लक्ष्य की प्राप्ति
लक्ष्य की प्राप्ति
इण्टरमीडिएट की पढ़ायी ज्यों पूरी हुई हमने ऑनर्स के लिए बी.ए. में दाखिला ले लिया, बचपन से शौख हमें अध्यापन का था। जब हम बी.ए. की पढ़ाई कर रहे थे उसी समय चाचा जी नेट पास किये थे। कुछ ही दिन में उनकी नियुक्ति लखनऊ के एक डिग्री कालेज में हो गयी थी।
उनकी इस प्रतिस्पर्धा को देखकर हमनें भी मन में ठान लिया कि नेट की परीक्षा हमें भी पास करना है। नेट के लिए हमनें सुना था की आवेदन के लिए मास्टर डिग्री 55% की होनी चाहिए तभी आप परीक्षा के लिए वैध माने जायेंगे...
इन्ही सब सोच के चलते हमने मेहनत शुरू कर दी। बी.ए. की फाइनल परीक्षा फल जब 57% आया तो हमे लगा कि कोई मुश्क़िल कार्य नहीं है 55% का लक्ष्य मास्टर डिग्री में।
हिन्दी साहित्य में अधिक रूचि होने के कारण हमनें हिंदी से एम.ए. किया और मेहनत करके हमने 56.5% का लक्ष्य प्राप्त कर लिया...
मगर होनी को कुछ और ही मंजूर था। मेरा सेलेक्शन उसी वर्ष महर्षि महेश योगी जी की संस्था में योग टीचर के पद पर हो गया।
7 माह की ट्रेनिंग के लिए हमे नोएडा जाना पड़ा। हम वहीं जाकर अपने लक्ष्य से भटक गया। मगर योग से मुझे एक फायदा हुआ कि तन-मन से हम स्वस्थ हो गये।
कुछ साल उनकी संस्था में कार्य किया। संतोष ना होने पर हमने योग टीचर की नोकरी छोड़ दी और घर आकर बी.एड. करने की सोची...
बीएड हो जाने के बाद टेट की परीक्षा पहली बार में पास किया। उसी वर्ष नेट की पहली परीक्षा भी थी। दिनरात मेहनत करके हमने नेट की परीक्षा दी।
परीक्षा तो हमने पास कर ली मगर सेलेक्शन वाली मेरिट में मेरा नाम नहीं आया..
टोटल मेरा 60 % मार्क्स था मगर हिंदी में 62% पर मेरिट आकर रुक गयी..।
हमने जो चाहा वह पाया किसी निश्चित मंजिल के सिवा।
हर जगह भ्रष्टाचार और धांधली से मेरा जी उब गया और शिक्षा जगत की ओर से मन मेरा बिदक गया.!
वर्तमान मेरा जीवन सुचारु रूप से चल रहा है। बिना किसी सरकारी नौकरी के।
एक फायदा मुझे मिला की ध्यान से मेरी सोच मजबूत होती गयी और दिल का भाव प्रौढ़ होता गया।
मैं आज किसी भी क्षेत्र में किसी भी टॉपिक पर खुद की सोच की अभिव्यक्ति बड़ी आसानी से कर लेता हूँ।
इस तरह ज़िन्दगी मेरी एक लेखक की हैसियत से कलम की दुनिया में अपनी एक अलग पहचान बना रही है।
देखो मंजिल कब मिलती है हमे जब मेरे सपने पूरे होंगे..!
