Deepshikha Nathawat

Inspirational

4.0  

Deepshikha Nathawat

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कुंती

कुंती

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एक आदिवासी कस्बा नाम है मालवा। क़स्बे मैं जयराम का परिवार रहता है जयराम अपनी पत्नी और अपनी दो बेटियों के साथ क़स्बे में रहता है। जयराम की बड़ी बेटी केसर को घर का काम करना और सजना संवरना और छोटी बेटी कुंती को लिखना और पढ़ना बहुत पसंद है। लेकिन अपनी गरीबी के कारण जयराम अपनी बेटियों को पढ़ा नहीं पाता है। जहां जयराम मछली पकड़ कर और उसकी पत्नी मिट्टी के खिलौने बनाकर घर चलाते है। जब भी कभी कोई मंत्री मालवा में प्रचार करने आता तो कुंती पूरे समय उनको बड़े ध्यान से देखती वो जो भाषण देते उनको ध्यान से सुनती। कुंती ये सब देखकर सपने देखती थी की काश! वो भी एक दिन बड़ी होकर कुछ बड़ा काम करे अपने कस्बे के लिए। कुंती अभी 14 साल की थी और वही कुंती की बड़ी बहन केसर अभी 16 साल की थी। जयराम केसर और कुंती की जल्दी शादी करना चाहता था। उस जमाने में लड़किया बहुत जल्दी जवान हो जाती थी उनको बोझ समझा जाता था। जयराम भी जल्दी इस बोझ से छुटकारा पाना चाहता था। पर कुंती पढ़ना चाहती थी कुछ बनना चाहती थी। उसके बहुत से सपने थे जिन्हें पूरा करना चाहती थी। एक दिन मालवा में जिला कलक्टर आई जो की एक महिला थी उनका नाम था गीता देवी। सरकार ने एक योजना लागू की थी कि आदिवासी बच्चों को मुफ्त शिक्षा दी जाएगी गीता देवी उस योजना को बताने मालवा में आई थी वो चाहती थी कि मालवा का हर आदिवासी बच्चा पढ़े कुछ बने अपने जीवन में खासकर लड़कियां जो केवल रसोई घर परिवार संभालने में अपनी पूरी जिंदगी खत्म कर लेती है। मालवा में कुंती से उनकी मुलाकात हुई। वो कुंती की बातें सुनकर उसके सपने जानकर बहुत खुश हुई कहीं ना कहीं कुंती में उन्हें अपनी छवि नजर आयी।  गीता देवी ने जयराम से कुंती और केसर को स्कूल भेजने को कहा लेकिन जयराम को तो उनकी शादी करनी थी। जयराम ने साफ मना कर दिया जयराम ने कहा मुझे दोनों को कोई पढ़ाई नहीं करवानी। कुंती को पढ़ना था वो शादी नहीं करना चाहती थी। गीता देवी ने जयराम को ख़ूब समझाया लेकिन वो नहीं माना। अपनी ज़िद पर जयराम ने उन दोनों की शादी ऐसे लड़कों से कर दी जो कुछ नहीं करते थे बस शराब के नशे में रहते थे। केसर को उसका पति बहुत मारता था ऐसा एक दिन भी नहीं गया जब केसर ने मार ना खाई है। उधर कुंती का पति कई दिनों तक घर नहीं आता था उसे कोई मतलब नहीं था की कुंती कैसी है किस हाल में हैं! कुंती के ससुराल में भी कोई नहीं था वो बिलकुल अकेली थी। कुंती ने बहुत बार जयराम को अपने घर ले जाने को कहा लेकिन जयराम कुंती को कुछ खाने पीने को पहुंचा देता लेकिन उसे अपने साथ नहीं ले जाता था। एक दिन कुंती का पति एक औरत को लेकर घर आया और कुंती को कहा कि ये ही मेरी पत्नी है अभी से ये यही पर रहेगी। कुंती को कुछ समझ नहीं आ रहा था की वो क्या करे? कुंती ने ये सब जब जयराम को बताया जयराम ने कहा तुमको ही समझना पड़ेगा वो जैसे रखेगा वैसे रहना पड़ेगा। कुंती को समझ नहीं आ रहा था की वो करे तो क्या करे। उन्हीं दिनों केसर गर्भवती हो गई । कम उमर में माँ बनना केसर की जान के लिए खतरा था लेकिन केसर की किसको परवाह थी। और एक दिन वही हुआ जिसका डर था बच्चे को जन्म देते समय केसर और उसके बच्चे की मौत हो गई। कुंती ने जब अपनी बहन की लाश देखी तो कुंती ने सोच लिया की मुझे ऐसी मौत नहीं मरना है। अब कुंती ने सोच लिया था की उसे पढ़ना है और कुछ बनना है। और फिर कुंती गीता देवी से मिली और अपनी पढ़ाई की शुरुआत गीता देवी के घर से कर दी वो गीता देवी के घर ही रहने लगी कुंती गीता देवी के घर का काम करती गीता देवी की देखभाल करती और साथ में अपनी पढ़ाई बहुत मन लगाकर करती। कुंती ने दसवीं और बारहवीं की परीक्षा बड़े अच्छे नंबरों से पास की। और उसके बाद उसने कला क्षेत्र से स्नातक की परीक्षा पास की। गीता देवी के भी घर में कोई नहीं था वो कुंती को अपनी बेटी की तरह रखती थी। गीता देवी ने कुंती को IAS कि तैयारी करवाई उनको पता था की कुंती IAS परीक्षा पास कर लेगी। और एक दिन कुंती ने गीता देवी का सपना सच कर दिखाया कुंती ने परीक्षा और इंटरव्यू मे टॉप किया था। वो चाहती तो कोई भी अच्छी जगह पोस्टिंग ले लेती लेकिन कुंती ने वो ही जिला चुना जिसके अंतरगत मालवा कस्बा आता था। जयराम ने कुंती को जब ऐसे अफसर बना देखा तो अपने किये पर बहुत अफसोस हुआ। कुंती का अफ़सर बनने का सपना पूरा हो गया लेकिन अभी एक सपना और भी था की कोई भी आदिवासी लड़की दूसरी केसर ना बन जाए उसके लिए मालवा और उसके जैसे कई पिछड़े गांवों में साक्षरता कि लहर चलानी होगी। कुंती ने अपना पूरा जीवन आदिवासियों के जीवन को साक्षर और उद्देश्यपूर्ण बनाने में समर्पित कर दिया।


कुंती को तो गीता देवी का साथ मिल गया था लेकिन हर लड़की को ऐसा साथ नहीं मिलता हमें अपने हक की लड़ाई खुद ही लड़नी पड़ती है।


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