क्या यही प्यार है!
क्या यही प्यार है!
"रीना क्या हाल बना रखा है तुमने अपना अब तो तुम्हारे बदन से भी मसाले की खुशबू आती है" राजेश ने बाथरुम से निकलते ही रीना को देखा और गुस्से से बड़बड़ाने लगा।
रीना ने राजेश की ओर देखा और आँखें झुका ली।
"नाश्ता तैयार है "
गुस्सा अपनी चर्म सीमा पर था।
"जी "
संक्षिप्त सा जवाब सुनाई दिया।
"आज फिर ब्रेड आमलेट तुम्हारे पास मेरे लिये समय ही नही रहा "
झटके से प्लेट पीछे सरकाते हुए राजेश तैश मे बोला। फिर वही खामोशी राजेश गुस्से से भन्ना गया।
"टिफीन भी रहने दो ऑफिस में ही खा लूँगा " कहते हुए राजेश ने गाड़ी की चाबी उठाई और तेजी से निकल गया। रास्ते भर मूड ऑफ रहा। ऑफिस मे पहुंच कर बिजी हो गया तो सब भूल गया लेकिन शाम होते होते फिर वही कोफ्त घर तो जाना ही पड़ेगा जैसे ही गाड़ी में बैठा कि माँ का फोन आ गया। अनमने मन से फोन उठाया न उठाता तो माँ चिंतित होकर बार बार फोन करती ही रहती।
"हेलो हाँ राजेश कैसा है बेटा "
माँ ने फोन उठाते ही हमेशा की तरह पहला प्रश्न पूछा।
"ठीक हूँ मां"
राजेश ने खुद को संयत करते हुए जवाब दिया।
पर माँ तो माँ ही होती हैं न एक पल में माँ ने भांप लिया कि राजेश के मन में कोई तो उथल पुथल मची हुई है।
"और सुना बहू बच्चे ठीक है कितने दिन हो गये तुझे देखे जब से तेरी नौकरी दूसरे शहर मे लगी है तरस गई हूँ तुझे देखने को टाईम निकल कर आजा जल्दी"
"जी मां जल्दी ही आऊंगा "
छोटा सा प्रत्युतर
" आज उदास क्यूँ है रे" माँ से पूछे बिना रहा न गया। मं के प्रेम का जरा सा सहारा पाते ही आक्रोश का ज्वालामुखी सा फूट पड़ा
"माँ वक्त के साथ रीना में बहुत बदलाव आ गये हैं अब कुछ भी पहले जैसा नही रहा न तो अब वो मेरा ठीक से ध्यान रखती है न मेरी पसंद नापसंद का ध्यान रखती है और तो और मेरी पसंद का खाना तक बनाने का समय नही रहा अब उसके पास माँ आए एम फेड अप नाओ" राजेश के मन में चल रही सारी उमड़ घुमड़ एक ही झटके में उबल पड़ी। माँ ने ध्यानपूर्वक राजेश की सब बातें सुनी और फिर पूछा -
"और तू तू नही बदला क्या सच बताना क्या तू रीना को पहले की तरह समय देता है" "पर माँ" राजेश को एक पल को कोई जवाब न सूझा। माँ ने गहरी आवाज में अगला प्रश्न दागा- "क्या तू उसे घुमाने सिनेमा दिखाने या पहले की तरह शापिंग कराने लेकर जाता है"
"मां उसके पास तो टाईम ही नही है यही तो सबसे बड़ी प्राब्लम है"
"बेटा मैं भी इसी दौर से गुजर चुकी हूँ तेरे और मेरे पापा के बीच भी ये खाई पनपी थी दूरियाँ इतनी बढ़ गई किपर समय रहते तेरी दादी ने सब संभाल लिया।" "क्याss" राजेश जैसे पलक झपकना ही भूल गया "बेटा बच्चे होने के बाद पत्नी एक माँ भी होती है घर और बच्चों की दोहरी जिंदगी जीते जीते एक पत्नी खो सी जाती है पति शायद इस बात को उतनी गहराई से नही समझ पाते उन्हें तो बस अपने हिस्से का समय चाहिए होता है" "माँ" "याद है जब हम सब साथ रहते थे तो मैं किसी न किसी बहाने से तुम दोनों को बाहर भेज देती थी और बच्चों को खुद संभाल लेती थी पर दूसरे शहर में जाकर बहू को किसका सहारा है और फिर तू भी उसका साथ नही देगा तो कौन देगा बेटा" माँ की बातें पल्ले पड़ने लगी उदासी के घने बादल छटकने लगे
"मैनें कभी इस पॉइंट ऑफ व्यू से तो सोचा ही नही" राजेश को ग्लानि सी अनुभव हुई -
"माँ मेरी बुद्धि भ्रष्ट हो गई थी कि अनजाने में क्या क्या सोच गया रीना के बारे मेँ माँ आज आपने मुझे सही राह न दिखाई होती तो मेरा तो घर ही"
"शुभ शुभ बोल बेटा प्रेम तो एक गहरा सागर है इस सागर मे जितना डूबोगे उतना सुख पाओगे" "माँथेंक्यू" शर्मिन्दगी सी महसूस हुई राजेश को पर माँ ने अपना रोल बखूबी निभा दिया था और उथल पुथल का कीड़ा राजेश के मन से निकाल फेंका था।
"सदा सुखी रहो मेरे लाल अब फोन रख और खुश मन और सकारत्मक विचारों के साथ घर जा बहू इंतजार करती होगी "
"जी मां"
राजेश की आवाज में लरजती खुशी की लहर महसूस कर चुकी थी माँ घर पहुँचते ही राजेश ने ऐलान कर दिया- "जल्दी से तैयार हो जाओ आज डिनर बाहर ही करेंगें और ब्च्चो आज तुम्हारी पसंद की आइसक्रीम भी खायेंगे"
"पर मैनें तो खाना बना लिया आप सुबह भी बिना कुछ खाए चले गये सॉरी राजेश।"
रीना की रूआंसी आवाज़ और लाल आंखें बता रही थी की वह बहुत रोयी होगी आज।
"सॉरी तुम नही मैं कहना चाहता हूँ तुम्हे बहुत इग्नोर किया इतने दिन अब और नही।"
राजेश रीना की आंखों मे झिलमिलाते आँसुओ को जैसे पी जाना चाहता था। "जाओ जल्दी से मेरी पसंद की नीली शिफोन की साड़ी पहन कर तैयार हो जाओ और हाँ रेड लिपस्टिक ही लगाना।"
