लचित बोरफुकन कौन थे?

लचित बोरफुकन कौन थे?

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एन डी ए में बेस्ट कैडेट को एक स्वर्ण पदक से प्रदान किया जाता है, लेकिन बहुत कम ही लोग उस पदक का नाम जानते होंगे।

उस पदक का नाम है “लचित बोरफुकन।" लचित बोरफुकन कौन हैं? ये वह हैं जिनके कारण पूरे उत्तर भारत पर अत्याचार करने वाले मुस्लिम शासक और मुग़ल कभी बंगाल के आगे पूर्वोत्तर भारत पर कब्ज़ा नहीं कर सके।

लचित बोरफूकन असम के शिवाजी कहलाते थे। उनकी रणनीति और बहादुरी के कारण मुग़ल शासकों का पूरे भारत पर कब्ज़ा करने का सपना कभी पूरा न हो सका। इस वीर योद्धा को इतिहासकारों ने इतिहास के पन्नों से ग़ायब कर दिया।

उस समय अहोम राज्य (आज का आसाम या असम) के राजा थे चक्रध्वज सिंघा। दिल्ली में क्रूर मुग़ल शासक औरंगज़ेब का शासन था। औरंगज़ेब पूरे भारत पर राज करने का सपना पाले हुए था। वह चाहता था कि उसका साम्राज्य पूरे भारत तक फैले, लेकिन भारत के पूर्वोत्तर के हिस्से तक वह नहीं पहुंच पा रहा था।उसने 4000 महाकौशल लड़ाके, 30000 पैदल सेना, 21 सेनापतियों का दल, 18000 घुड़सवार सैनिक, 2000 धनुषधारी और 40 पानी के जहाजों की विशाल सेना असम पर आक्रमण करने के लिए एक हिन्दू राजा राम सिंह को भेजा।

उस समय अहोम के वीर सेनापति थे लचित बोरफुकन। पहले भी कई शासकों के हमले इन्होनें नाकाम कर दिये थे। कुछ समय पहले ही लचित बोरफूकन ने गौहाटी को दिल्ली के मुग़ल शासन से आज़ाद करा लिया था। जब उन्हें मुग़ल सेना के आने की खबर हुई तो उन्होंने अपनी पूरी सेना को ब्रह्मपुत्र नदी के पास खड़ा कर मुग़ल सेना का रास्ता रोक दिया।

इस लड़ाई में अहोम राज्य के 10 हजार सैनिक मारे गए और लचित बोरफुकन बुरी तरह जख़्मी होने के कारण बीमार पड़ गए। अहोम सेना का बुरी तरह नुकसान हुआ। राजाराम सिंह ने अहोम के राजा को आत्मसमर्पण के लिए कहा, जिसको राजा चक्रध्वज ने “आखरी जीवित अहोमी भी मुग़ल सेना से लड़ेगा” कहकर प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया।

लचित बोरफुकन जैसे जांबाज सेनापति के घायल और बीमार होने से अहोम सेना मायूस हो गई थी। किंतु लचित बोरफुकन ने राजा को कहा कि जब देश, राज्य आक्रांताओं द्वारा कब्ज़ा किए जाने के खतरे से जूझ रहा है, जब हमारी संस्कृति, मान और सम्मान खतरे में हैं, तो वे बीमार होकर भी आराम कैसे कर सकते है, बीमार और लाचार होकर घर कैसे जा सकते हैं। उन्होंने राजा से युद्ध की आज्ञा मांगी।

इसके बाद ब्रम्हपुत्र नदी के किनारे सराईघाट पर वह ऐतिहासिक युद्ध लड़ा गया, जिसमे लचित बोरफुकन ने सीमित संसाधनों के होते हुए भी मुग़ल सेना को रौंद डाला। अनेकों मुग़ल कमांडर मारे गए ।लचित बोफुकन की सेना ने मुग़ल सेना को अहोम राज्य के सीमाओं से काफी दूर खदेड़ दिया।इस युद्ध के बाद फिर कभी पूर्वोत्तर भारत पर किसी ने हमला करने की नहीं सोची। खासकर औरंगजेब को लचित बोरफूकन की ताकत का अंदाजा हो गया था। यही वजह है कि यह क्षेत्र कभी गुलाम नहीं बना।

ब्रम्हपुत्र नदी के किनारे सराईघाट पर मिली उस ऐतिहासिक विजय के करीब एक साल बाद ,उस युद्ध में अत्यधिक घायल होने और लगातार अस्वस्थ रहने के कारण इस वीर योद्धा की मृत्यु हो गई। यह दुर्भाग्य ही है कि इनका नाम भारत के अधिकतर लोग नहीं जानते हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने उनकी जयंती पर उन्हें याद किया।



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