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rekha karri

Inspirational

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माँ आप अच्छी माँ नहीं हो

माँ आप अच्छी माँ नहीं हो

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निक्की कॉलेज के लिए निकल रही थी कि माँ ने पुकारा निक्की नाश्ता नहीं किया रुक जाओ मैं ला रही हूँ....

निक्की चिल्लाते हुए देर हो गई वहीं केंटिन में कुछ खा लूँगी कहते हुए गेट से बाहर हो गई...

माँ अपने मन में ही बड़बड़ा रही थी कि बात नहीं सुनती देर रात को सोना देर से उठना रोज बाहर का खाना यही इसका रवैया हो गया है पता नहीं कब सुधरेगी। उधर निक्की की दादी सुजाता की सास अलग से बड़बड़ा रही थी कि तुम सुधरने दोगी तभी तो सुधरेगी उसे तो कुछ काम भी नहीं सिखाया लड़की जात है कल को ससुराल जाएगी तो खुद तो बातें सुनेगी ही हमें भी सुनवायेगी। कलयुग आ गया है हमारे ज़माने में लड़कियों को पूरा घर का काम आता था। दस पन्द्रह लोगों का खाना तो पलक झपकते ही बना देते थे। आजकल की लड़कियों को पढ़ाई के नाम पर घर के काम आते ही नहीं!!!!! 

सुजाता को अपनी सास की बातें सुनकर बहुत ग़ुस्सा आया पर उसने कुछ नहीं कहा और काम करने लगी। दोपहर को सास बहू साथ बैठकर खाना खाते थे !!! दादी जिनका नाम रुक्मिणी था पर सब उन्हें दादी ही कह देते थे। उन्होंने सुजाता को समझाया देख बहू जब निक्की ब्याह करके ससुराल जाएगी तब वहाँ उसे बहुत तकलीफ़ झेलनी पड़ेगी लड़कियों को या लड़कों को घर का हर काम आना चाहिए ताकि वे कहीं भी गए तो अपने लिए दो रोटी तो आराम से बना लेंगे न कि दूसरों के मोहताज रहना होगा। मेरी बात मान उसे हफ़्ते में एक दिन खाना बनाने के लिए कहा कर। सुजाता ने सब सुना फिर कहने लगी मैं भी तो नाज़ों में पली बड़ी थी। मुझे भी तो कुछ नहीं आता था तो क्या अब मैं काम नहीं कर रही हूँ ? बहू तुम समझ नहीं रही हो। तुम तुम्हारे ससुर के दोस्त की बेटी हो तुम्हें कोई भी दुख नहीं पहुँचाना यह तुम्हारे ससुर की सोच रही थी। इसलिए तुम्हारे काम न करने से भी मैंने तुम्हें कुछ नहीं कहा और खुद ही सब करती रही। फिर धीरे-धीरे तुमने भी सीख लिया। अब उसे कैसे लोग मिलेंगे और अगर वह ससुराल में न भी हों तो कम से कम पति पत्नी को तो खाना बनाकर खाना पड़ेगा न। तुम समझ नहीं रही हो या समझना नहीं चाहती हो मुझे नहीं मालूम बड़ी हूँ अपने तजुर्बे से मैंने तुम्हें बताया है बाद में तुम्हारी मर्ज़ी कहकर वे चुप हो गईं। सुजाता ने कहा आप फ़िक्र मत कीजिए मेरी बेटी की क़िस्मत भी बड़ी अच्छी ही है। उसे भी अच्छा ससुराल मिलेगा आप जैसी सासुमाँ मिलेगी। अभी तो आराम करने और घूमने फिरने के दिन हैं। एक बार शादी हो गई तो फिर घर के झंझटों में पड़ना ही पड़ेगा। कहते हुए बात को सुजाता ने टाल दिया। अब रुक्मिणी जी ने भी कुछ नहीं कहा और चुप हो गईं। उन्हें याद आया जब सुजाता ने घर में कदम रखा था। उसे कुछ नहीं आता था कम से कम एक गिलास पानी तक अपने हाथों से नहीं लेती थी। माँ ने उसे पूरी तरह से बिगाड़ दिया था। जब देखो दोस्तों से फ़ोन पर बातें या मिलने जाना यही उसका काम था। जब काम के सिलसिले में विक्रम को दूसरे शहर जाना था तो उसने कहा माँ कैसे मैनेज करेंगे, इसे तो कुछ आता ही नहीं है। मैंने उसे समझाया तुझे तो मैंने सिखाया है न तू ही सिखाते हुए मैनेज कर ले। बस दोनों मिलकर खाना बनाते थे। इसी तरह सुजाता ने सीखा। जब भी रुक्मिणी जाती थी तो वह भी कुछ सिखा देती थी। इस तरह बिना किसी झंझट के बात बन गई पर सबके साथ एक जैसा ही हो यह नहीं हो सकता है। ख़ैर रुक्मिणी ने अपने मुंह पर ताला लगा लिया। निक्की बिगड़ती गई। नौकरों पर चिल्लाते हुए बात करना। फ़ोन पर घंटों बातें करना या घूमने जाना। यही चलता रहा।  

एक दिन विक्रम ने कहा माँ निक्की के लिए बहुत अच्छा रिश्ता आया है। लड़का डॉक्टर है। एक भाई और बहन हैं। बहन की शादी हो गई भाई पढ़ रहा है। कल वे लोग निक्की को देखने आ रहे हैं। दूसरे दिन निक्की को देखने के लिए अभय के परिवार वाले आए। उन्हें निक्की बहुत पसंद आई कहते हैं चट मँगनी पट ब्याह बस निक्की और अभय की शादी भी वैसे ही धूमधाम से संपन्न हो गई। निक्की ससुराल चली गई। अब सुजाता को फ़िक्र होने लगी कि क्या होगा निक्की वहाँ कैसी होगी। वे लोग हनीमून पर गए। वहाँ से आकर घर में आने वाले लोगों से मिलने का कार्यक्रम चला। इस तरह एक महीना हो गया। एक दिन शाम को निक्की आई बड़ी सुंदर लग रही थी। दादी के गले लगकर रोने लगी। दादी ने पूछा कि क्या हुआ ? किसी ने कुछ कहा है क्या ? उसने कहा नहीं पर दादी आप बिलकुल ठीक थी। मैंने आपकी बात नहीं मानी और मैंने कुछ भी काम नहीं सीखा। मुझे लगता था कि माँ सही है। वह मुझे बहुत प्यार करती है और लाड़ प्यार से पाल रही है पर नहीं दादी!!!!!! तभी सुजाता आई क्या हुआ निक्की तुझे कोई तकलीफ़ है क्या ? मैं और पापा आएँ क्या ? 

तुम बहुत बुरी हो माँ तुमने मुझे कुछ नहीं सिखाया वहाँ सबके सामने मुझे मेरा सर शर्म से झुक जाता है। आपने मुझे चाय बनाना खाना बनाना कपड़ों में इस्तरी करना कुछ नहीं सिखाया। परसों घर में मेहमान आए थे सासुमाँ ने कहा निक्की बेटी चाय बना दें मैं रसोई में खड़े होकर रो रही थी क्योंकि चाय कैसे बनाते हैं मुझे नहीं मालूम। उसी समय वहाँ से जाते हुए मेरे देवर अजय ने मुझे रोते देखा तो पूछा क्यों रो रही हैं ? क्या हो गया ? मैं क्या बताऊँ शरम से मैंने अपना सिर झुका लिया। तभी माँ ने पुकारा बहू बेटे चाय बन गई तब वह बात को समझ गया और उसने कहा आप हटिए मैं चाय बना देता हूँ। उसने चाय बनाई और मैंने सबको जाकर दिया।  

माँ आप सोच रही थीं कि आप बहुत अच्छे से मेरी परवरिश कर रही हैं नहीं माँ आपके कारण ससुराल में हर समय मुझे सिर झुकाना पड़ता है। माँ आप अच्छी माँ नहीं हो !!!! माँ आप अच्छी माँ नहीं हो !!! दादी मैं कुछ दिन यहाँ रहने के लिए आई हूँ प्लीज़ मुझे कुछ काम सिखाइए न। कहकर दादी से लिपट गई। माँ अपने आँखों में आँसू भरकर बुत बनकर खड़ी रही।  

बच्चों से प्यार करना सही है पर उन्हें स्वतंत्र बनाना है पूरी तरह से सारे काम उन्हें आने चाहिए भले वे करें या नहीं पर ज़रूरत पड़ने पर कर सकें । निक्की की कहानी सब माँओं के लिए एक सीख है।  



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