लालिमा
लालिमा
दो दिनों से घर में बच्चों के चेहरे कुछ अधिक ही फूलों से खिल रहे थे। होठों की लालिमा बढ़ती जा रही थी। शिक्षक दिवस की जोर- शोर से तैयारी जो चल रही थी। पाठशाला के नाटक में श्रुति को उसकी पसंददीदा अध्यापिका बनना था। और नवीन को विद्यालय के प्राध्यापक का किरदार निभाना था। बच्चों का उत्साह देख अनायास ही सुधा भी थोड़ी देर के लिए अपने बचपन में घूम आई। वर्मा मैडम जो कि कहने को तो हिंदी की अध्यापिका थी और सुधा की क्लास टीचर भी लेकिन, एक दिन जब रसायन शास्त्र की अध्यापिका अनुपस्थित थी तो वह कक्षा में आकर बच्चों की रसायन शास्त्र की नींव बनाने लगी जिसने सुधा को न सिर्फ प्रभावित ही किया वरन सुधा का वर्तमान भी बना दिया। आज डॉ सुधा महाविद्यालय में रसायन शास्त्र की प्राध्यापिका है।