जब अमित के दोस्त राघव ने अमित से रचना की शादी के बारे में पूछा उसका कहना था कि अगर घर में एतराज़ न हो तो वह रचना से शादी करेगा तब हमें महसूस हुआ कि हमारे बच्चे वाक़ई बहुत बड़े हो गए हैं । 

कहते हैं न कि नेकी और पूछ पूछ राघव जैसा लड़का चिराग़ लेकर ढूँढने पर भी नहीं मिलेगा । हम सब उसे अच्छे से जानते थे और रचना ने भी कोई एतराज़ नहीं किया था । बस फिर क्या चट मँगनी पट ब्याह हो गया ।राघव के घर में भी सिर्फ़ माँ ही थी ।अकेला लड़का था ।गाँव में खेती बाड़ी और एक पुस्तैनी मकान था । माँ गाँव में ही रहती थी । राघव के पास कभी-कभी आकर दस पंद्रह दिन रह जाती थी । 

रचना शादी के बाद राघव के साथ हैदराबाद चली गई थी । अमित की शादी भी उसके साथ ही नौकरी करने वाली लड़की दिशा से हो गई । वे दोनों चेन्नई में रहने लगे । 

इतने सालों से भरा पूरा परिवार था । अब सभी पंछियों के पर आ गए थे । वे अपने अपने ठिकानों को ढूँढते हुए अपनी मनचाही मंज़िल की तरफ़ निकल गए और अंत में रह गए भवानी और घनश्याम । पहले तो दोनों को घर काटने के लिए दौड़ता था परंतु दोनों अपने पुराने दिनों की यादों में जी लिया करते थे । अब उन खट्टी मीठी यादों में उन्हें अपनी मेहनत मुश्किलें और उनसे उभरने के लिए किए गए संघर्ष याद आते थे । दोनों को कभी जी भरकर बातें करने का समय नहीं मिलता था ।आज वे अपनी ज़िंदगी जी रहे थे परंतु विधि का विधान ने कुछ और ही तय किया था ।एक रात घनश्याम बाथरूम में फिसल कर गिर गए और दीवार से सर के टकराने से वहीं उनकी मृत्यु हो गई । दोनों बच्चे आए क्रिया कर्म के बाद बेटे ने बहुत जिद की थी ।अपने साथ चलने के लिए पर भवानी ने एक साल की मोहलत माँगी थी । देखते ही देखते एक साल बिना पति के ही गुजर गया । ईश्वर ने दोनों को सात जन्मों का साथ दिया है तो बीच में ही एक को ले जाकर ना इंसाफ़ी कैसे कर सकते हैं । अब साल होने को है भवानी डर रही थी कि गाँव की यादों को छोड़ कर शहर की तरफ़ जाना पड़ेगा । कैसे मनाऊँ बेटे को कि कुछ साल और यहीं अपने पति की यादों के सहारे जीना चाहती हूँ । उसने सोचा ईश्वर के भरोसे छोड़ देती हूँ जैसा होना है वैसे ही होगा । होनी को कौन टाल सकता है । तभी फ़ोन की घंटी बजती है । भवानी अपने ख़्यालों की दुनिया से बाहर आई और फ़ोन उठाया तो रचना थी "माँ कैसी हैं…?" इधर उधर की बातें करने के बाद उसने कहा "माँ पिताजी को गए एक साल हो जाएगा और बरसी पर आकर भाई आपको अपने साथ ले जाएगा । इसलिए मैं सोच रही थी कि थोड़े दिन आप मेरे पास भी आकर रहेगी तो हमें भी अच्छा लगेगा ।बच्चे आपको बहुत याद करते हैं ।बोलिए कब की टिकट कराऊँ ।" भवानी ने कहा "रुक जा मैं सोचकर बताऊँगी इतनी भी क्या जल्दी है।" 

पड़ोस में रहने वाली रुक्मिणी देवी का बेटा भी हैदराबाद में ही रहता है ।वह अपने माता-पिता से मिलने आया था तो भवानी ने उसके साथ जाने का फ़ैसला कर लिया और टिकट कटाकर रचना को बताया । भवानी ने वहाँ नाती नाते के लिए कुछ नमकीन और मिठाई बनाया और ट्रेन में सवार होकर चली गई । राघव स्टेशन पर लेने आया । घर पहुँचकर रचना और बच्चों को गले लगाया तभी देखा रचना की सास सरला भी वहीं थीं ।उन्हें नमस्ते किया और हाल-चाल पूछा । भवानी ने देखा सरला जी बहुत ही कमजोर दिखाई दे रही थी । पहले जैसा जोश उनमें दिखाई नहीं दे रहा था । 

बच्चों ने नानी को घेर लिया उनके लाए हुए सामानों पर टूट पड़े उनकी तरफ़ हँसते हुए देखा और नहाने चली गई । रचना ने खाना परोसा सबने मिलकर खाया ।खाना खाते समय भी सरला जी ने कुछ नहीं कहा थोड़ा सा खाकर वे उठ गईं । भवानी ने देखा सरला पूरे घर का काम अकेले ही कर रही है ।झाड़ू ,पोंछा ,कपड़े धोना सब काम करके वे अपने कमरे में आराम करने गई कि नहीं रचना ने पुकारा "माँजी आपने पेड़ों में पानी नहीं डाला है।"वे फिर वापस आ गई और पेड़ों को पानी देने लगी । जब भवानी ने रचना से कहा रचना तुम्हारे पास इतने नौकर थे ।वे सब कहाँ गए सरला जी क्यों काम कर रही है ? रचना ने कहा "माँ आप नहीं जानती हैं ये इतनी चंट हैं कि बीमारी का बहाना करके यहाँ रहने आ गई हैं । पाँच महीने हो गए हैं ।अभी भी यहीं हैं मैं इतने काम अकेले कैसे करती बोलिए न वैसे भी वे मेहमान तो नहीं हैं ।यहीं रहने आ गई हैं फिर मैं अकेले इतने लोगों का काम क्यों करूँ मुझसे नहीं होता वैसे भी आपको मालूम है इनकी दवाइयों का ख़र्चा फिर खाना यह सब करते हुए नौकरों की तनख़्वाह । न बाबा न मैं इतने पैसे नहीं खर्च कर सकती ।इसीलिए मैंने नौकरों की छुट्टी कर दी है । गाँव में भी ये अपना काम ख़ुद करतीं थीं और पर हाँ यहाँ थोड़ा ज़्यादा लोगों के लिए काम करना पड़ता है पर हम सब उनके अपने ही तो हैं ।" 

भवानी ने कुछ नहीं कहा रचना हमेशा माँ से चिपकी रहती थी । इसलिए भवानी को सरला से बात करने का मौक़ा ही नहीं मिलता था । भवानी को आए पाँच दिन हो गए थे । रचना ने सुबह सुबह आकर कहा "माँ आज आप दोनों के लिए ही खाना बनेगा हम लोगों को बाहर जाना है आते आते शाम हो जाएगी । आप फ़िक्र मत कीजिए । सास सब कर लेंगी आप बस आराम कीजिए ।"

रचना राघव और बच्चे तैयार हो कर चले गए जाते जाते रचना ने अपनी सास को बहुत सारे काम दिए कि हम नहीं हैं तो आराम मत कीजिए एक्सट्रा काम कर लीजिए और चली गई । भवानी बैठक में बैठी थी सरला ने खाना बनाया और रचना के बताए काम करने लगी फिर एक बजे के क़रीब भवानी को खाना खाने के लिए बुलाने आई । भवानी ने उन्हें अपने पास बिठाया और "कहा आप कैसी हैं ?"उनके इतना कहते ही सरला रोने लगी । भवानी ने उन्हें रोकने की कोशिश नहीं की दस मिनट रोने के बाद वे सँभलीं और "कहा मैं ठीक हूँ ।"

"आपके पास अपना मकान खेती बाड़ी सब थी न फिर आप इनके पास यहाँ!!!"

सरला ने बताया कि "गाँव के मकान को इन लोगों ने बेचकर यहाँ दो घर दोनों बच्चों के नाम ख़रीद लिया है । और मुझे यह कहकर यहाँ लाए कि इस उम्र में अकेले नहीं रहना हमारे साथ रहें । वैसे भी आजकल थोड़ी सुस्ती सी रहती थी सोचा चलो अपनों के साथ रह लूँगी तो मन को आराम मिलेगा । यहाँ आने के बाद से रचना ने मेरी यह हालत कर दी है मुझसे कहती है कि काम वाले नहीं आना चाह रहे हैं इसलिए अपना काम ख़ुद ही करना है कोई बात नहीं है कर दूँगी पर अकेले नहीं हो पाता है । एक दिन रचना नहीं थी तब काम वाली पैसे लेने आई थी उसने मुझे बताया था कि आप से काम कराने के लिए ही रचना भाभी ने हमें काम से हटा दिया है । आपकी बेटी है उसकी बुराई आप से करूँ अच्छा नहीं लगता है । वापस भी नहीं जा सकती क्योंकि अब मेरे पास रहने के लिए घर भी नहीं है । उन्हें मैंने चुप कराया और हम दोनों मिलकर खाना खाने लगे ।

मेरे मन में उथल-पुथल मची थी कुछ करना है यह सोच रही थी । पड़ोस के लड़के से मैंने बात की और कहा दो टिकट गुंटूर के लिए ला दोगे ।उसने कहा ओके दादी अभी ऑनलाइन में ही बुक कर देता हूँ ।कब के लिए भवानी ने कहा आज मिले तो आज नहीं तो कल के लिए कर दो बेटा । उसने रात को दस बजे की ट्रेन के लिए टिकट बुक कर दिया । भवानी ने सरला से कहा "आप अपना सामान पैक कर लीजिए आज से हम दोनों एक साथ मिलकर रहेंगे एक दूसरे का सहारा बनेंगे हम समधन नहीं बहनें हैं । मेरी बेटी के किए के लिए मैं आपसे माफ़ी माँगती हूँ । जिन्हें हम से मिलना है वे ही हमारे पास आएँगे । जहाँ हमारी इज़्ज़त नहीं वहाँ हमें रहना नहीं है ।" दोनों एक-दूसरे से गले मिलते हैं ।

सरला ने सामान पैक कर लिया दोनों ने मिलकर खाना बनाया और जैसे ही रचना राघव घर पहुँचे भवानी ने अपना फ़ैसला सुना दिया और रात की ट्रेन के टिकट दिखाया रचना हैरान थी कि माँ ने ऐसा निर्णय क्यों लिया है । उसे मालूम है कि माँ अब उसकी सुनने वाली नहीं है । राघव उन्हें छोड़ने स्टेशन पहुँचा और भवानी के पैर छुए हाथ पकड़कर कहा "आप मेरे लिए भगवान से कम नहीं हो मैंने अपनी माँ को तिलतिल कर मरते देखा पर पत्नी के डर से उनके लिए कुछ नहीं कर सका । रचना मुझे धमकी देती है कि वह आत्महत्या कर लेगी मैं उससे बहुत प्यार करता हूँ इसलिए डर जाता था । आपने आज मेरी परेशानी दूर कर दी है । आप न मत कीजिए मेरी क़सम है । मैं भी आप लोगों के लिए कुछ करना चाहता हूँ ।" भवानी ने कहा "क्या?" हर महीने मैं आपके बैंक में कुछ पैसे भेजूँगा आप दोनों को जैसे रहना है रहिए तीर्थ पर जाना है जाइए पर ज़रूरत पड़ने पर पैसों का इस्तेमाल करेंगे यह वादा कीजिए । दोनों ने हँसते हुए कहा "क्यों नहीं आप हमारे बच्चे हो आप से नहीं तो किससे माँगेंगे ।" सरला ने और भवानी ने राघव को आशीर्वाद दिया और ट्रेन में बैठ गई । 

राघव के घर पहुँचते ही रचना ने गाना शुरू किया मेरी माँ को आपकी माँ ने ही भड़काया होगा । राघव ने कुछ नहीं कहा । रचना तंग आकर कुडकुड करते हुए सो गई 

दूसरे दिन सुबह ही उसने कामवाली बाई खाना बनाने वाली बाई और गार्डनर को फ़ोन करके बुला लिया । रचना सोच रही थी कि यह माँ को क्या हो गया है उन्हें तो भाई के साथ चेन्नई जाना था । जबरदस्ती मेरी सास को भी अपने साथ ले गई हैं । इन्हें समझना तो मेरे बस की बात नहीं है । वहाँ पहुँचने के बाद फ़ोन भी नहीं किया है । मैं भी नहीं करूँगी उन की ही बेटी हूँ न देखती हूँ कब तक मुझसे नाराज़ रहेगी । तभी रचना के नाम कोरियर आता है उसे समझ में नहीं आ रहा था कि उसके नाम किसने कोरियर भेजा है । वह क्या है देखने के लिए खोला तो देखा उसमें एक ख़त है जल्दी से खोलकर देखा कि उसे ख़त लिखने वाला कौन है और वह भी आज के ज़माने में ख़त खोला और पढ़ना शुरू किया । 

"अरे ! यह तो माँ का ख़त है मुझे मनाने के लिए लिखी हैं" मैं खुश हो गई पढ़ने लगी ….

मेरी प्यारी परी 

सोच रही होगी न कि मैं ख़त क्यों लिख रही हूँ । तुम्हारे घर में सास के प्रति तुम्हारे बरताव को देखने के बाद मेरा दिल बहुत दुखी हो गया था । मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि मेरी बेटी बड़ों के साथ इस तरह का व्यवहार कर सकती है । तुमने बचपन से मुझे अपनी दादी के साथ देखा कभी भी मैंने उनके साथ ग़लत व्यवहार किया था क्या? और तुमने तो हद कर दी है सारे नौकरों की छुट्टी करके अपनी माँ समान सास से काम कराया यह कहते हुए कि दो वक़्त का खाना और दवाइयाँ दे रही हूँ । तुम कमा रही हो नहीं न । उनका बेटा जिन्हें उन्होंने पति की मृत्यु के बाद बहुत ही मेहनत और मुश्किलें झेलकर पढ़ाया है ।वह कमा रहा है सास का हक़ है अपने बेटे के पैसों पर उन्होंने कभी हक नहीं जमाया ।अपनी मर्ज़ी से अपने घर में रह रही थी ।उसे भी बेच दिया और उन्हें अपने ही घर में नौकरानी का दर्जा दिया । तुम छोटी हो पर कोई काम नहीं कर सकती हो । इसलिए घर भर में नौकर रखा । वे तुमसे बड़ी हैं बीमार हैं पर तुमने घर के नौकरों को हटाया और उनसे घर का सारा काम कराया ।एक बार भी तुमने राघव के बारे में नहीं सोचा था कि माँ के लिए उसे कितना दुख होता होगा । 

मैंने फ़ैसला कर लिया है कि तुम्हारा भाई मुझे अपने साथ उसके घर ले जाने के लिए कहेगा तो नहीं जाऊँगी क्योंकि मेरे दिए गए संस्कार तुम में है तो ही तुमने इस तरह का व्यवहार अपनी सास के साथ किया है ।तुम्हारी भाभी तो दूसरे घर से आई है । तुम्हारी देखा देखी वह भी ऐसा ही कुछ करें तो नहीं!!! अच्छा हुआ परी बेटा तुमने मेरी आँखें समय रहते ही खोल दी हैं । अब मैं मेरे मरने के बाद ही इस घर को बेचूँगी । तुम्हारी सास के समान बच्चों की बातों में नहीं आऊँगी । और एक बात कान खोलकर सुन लो तुम्हारी सास और मैं एक दूसरे का सहारा बनकर यहीं रहेंगे । तुम्हारी की गई गलती को मुझे ही तो सुधारना पड़ेगा है न । हमें देखने की इच्छा होगी तो तुम लोग ही यहाँ आ जाना । मुझे लगता है कि शायद मैंने तुम्हें अच्छे संस्कार नहीं दिए हैं । ख़ैर………

तुम्हारी माँ 

भवानी 

पत्र पढ़कर रचना की आँखों से पश्चाताप के आँसू बहने लगे । 



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