Meenakshi Kilawat

Tragedy

5.0  

Meenakshi Kilawat

Tragedy

कुरीतियों की शिकार विधवा

कुरीतियों की शिकार विधवा

6 mins
428


हमारे समाज में विधवा स्त्रीयों की कितनी भयंकर स्थिती तथा विडंबना होती रहती है। आए दिन कोई ना कोई स्त्री विधवा होती है। ऐसी हजारो विधवाए समाज में फैली हुई कुरीतियो की शिकार बनती है। समाज में एक विधवा स्त्री को कुछ भी महत्व नही दिया जाता उसे अंधेरे में रहने के छोड़ दिया जाता है।यह दुख दर्द भोगने के पिछे समाज का ही हाथ होता है। विधवा स्त्रीयों को अशुभ मानते हैं। हालाकी विधवा होने में उस मासूम स्त्री का कोई हात नही होता है।उसे अलग-थलग क्यों समझा जाता है।समाज में विधवा स्त्री के बारे में कितनी बाते फैलाई जाती है।उससे घर के बड़ेछोटेबात बात पर प्रताड़ित करते हैं और अपमानित करते हैं ।यह एक स्त्री का घोर अपमान है।यह समाज कब सुधरेगा ? इनकी कमकुवत सोच को कोई पंख नहीं होते बिनासर पैर के ही आकाश में उड़ते हैं। तथा विधवा स्त्री को बदनाम करने में कोई कसर नहीं छोड़ते।अंधश्रद्धा में डूबे हुए लोग एक स्त्री की दुख दर्द को कम तो नहीं करते लेकिन और बढ़ा देते हैं।


एक विधवा के जीवन में कई प्रकार की समस्याएं आती है। तब कोई नहीं होता सगे संमधी,रिश्तेदार कहीं बहन बेटी अपने गले ना पड़े यही डर से उससे वह पहले ही कन्नी काट लेते हैं।या अगर उसको अपने घर में रखना पड़े तो उसे एक नौकर की तरह रखा जाता है। और वह उत्तरण पर जीती है।कभी वही बेटी बहन बहुत प्यारी होती लेकिन विधवा होते ही सबकी नज़रे बदल जाती है।

यहां कई ऐसी संस्कृति है यह कौन सी परंपरा है।


हौसला अफजाई सभी करते हैं कहते हैं अब अपने बाल बच्चों की ओर ध्यान दो तुमको हौसला रखना चाहिए दुख तो उसे संभालने की शक्ति भी ईश्वर देगा और कम ज्यादा हुआ जरूरत पड़ी तो हम तुम्हारे लिए कभी भी तैयार रहेंगे कम से कम साल भर लोग रिश्तेदार ऊपर ऊपर फोन करके या आकर धीरज बंधाते हैं ।उसके बाद सच्ची विधवा स्त्री की परीक्षाएं शुरू होती है।किसीसे या सरकार से मदद की अपेक्षाएँ करती है लेकिन वह सफल नहीं हो पाती।दफ्तरों के चक्कर पर चक्कर लगाकर थक जाती है।तब सभ्य समाज के लोग उसका साथ देने से घबराते हैं।कहीं विधवा स्त्री के साथ जाने से हमारी बदनामी ना हो जाए।तथा छिपछिपाकर उसकी मदद के बदले इज़्ज़त का सौदा करने में नहीं हिचकीचाते।


क्यों नहीं समझता समाज विधवा स्त्री कोई खिलौना नहीं है जीती जागती एक करुणामई स्त्री है ।उसके पास भी मन,ह्रदय, दया,माया सब कुछ है लेकिन उसके जीवन की महादशा क्यों होती है। जब वह विधवा हो जाती है तब समय क्यों रूक जाता है।क्या कोई स्त्री जानबूझकर विधवा होती है ?हालांकि लोग बाग उसके दुख दर्द दूर करने के लिए हामी भरते दिखाई देते हैं ।लेकिन जब वक्त पड़ता है तो सब पीछे हट जाते हैं।कई लोगों के मनमें विधवा स्त्री से फायदा उठाने की बात ही होती है लेकिन भलाई की बात करते हैं। एक विधवा की इज़्ज़त को मटिया मेटकर कर क्या भलाई करना चाहते हैं।यह सब दिखावा नाटक होता है अंदर एक बाहर एक होता है।किसी भी विधवा स्त्री ने इसके लिए तैयार रहना चाहिए।दुनिया जैसी दिखती है वैसी होती नहीं है।ऊपर ऊपर की बातों से सब बहलाते हैं लेकिन अंदर कुटिलता भरी होती है ।


हालांकि सच्चे सहारे की जरूरत होती है लेकिन सहारा ना देकर दुख दर्द ही झोली में पड़ता है। इससे तो अच्छा है कि खुद मेहनत कर अपने बाल बच्चों का पोषण मेहनत मजदूरी करके किया जाए तो बेहतर स्थिति हो सकती है और विधवा स्त्री का मान भी बना रह सकता है।किसी भी किसी भी हालत में अपने इज्जत का सौदा कर किसी की मोहताज बनकर उस व्यक्ति के विषैले डंख से बचना चाहिए ताकि किसी के मदद या उपकार से परस्वाधिन या दबकर जीवन जीना ना पड़े।तथा अपना आत्मसम्मान ना बेचना पड़े। आज कल हर जगह पर स्त्री को काम मिल जाता है।काम कोई छोटा या बड़ा नहीं होता।जहां कई नैतिकता,ईमानदारी हो वहीं पर काम किया जाना चाहिए चाहे कुछ पैसे कम है क्यों ना मिले।


इन सब बातों के लिए पहले घर से बाहर निकलना होगा समाज में अपने आप को निडर बनाना होगा छोटा-मोटा कोई भी व्यवसाय कर अपना घर परिवार चला सकती है।


 पति जब तक जिंदा रहता है तब तक अपने पत्नी को बाहर नहीं जाने देते ना अन्य कोई काम करने देते बड़े प्यार से प्रेम से उसे घर की रानी बनाकर रखते है लेकिन कभी किसी एक को दुनिया से पहले जाना ही पड़ता है।यह विचार पतिके मन में क्यों नहीं आता,वह पत्नी बाल बच्चों के लिए क्यों नहीं कुछ सोचते ,कम से कम कुछ विमा जैसी योजनाएं या बैंक बैलेंस या घर बार प्रॉपर्टी कुछ करके जाना चाहिए । नहीं तो पत्नी को पहले से ही बाहर की दुनिया दिखानी चाहिए उसे पहले ही बढ़ावा देकर कामकाज व्यवहार सिखाना चाहिए।मगर कुछ सोचे समझे आगे की सोच पति लोगों को नहीं होती।अगर वह अचानक स्वर्ग सिधार जाता है तो खामियाजा पत्नी को ही भुगतना पड़ता है।

जिस विधवा स्त्री को ना नौकरी है ना पेंशन है ना प्रॉपर्टी है ऐसी औरत क्या करेगी वाली स्थीती से जाहिर है वह कितनी परेशान रहती होगी । जो अच्छे घर से हो जिसने कभी पहले बाहर काम ना किया हो या कभी बाहर का व्यवहार नहीं किया होगा उस विधवा स्त्री को कितनी टेंशन होती होगी पति तो एकही बार उसे विधवा कर चला जाता लेकिन वह स्त्री संसारमें कई बार मरती है।

 मैंने देखा है ऐसे स्त्री को जो घर की घरकी हरएक चीज बेच बेचकर अपना बाल बच्चों का पालनपोषण करती है। 

और किसी से मदद की अपेक्षा अगर करती है तो बदले में वह उसके इज़्ज़त से खिलवाड़ करना चाहता है। नियत साफ ना होने के कारण नजर उसकी जवानी पर होती है।इन सब बातों से परेशान होकर उसे गुनाहगार सा लगता है ।उस विधवा स्त्री ने घर में ही खाना बनाकर स्कूल कॉलेज के बच्चों को तथा ऑफिस के लोगों को खाना खिलाया उसी से उसकी आमंदनी बढती गई और वह अपना परिवार का पालन पोषण करती गई।उसे सामान लाने बाजार जाना पड़ता सब्जियां तथा किराना सामान हर रोज ही लाना पड़ता था।ना जाती तो कौन ला कर देता ।बच्चे भी तो छोटे थे,वह सुंदर होने की वजह से  

सुंदरता ही उसके जी का काल बन गया था।


स्त्री के नज़दीकी लोग अड़ोसी पड़ोसी जब बाहर जाने लगी या कोई पर पुरुष से बात कर ली हो तो उसे देख कर मनगढ़ंत बातें सोचना शुरू कर देते हैं।पुरुष का तो जाने ही दो कुछेक स्त्रीयांही ऐसा करती है।यह बहुत ही शर्म की बात है एक स्त्री होकर दूसरे स्त्री का दर्द नहीं जान सकती उसकी मजबूरी नहीं समझ सकती जैसे वह उसके पति या भाई को भगाकर ले जाने वाली है। इतनी कमकुवत विचारधारा देखने को मिलती है। इधर पहाड़ी इधर खाई जैसी स्थिती एक विधवा की होती है । उनका जीना दूभर हो जाता है। यह कलुषित भावनाएँ पता नहीं समाज से कब खत्म होगी। और एक विधवा के कब अच्छे दिन आएंगे।


  हमे चाहिए के एक विधवा स्त्री की सच्चे मन से मदद कर उसे सच्चा मार्ग दिखा कर उसका हौसला बढ़ाएं वह विधवा स्त्री कोई भी हो सकती है अपनी मां,बहन,भाभी पड़ोसी, संबंधी या मित्र ।आज दूसरी स्त्री पर वक्त की मार पड़ी है तो कल वही मार हमपर भी भारी पड़ सकती है।



Rate this content
Log in

Similar hindi story from Tragedy