Archana Saxena

Drama

4.0  

Archana Saxena

Drama

माँ की अल्मारी

माँ की अल्मारी

4 mins
270


रागिनी की दोनों ननद शहर में ही रहती थीं, परन्तु जब रागिनी का पूरा परिवार कोरोना की दूसरी लहर की चपेट में आ गया तो मदद को कोई नहीं था। पति और सास गम्भीर रूप से बीमार थे। हालत तो रागिनी की भी खराब ही थी ऊपर से दोनों बच्चे भी हल्के संक्रमित थे। पति और सास को अस्पताल ले जाने की नौबत आई तो भी हर जिम्मेदारी वह अकेले ही उठा रही थी। हाँ ननदों का फोन अवश्य ही आ जाता रागिनी को माँ के लिए हिदायतें देने को। एक बार रागिनी ने दबी जुबान से कहा भी था कि कभी कभी कोई खाना भिजवा दे तो बड़ी मदद हो जाए परन्तु दोनों ने ही संक्रमण के डर से साफ मना कर दिया। 

खैर धीरे धीरे सबकी रिपोर्ट नेगेटिव आ गई और पति और सास घर वापस लौट आए। पति रोहन तो ठीक थे पर माँजी की खाँसी ठीक ही नहीं हो रही थी। वह बहुत कमजोर हो गई थीं। उन्हें सजने सँवरने का बहुत शौक था और उनकी पसंद भी बहुत अच्छी थी। अल्मारी में खूबसूरत साड़ियों का भण्डार था। परन्तु कमजोरी की वजह से अब वह पहनने ओढ़ने की हिम्मत ही नहीं जुटा पाती थीं। रागिनी उनकी मनोदशा समझती थी और वही अक्सर उन्हें तैयार कर के बिठा देती। बेटियाँ माँ के आग्रह पर भी देखने नहीं आ रही थीं। शायद माहौल ही डरावना था और वो हिम्मत नहीं जुटा पा रही थीं। अक्सर रागिनी ने माँजी की आँखों में आँसू देखे, परंतु पूछने पर भी वह कुछ नहीं कहतीं। उसे भी लगता शायद बेटियों को याद करती हैं। धीरे धीरे दूसरी लहर की गम्भीरता कम हो गई और जिन्दगी सामान्य होने लगी। माँजी ने बेटियों को अपनी ओर से फोन करना छोड़ दिया था। शायद अधिक आहत थीं कि सब कुछ ठीक होने पर भी वो दोनों माँ से मिलने नहीं आ पाईं। रागिनी ने भी उनसे आग्रह किया था परन्तु......

एक दिन अनहोनी हो गई। अचानक दिल का दौरा पड़ने से माँजी नहीं रहीं। 

ज्यादा लोग तो एकत्रित नहीं हो सकते थे, तो गिने चुने लोगों की उपस्थिति में सब कार्य किए गए। बेटियाँ आईं रोईं धोईं और वापस चली गईं। तेरहवीं पर फिर मेहमान जुड़े, आज वो दोनों रुकने आई थीं। अचानक कमरे में कुछ लेने पहुँची रागिनी के कानों में जब उनकी कानाफूसी की आवाज पड़ी तो वह स्तब्ध रह गई। वह माँ की सुन्दर साड़ियों को याद कर कर के मुँह जुबानी ही आपस में बाँट रही थीं। यहाँ तक कि किस साड़ी के साथ कौन सा सेट मैच होगा ये भी चर्चा का विषय था। उनकी व्यग्रता देख कर रागिनी हैरान रह गई। अल्मारी में ताला नहीं लगा होता तो शायद वो दोनों खोल कर ही बैठी होतीं। रागिनी को देख कर वो अचानक चुप हो गईं। रागिनी भी जो लेने आई थी वह उठा कर बाहर चली गई। अभी वह सचमुच व्यस्त थी। रात्रि में जब सब चले गए और काम भी खत्म हो गया तो दोनों ननदों ने रागिनी और रोहन को माँ के कमरे में बुलाया और अल्मारी की चाबी माँगी। रोहन तो उनकी जल्दबाजी पर भड़क गया परन्तु रागिनी ने उसे शान्त रहने का इशारा किया और चाबी बड़ी ननद को सौंप दी।

अल्मारी खोलते ही सबसे ऊपर एक लाल रंग की डायरी दिखी। माँ तो डायरी नहीं लिखती थीं जरूर कुछ हिसाब किताब किया होगा उन्होंने ये सोचकर बड़ी ननद ने डायरी खोली।

माँ ने अपने अन्तिम दिनों में अपनी सारी पीड़ा, सारा पश्चाताप दिल खोल कर लिख दिया था।

कैसे वो बेटियों के कहने में बहू के साथ अन्याय करती रहीं। कैसे उसकी भावनाओं की कभी कद्र नहीं की। जब उन्हें बेटियों की सबसे अधिक आवश्यकता थी तो दोनों ही नहीं आईं , इस बात ने उन्हें भीतर तक तोड़ दिया था। इसके बाद सिलसिला शुरू हुआ रागिनी की प्रशंसा का। रागिनी ने इस कठिन समय में जी जान से सेवा की थी उनकी। वह तो पहले भी करती थी, पर तब बेटियों के अन्ध मोह की पट्टी बँधी थी उनकी आँखों पर जो इस बीमारी में उतर चुकी थी।

अन्त में लिखा था कि उनके पास जो भी है वह इसी अल्मारी में है और इस पर रागिनी का हक है। अन्त में अगले जन्म में रागिनी को बेटी के रूप में पाने की इच्छा का जिक्र था।

रागिनी की आँखों में आँसू आ गए। दोनों ननदों को तो बड़ा झटका लगा था। रागिनी ने बहुत आग्रह किया कि उन्हें जो भी अल्मारी में से चाहिए वह हक समझ कर ले लें, परन्तु अब वो दोनों ऐसा करते हुए अपमानित अनुभव कर रही थीं। कहीं न कहीं माँ का दिल दुखाने का पश्चाताप भी था ही। दोनों ने सुबह होने की प्रतीक्षा भी नहीं की, रात को ही अपने अपने घर की ओर निकल गईं।



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