लघुकथा- नादानी बात छोटी सी थी
लघुकथा- नादानी बात छोटी सी थी
बात छोटी सी थी लेकिन नन्ही विशाखा समझ ना सकी।
माँ - पिता जी दोनो की व्यस्तता ने विशाखा को अकेलापन का शिकार बनादिया। दोनो की दफ्तर जाने की होड़ एक दूसरे के विचारो के तालमेल का सही मेलजोल कभी देखा ही नही था अबोध बच्ची आठवी कक्षा मे पढती थी। स्कूल से लौट कर अपनी दिनचर्या अकेले पन का शिकार होती उदास रहने लगी। कुछ दिनो पहले उन के फ्लैट के बगल मे प्रेम सेठ नामक आदमी आये जो पेशे से डाॅ• थे। रिटायर्ड होने के उपरान्त वह अपने परिवार जन होते हुए भी अकेले थे। पत्नो का देहांत हो गया और बेटा विदेश मे रहता था।
धीरे - धीरे डाॅ• साहब विशाखा के घर ,उनके परिवार की ओर ज्यादा रूचि बढाने लगे। एक सप्ताह मे उन्हे सब पता लग गया विशाखा की उदासी और अकेलेपन का कारण अब वह विशाखा के स्कूल से आने का इंतजार करते। उसे अपने घर बुलाते भोजन कराने के लिए। धीरे धीरे उस के साथ हस्तमैथुन करने लगते। उसे अपने पास सुनाते और अपनी हवस का शिकार बनाने लगे। बच्ची उनके इरादे समझ नही पाई। उसे जब तक पता चलता कि वह यौन शोषण का शिकार हो रही है ।बहुत देर हो चुकी थी क्योकि सेठ साहब बहुत चालाकी से बिना किसी को भनक लगे फ्लैट बेच कर विदेश जाने की तैयारी कर चुके थे। जब विशाखा की माँ उसे उल्टियां होने पर चेकअप के लिए लेकर गई । विशाखा के गर्भधारण की खबर सुनकर उसकी माँ तो मानो काटो तो खून नही। बेटी को समझ ही नही आया की वह शोषण का धिनौना शिकार हो गई। महिला थाना पुलिस केन्द्र मे सूचना दर्ज करायी गई। कडी से कडी तहकीकात की गई। डाक्टर सेठ जैसे भले मानस के रूप मे दिखने वाले दरिन्दे को कानून ने अपनी गिरफ्त मे लः लिया। आज की भागम-भाग की दौड़ मे बच्चो का अकेलापन उनकी मानसिकता पर गहरा आघात पहुंचता है। हाय! रे लोगो की सोच जो संयुक्त परिवार मे रहने को सिरदर्द समझती है। संयुक्त परिवार संस्कारो की धरोहर होती थी। सुरक्षित समाज तभी होगा जब शुद्ध विचारो से युक्त मस्तिष्क होगा। स्वच्छ सोच होगी। क्योंकि नारी बालिकाए सम्मान योग्य होती है। उन्हे संभोग की वस्तु मान कर खेलना बहुत बडा अपराध है।
संदेश- नारी सबला है। भूख मिटाने का खिलौना समझने का अपराध नहीं करना चाहिए।