लगन सच्ची मन्जिल पक्की
लगन सच्ची मन्जिल पक्की
सियाराम और जानकी की जिंदगी बड़े मजे से बीत रही है। ईश्वर का दिया सब कुछ है। पचास बीघे खेत ,बगीचा,ट्यूबवेल, ट्रैक्टर कुल मिलाकर सियाराम समृद्ध किसान हैं। परिवार में चार बेटियाँ और एक बेटा है। बेटियाँ भी सुंदर और सुशील हैं। वे गाँव के स्कूल में ही पढ़ती हैं। बेटा सबसे छोटा और लाड़ला है। वह भी गाँव के स्कूल में पढ़ता है। सब लोग बोलते भी हैं कि सियाराम बड़ी किस्मत वाला है पर सियाराम और जानकी चाहते हैं कि उनका बेटा पढ़लिख कर ऑफिसर बने । जिस दिन गुरु जी ने कहा था कि बेटा डी एम बनेगा उस दिन दोनो इतने खुश थे कि कुछ दिन इसी सपने में बीत गए। समय चलता रहा बच्चे बड़े हो गए। दो बेटियों की अच्छे घरों में शादी हो गई। इधर बेटे का मन खेलने -कूदने में कुछ ज्यादा लगता । उसकी दसवीं का परीक्षा परिणाम आया तो वह तृतीय श्रेणी में उत्तीर्ण हुआ। माँ को बहुत गुस्से में देख कर वह अपने कमरे का दरवाजा बंद करके बैठ गया। पिता ने समझाया कि सयाना लड़का है उसे कुछ कहना नहीं कुछ कर कुरा लिया तो जीवन भर सोचने के लिए हो जाएगा। इससे अच्छा है कि इसे गाँव से बाहर पढ़ने के लिए भेज देंगे। जब माँ को शांत देखा तो बेटा कमरे से बाहर आ गया।
आगे की पढ़ाई के लिए उसे पास के कस्बे में भेज दिया गया। रहने का इंतजाम एक रिश्तेदार के यहाँ हो गया। बेटा जब कस्बे में गया तो उसे गाँव से वहाँ की जीवन शैली अच्छी लगी। बिजली, पानी और सड़क की सुविधा तो थी ही। उसने सोचा अगर ऐसी जिंदगी जीनी है तो पढ़लिख कर कुछ बनना चाहिए। इसी सोच के साथ उसने पढ़ाई में मन लगाना शुरू कर दिया। जब बारहवीं का परिणाम आया तो वह द्वितीय श्रेणी में उत्तीर्ण हुआ लेकिन वह सन्तुष्ट नहीं था। उसने माता- पिता से शहर जाकर पढ़ाई करने की इच्छा व्यक्त की।
माता- पिता दूर भेजना तो नहीं चाहते थे पर बेटे की इच्छा देख कर पास के शहर में पढ़ने भेज दिया। वहाँ पहुँच कर बेटे को वहाँ की जिन्दगी कस्बे से बेहतर लगी। अब उसके मन में कुछ बड़ा बनने की इच्छा जागृत होने लगी उसने मेहनत से पढ़ाई करना प्रारंभ कर दिया जब स्नातक का परीक्षा परिणाम आया तो वह बहुत खुश हुआ वह प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुआ था,उसने आगे पढ़ाई जारी रखने का मन बना लिया और परास्नातक में उसने यूनिवर्सिटी में टॉप किया। अब उसे आगे भविष्य के लिए मन्जिल चुननी थी।
उसने सिविल सेवा के लिए तैयारी शुरू की उसे तो धुन सवार थी कुछ बड़ा नाम करने की। वह पहली बार प्रतियोगिता में बैठा परिणाम के रूप में उसे उम्मीद थी कि वह सफल हो सकता है फिर भी मन में भय तो होता ही है। जब परिणाम आया तो वह सबसे पहले गाँव गया और माता पिता को बताया कि वह आई ए एस की परीक्षा में पास हो गया।
माँ ने भगवान को धन्यवाद दिया और प्रसाद लेकर गुरु जी के पास पहुँची।
गुरुजी को प्रसाद देकर खुशी से कहा कि आपका वचन सही हुआ ,मेरा बेटा डी एम बन गया।
