क्योंकि लड़के रोते नहीं

क्योंकि लड़के रोते नहीं

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हमारे समाज मैं ऐसे कई अवसर आते जिनमैं लड़कियों से ज्यादा दुःख लडको को होता है।

लेकिन उन्हें खामोश रहना पड़ता है, क्योंकि हमारा समाज पुरुष प्रधान समाज है जिसमैं पुरुषों को दृढ़ता और सहनशक्ति का दूसरा रूप कहा गया है।

ये फिलहाल सभी के साथ होता है लेकिन जानबूझकर लड़को को अपनी भावनाओं को दबाकर रखना पड़ता है।

जिम्मेदारियां भी उन्हीं लड़को पर दस्तक देती हैं।

ऐसा नहीं है कि लड़कों को दुख और तकलीफ नहीं होती है।

बस फर्क यह है कि वह अपने दुख को मन मैं दबाना जानते हैं।

लड़के इसलिए भी नहीं रोते क्योंकि जब दुख की परिस्थिति मैं हमारे घर के पुरुष ही रोने लगेंगे।

तो औरतें और भी ज्यादा हिम्मत हार जाएंगी।

औरतों की हिम्मत बनाए रखने के लिए पुरुष अपना दिल इतना बड़ा कर लेते हैं कि उनकी आंखों से आंसू नहीं आते।

पर हमैं यह समझना चाहिए कि वह भी एक इंसान हैं और उन्हें भी उतनी ही तकलीफ होती है।

वह रो नहीं सकते तो क्या हुआ उन्हें भी सांत्वना और साथ की आवश्यकता होती है।

बचपन से ही लड़कों के दिमाग मैं यह बात डाल दी जाती है कि लड़के रोते नहीं हैं। ऐसा बिलकुल नहीं है कि वह आंसू को कमजोरी मानते हैं बल्कि वह दूसरे की ताकत बनने के लिए अपने आंसुओं को रोक लेते हैं।

एक ऐसी ही घटना हुई थी, मेरे दो दोस्त जो शहर मैं रहते थे आज गांव आए थे और दोस्त मेले मैं जा रहे थे, मुझे फोन किया। लेकिन मैंने मना कर दिया।

क्योंकि मैं हॉस्पिटल मैं एडमिट था, वो मेरा तार से होठ कट गया था, तो चार टांके लगाने पड़े थे।

तो मैंने मना कर दिया। वो मेले मैं जाकर वापस आ रहे थे कि मोटरसाइकिल का एक्सिडेंट हो गया और दोनों बुरी तरह घायल हो गए।

सयोंग से उन्हें उसी हॉस्पिटल मैं लाया गया जिसमैं मैं एडमिट था।

अफसोस वो एक काल का ग्रास बन गया। मुझे उसी दिन डिस्चार्ज होना था तो मैं बाहर आया और देखा कि मेरा दोस्त मोर्चरी की तरफ से आ रहा था बेड पर लेटकर, मैं देखते ही रो पड़ा। तो डॉक्टर ने कहा कि आप रोएंगे तो आपके टांके रीझना शुरू हो जाएंगे और इनको खोलने के बाद होठ काटना पड़ेगा।

लेकिन आंसू तो रुक ही नहीं रहे थे, लेकिन जब मैं नीचे आया तो देखा

कि बाहर दोनों दोस्तो के परिजन आपस मैं ढांढस बंधाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन उस वक़्त का माहौल शायद आप जानते है।

मुझे देखकर मेरे एक दोस्त की मां रोने लगी मैंने बड़ी मुश्किल से खुद को रोका और उन्हें चुप कराने लगा।

जब उन्हें घर लाया गया तो घर की औरतों का हाल इतना बुरा हो गया, कुछ बेहोश हो गई, कुछ रो रही थी।

उन्हें बार बार संभालना पड़ता।

मैं जब मेरे दोस्त के उस कमरे मैं गया जहां हम रात मैं पार्टी करते थे, तो मुझे बस परछाई नजर आईं एक आवाज लगाते हुए, किलड़के कभी रोते नहीं

मैंने उस दिन अपने आप पर काबू करना सीखा।

ये मेरे किसी दोस्त की आपबीती है। कृपया अन्यथा न लें।

मेरे खुद के ही घर की बात है कि जब मैं स्कूल मैं पढ़ता था तो मैं और मेरी छोटी बहन साथ स्कूल जाते थे और साथ ही आते थे उस दिन मैं पिछे पिछे चल रहा था।

और वो आगे आगे की अचानक मोड़ पर ट्रक आ गया और मेरी छोटी बहन की ट्रक दुर्घटना मैं मौत हो गई। मैंने खुद ने अपनी बहन की गोद मैं उठाया और बिना किसी आंसू के हॉस्पिटल ( हॉस्पिटल स्कूल के पास ही है) ले गया।

हां वो मुझे छोड़कर जा चुकी थी मगर मेरा दिल नहीं पसीजा।

घर आए फिर उसे दफनाया गया क्योंकि वो उम्र मैं छोटी थी वो मुझे छोड़कर चली गई।

लेकिन मेरे आंख मैं एक आंसू तक नहीं आया। मैं गर्मी की छुट्टियों मैं ननिहाल चला जाता था तो उस इतने फोन करता था जितने कोई अपनी गर्ल फ्रेंड को न करे।

फिर भी न जाने क्यों मुझे अहसास ही नहीं हुआ कि मेरे साथ क्या हो गया। कहीं ये सच तो नहीं कि लड़के कभी रोते नहीं।


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