माँ कहीं नहीं जाती
माँ कहीं नहीं जाती
अक्सर सुन रखा था मायका माँ से होता है और मायके जाते समय सबसे अधिक उत्साह भी तो माँ से ही मिलने का होता था परंतु अब चूंकि माँ तो इस दुनिया को अलविदा कह किसी और दुनिया में हमेशा के लिए चली गई हैं तो सचमुच यूँ लगा अब क्या करने जाऊंगी मायके। तभी एक दिन पापा का फोन आया, तुम्हारी माँ नही रही पर मैं तो हूँ अभी। मन नही होता कभी मुझसे मिलने का,कितने दिन हो गये तुम्हें यहाँ मायके आये हुए। ऐसा करो कल रविवार है, सबकी छुट्टी भी रहेगी, तू परिवार सहित आ जा कुछ देर के लिए। बहुत मन हो रहा है तुम सब को देखने का।
बड़े भारी मन से मायके घर कदम रखा। पापा दूर से ही भागे चले आए और कस कर गले लगा लिया। मैने दिल ही दिल याद किया ऐसे तो पहले माँ मिला करती थी, पापा तो हर बार दूर से मुझे देखकर खुश हो जाते और फिर बच्चों के साथ मस्ती करने लगते। खाना खाने बैठी तो भाभी ने सब कुछ मेरी पसंद का बना रखा था। पेट भर खाने के बाद जब एक और रोटी के लिए मना किया तो भतीजा बोला,खा लो बुआजी,एक और रोटी खा लेने से आप मोटे नहीं होने लगे,मुझे फिर याद आया अरे! यही शब्द तो माँ बोला करती थी। फिर जब भैया ने सबसे अलग बिठा प्यार से हाथ पकड़कर पूछा, और बता ससुराल में सब ठीक है,कोई परेशानी तो नहीं तुझे तो ऐसा लगा मानो माँ पास बैठा कर पूछ रही हो।
माँ के कमरे मे गई तो सब कुछ पहले जैसा था, बस माँ नही थी। सामने दिवार पर माँ की तस्वीर टंगी थी ओर उसके पास ही एक पूरे परिवार की तस्वीर थी। कितनी जिद्द करके माँ ने ही पापा को इस तस्वीर को बनवाने के लिए मनाया था। ध्यान से उस तस्वीर को देखा तो भैया की मुस्कान, दीदी का चेहरा, भतीजी की नाक ओर अपनी बेटी की आंखें मुझे माँ से मिलती-जुलती लगी यूँ लगा जैसे माँ का सारा रंग-रूप थोडा थोडा करके हम सबमे बंट गया हो। आते वक्त भाभी ने मेरे हाथ मे कुछ पैसे रखे मेने मना किया तो बोली,न नही करते बेटिया मायके से कभी खाली नही लौटती। मुझे उस समय भाभी के रूप मे अपनी माँ नज़र आई। दिल मे सोचा, ये शब्द तो कभी मेरी माँ के हुआ करते थे। गाड़ी मे बैठते वक्त जब भतीजी ने कहा -बुआ जी! घर पँहुच कर एक फोन कर देना अपने ठीक ठाक पँहुचने का तो ऐसा लगा मानो माँ हिदायत दे रही हो। मै लोटते वक्त रास्ते भर यही सोच रही थी,क्या सचमुच अब मेरी माँ हमारे बीच नही रही पर इस सच को कौन बदल सकता था?
जब कभी बडी बहन फोन करके कहती है मै दूर ज़रुर हुँ पर किसी तरह की चिंता मत करना, हर दुख सुख में तेरा साथ निभाउंगी तो ऐसा लगता है मानो माँ ही बोल रही हो। एक दिन आदतानुसार मै सबको खाना खिलाने के बाद खुद रसोई साफ करने लग गई तो मेरे बेटे ने कहा -"ये सफाई कहीं भागी जा रही हे,पहले गर्म गर्म खाना खालो, हमेशा ठंडा करके ही खाते हो" तो उसकी इस प्यारी सी झिड़क में भी मुझे माँ की झिडक का स्वाद आया। एक दिन बहुत तेज़ बुखार मे जब मै माँ-माँ बोल रही थी तो ऐसा लगा माँ खुद स्वर्गलोक से आकर मेरे सिर पर हाथ फेर रही हो। मै बडी देर तक आखें बंद करके उस एहसास का आनन्द लेती रही फिर आखें खोली तो सामने कोई और नही मेरी अपनी बेटी थी, जिसके हाथो मे मुझे माँ के हाथों के स्पर्श का अहसास हुआ।
पता नहीं क्यों पर अब मुझे हर रिश्ते मे कही ना कही माँ की झलक दिखाई देती हे और सबसे ज्यादा अपने आप मे। पहले जब मै मायके जाती थी तो आते वक्त माँ हर बार कुछ पेसे पकडा देती।मना करती तो कहती,यह तो शगुन है पर अगर बेटियां मायके घर से खाली हाथ लोटे तो घर की चारो दीवारे भी हिलती है। रखले पैसे तेरे किसी काम आयेंगे। माँ उन पैसो की तो मुझे याद नही कहाँ खर्च हो गये पर हर बार आपने जो नसीहतो की पोटली बाँध कर मुझे दी वह हमेशा से मेरे साथ है।उन्ही की वजह से घर परिवार, दफ्तर, बच्चे, सास ससुर, आस-पडोस के सारे रिश्ते नातो मे सही से तालमेल बिठा पाई। सचमुच कोई शक़ नही रहा। माँ अपने बच्चो को छोडकर कहीं नही जाती बल्कि एक कभी न भूलने वाली याद बनकर हमेशा दिल मे रहती है और हर दुख सुख में साथ देती हैं।