माँ - भाग ४
माँ - भाग ४
विशु अब बड़ा हो रहा था और पांचवीं क्लास में हो गया था। आज उसका पांचवीं क्लास का परिणाम आने वाला था। मधु रात भर सो नहीं सकी थी। अंकित ने उसे बहुत समझाया था पर वो तो बस माँ थी, अपने बच्चे की छोटी सी चीज के लिए भी अगर परेशान होने को आये तो हो कर ही रहती है। उसने अंकित को कहा कि तुम नहीं समझोगे, 'तुम माँ थोड़े हो'। हालाँकि विशु पढ़ने में बहुत अच्छा था और क्लास में हमेशा अव्वल ही आता था और वो खुद अपने रिजल्ट की इतनी चिंता नहीं कर रहा था। इस समय वो सब विशु के स्कूल में ही बैठे उसके परिणाम की घोषणा का इंतजार कर रहे थे। विशु अपने दोस्तों के साथ खेल रहा था परन्तु मधु के चेहरे पर परेशानी और घबराहट साफ़ नजर आ रही थी। वो कभी अपने नाखून काटती तो कभी अंकित का हाथ पाकर लेती। अंकित उसे समझा भी रहा था और ढांढस भी बंधा रहा था कि विशु अच्छा करेगा पर ये सब कुछ शायद कोई काम नहीं आ रहा था।
तभी प्रिंसिपल ने विशु के परिणाम की घोषणा की। वो अपनी क्लास में फिर से अव्वल आया था और इस बार उसे दस हजार रुपए का पुरस्कार भी मिला था। मधु के चेहरे के परेशानी के भाव एक दम प्रसन्नता में बदल गए। और थोड़ी देर में ये ख़ुशी आंसू बन कर बहने लगी। अंकित ये सब देख रहा था। उसकी भी आँखें भर आईं। घर आकर जब दोस्तों की तरफ से विशु के लिए फ़ोन आने लगे तो हर बार मधु का चेहरा ख़ुशी से खिल जाता। वो सभी को उस क्षण के बारे में बताती जब प्रिंसिपल ने विशु को ट्रॉफी दी थी और उसकी तारीफ़ की थी। उसने उस घड़ी की वीडियो रिकॉर्डिंग भी की थी और अपने सभी रिश्तेदारों को भेज दी थी। अंकित भी उसकी इस ख़ुशी को बाँट रहा था और सोच रहा था कि बच्चे की एक छोटी सी ख़ुशी माँ को कितनी बड़ी प्रसन्नता दे सकती है।
घर की बालकनी में एक बुलबुल ने कुछ ही दिन पहले घोंसला बनाया था। एक दिन जब अंकित सुबह उठा तो उसे चैं चैं की आवाज सुनाई दी। जब उसने देखा तो छोटे छोटे दो चूजे ये आवाज निकाल रहे थे और माँ बुलबुल उन्हें कीड़े खिला रही थी। बुलबुल का जोड़ा थोड़ी थोड़ी देर में उनके लिए कीड़े पकड़ कर लाता और खिला देता। ऐसे वो करीब दिन में पांच छह बार करते। उन्हें खिलाने के बाद माँ बुलबुल घंटों अपने चूजों के ऊपर बैठी रहती और बीच बीच में कुछ आवाज करती जैसे चूजों से कोई बात कर रही हो। वो जब कीड़े लेने भी जाती तो उनसे ज्यादा दूर नहीं जाती थी। अंकित ये सब रोज देख भी रहा था और अपने कैमरे में भी इन लम्हों को कैद कर रहा था।
समय के साथ चूजे बड़े भी होने लगे और एक दो बार तो वो बाहर आने की कोशिश करते हुए घोंसले से गिर भी गए। माँ उन्हें फिर वापिस घोंसले में ले जाती। एक बार तो अंकित ने ही एक चूजे को घोंसले में रखा। पर वो बार बार गिरते। शायद वो उड़ना सीख रहे थे। और फिर एक दिन दोनों चूजे थोड़ा थोड़ा उड़ने लगे। माँ बुलबुल उस दिन बहुत ज्यादा आवाज कर रही थी। शायद वो उनकी सफलता पर खुश हो रही थी। और फिर एक दिन वो सब वहां से उड़ कर अपनी दुनिया में चले गए।
