कुलच्छनी

कुलच्छनी

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सीसीडी में अचानक आरती की मुलाकात आज आर्यन से हो गई। वह भी एक दशक के लंबे अंतराल के बाद!! वैसे, इस दसवर्ष की लंबी जुदाई आरती के लिए ज्यादा मायने तो न रखती थी क्योंकि इतने सालों में वह कभी उसकी यादों से बाहर ही नहीं निकल पाई ---हर घड़ी, हर पल आर्यन की यादों की चादर वह अपने ऊपर ओढ़े रहती थी। एक पल भी कभी ऐसा न बितता था जबकि आर्यन का ध्यान उसके मन मस्तिष्क से उतरा हो।

उसकी तरक्की, उसकी खुशहाली की कल्पना करना उसके दिनचर्या में हमेशा शामिल रहा-- अभी आर्यन यह कर रहा होगा, अभी आर्यन ऐसे होंठ दबाकर हंस रहा होगा। अभी वह गुस्से में दनदनाकर किसी को यूं फटकार रहा होगा, या फिर आर्यन इस समय गीटार पर अपनी कोई फेवरीट धुन बजा रहा होगा!! निरंतर इन्हीं सब कल्पनाओं में वह खोई सी रहती थी और मन ही मन मुस्कुराया भी करती थी।

यहाॅ तक कि आसपास के सब लोग उसे पागल करार कर चुके थे, पर इससे आरती को कभी कोई फर्क नहीं पड़ा। हारकर वे लोग उसकी खुशियों के स्रोत ढूंढने में व्यस्त हो गए परंतु आरती के मन का थाह पाना भी इतना आसान न था!!क्योंकि वह बेहद अंतर्मुखी स्वभाव की थी। वह लोगों के सामना अपना दिल कभी न खोलती थी। उसे केवल अपनी भावनाओं के संग वक्त गुजारना अच्छा लगता था।

ऑफिस में आरती जैसी ऊर्जावान कार्मिक कोई और न था । इसलिए उसके खिलाफ शिकायत के मौके भी उन लोगों के पास बहुत कम होते थे। उसे जो भी काम दे दिया जाता वह तुरंत ही उसे कर डालती। साथ ही सबने हमेशा उसे हंसते हुए ही देखा था। और इसलिए उसकी कोई कमीं न गिना पाने के हालत में उसके सभी सहकर्मी उससे थोड़ा बहुत ईर्ष्या करते थे।

पर चाहे जो भी हो, वह हर शनिवार शामको सीसीडी में एक कॅप काॅफी पीने जरूर आती थी। आज उसे यहाॅ पर आर्यन मिल गया।

यह तो हुई आरती की बात।

उसने आर्यन से खुश रहना सीखा था, परंतु आज आर्यन स्वयं इतना खुश तो नहीं नजर आ रहा था? वह अकेले अपने विचारों में डुबा हुआ सर नीचे किए काॅफी के कप को लगातार देखे जा रहा था। लगता नहीं कि आसपास की ज़रा भी सुध उसे है। बाल बड़े बेतरतीब से उसके इधर उधर उड़ रहे थे, गालों पर एक हफ्ते से न बनाई हुई दाढ़ी थी और सदा चमकने वाली आंखे अब कांतिहीन और बुझी -बुझी सी लग रही थी। वह जैसे किसी गंभीर चिंता में निमग्न था!

बिना कोई इत्तला दिए आरती अचानक उसके टेबल पर उपस्धित होती है। (उसका आर्यन इतना दुखी क्यों है यह जाने बगैर उससे रहा न गया। हालांकि उसने किसी भी मेहता से दुबारा न मिलने की कसम खाई थी। परंतु अभी परिस्थिति कुछ भिन्न थी।) और बगैर किसी भूमिका के कुर्सी खिंचकर उसके सामने बैठ गई। तब आर्यन उसकी तरफ आंखे उठाकर देखता है और सिर्फ इतना ही कह पाता है

"अरे आरती तुम ?"

वह भी इस तरह मानो आरती का वहाॅ होना कोई बहुत बड़ी बात न हो! वह युगयुगांतर से वहीं थी। कहीं गई ही नहीं!!उसी के सिर्फ सीसीडी पर कदम रखने की देरी थी।

इधर आरती आर्यन के चिंतातुर मुखमुद्रा को निहारकर दुखी हो रही थी। उसने उससे उसकी परेशानी की वजह पूछी।

अब यहाॅ आर्यन का थोड़ा सा परिचय देना आवश्यक है।

आरती और आर्यन साथ साथ खेलकर बड़े हुए थे। एक कक्षा में पढ़ते थे और एक ही मुहल्ले रहते भी थे।घर-घर खेलते समय वे पति पत्नी बना करते थे। खेलखेल में कब आरती आर्यन की खुशियों को अपना खुशी मानने लगी थी यह वह खुद भी न जान पाई।

इधर मेहता खानदान का इकलौता चिराग आर्यन एक ऊर्जावान शख्स था । सदा हंसता खेलता रहने वाला, साथ में बहुत ही शरीर । जनाब के शरारत के किस्से दूर दूर तक मशहूर थे। ऐसा शायद ही कोई रहा होगा जिसे उसने अपने हरकतों से मुसीबत में न डाला हो। एकमात्र आरती ही थी जो उसके शरारतों पर पर्दा डाला करती थी।अगर कोई उसे संभाल पाता तो वह केवल आरती। माॅ और बड़ी भाभी ने तो जाने कब अपने हाथ खड़े कर दिए थे। आर्यन की माॅ आरती से हमेशा

कहती थी --"देखना आरती, यह छोरा तेरे बिना और किसी से नहीं संभलेगा।"

"तुझे ही ताउम्र इसकी जिम्मेदारी लेनी होगी।"

झूठ कहते थे सब !

आरती ने सोचा। ऐसा कहना कितना आसान है। परंतु जब करने की बारी आती है तब सभी अपने असली जलवे दिखा देते हैं। उसदिन आरती ने अंटी जी से करुणा की कितनी भीख मांगी थी। पर उनका दिल आरती पर ज़रा भी न पसीजा।

आज आर्यन की बीवी माॅ नहीं बन सकती थी। उसके गर्भाशय में कुछ कमीं है जिससे वह अपना गर्भ खुद धारण न कर सकती थी। उसके इलाज में ढेरों पैसै खर्च हो चुके थे, मगर हल कोई न उसके हित में न निकल पाया था।

डाॅक्टर ने एक आज एक आखिरी उपाय सुझाया था कि यदि कोई औरत उन दोनों के बच्चों को नौ महीने तक अपने गर्भ में धारण कर ले तो ईशा का माॅ बन पाना संभव है। ऐसी औरत को सरोगेट मदर कहते हैं। बहुधा ऐसी महीलाएं मिल जाया करती हैं जो पैसों के बदले नौ महीनों के लिए अपना गर्भ किराए पर देती हैं।

ऐसी कई महिलाओं से आर्यन और ईशा भी मिल चुके थे परंतु उनके रेट सुनकर उनके कदम खुद ब खुद पीछे हट गए। हौसला पस्त आर्यन को अब उम्मीद की कोई किरण न नजर आ रही थी। इधर माॅ पापा को वारिस की चाहत थी।

आर्यन आरती से अपनी मुसीबत की बात कहता है ।इस उम्मीद से कि शायद उसके पास इसका कोई हल हो।

आरती कुछ जवाब नहीं देती। परंतु उसे अपने साथ घर ले जाती है। बड़े जतन से अपने हाथों से स्वादिष्ट व्यंजन बनाकर उसे जबरदस्ती खिला देती हैं। जानती थी कि आर्यफिन खाने का कितना शौकिन था। बढ़िया लजिज भोजन देखकर वह अपना सारा गम भूल जाया करता था।

आरती आर्यन को सांत्वना देकर कहती है कि सबकुछ ठीक हो जाएगा। फिर वह उससे वादा करती है कि उसे एक दो दिन का समय चाहिए। तब तक वह जरूर इसका कोई न कोई हल जरूर निकाल लेगी। उसकी जान पहचान की ऐसी बहुत सी महिलाएं हैं, किसी न किसी को वह जरूर मना लेगी।

फिर वह बड़े प्यार से आर्यन को उसके घर पर छोड़कर आती हैं।

आर्यन के चले जाने के बाद आरती कुछ देर तक बुत बनकर गाड़ी में बैठी रहती है। वह फिर से भावुक हो उठती है।

यह वही दहलीज थी ---- जहाॅ एकदिन वह दुल्हन के वेश में आकर खड़ी हुई थी!!और तब उसका स्वागत के बदले भयंकर अपमान हुआ था। जिस आर्यन के साथ उन दोनों की माताएं -हमेशा शादी के सपने दिखाया करती थी, न जाने उसदिन वे यह सब कैसे भूल गईं!!

अचानक आरती और आर्यन के बीच उसदिन न जाने कहाॅ से जात-पात रस्मो-रिवाज की दीवार कहाॅ से उग आई थी । रजिस्ट्री वाले दिन पति-पत्नी के जोड़े में जब दोनों आर्यन के घर पहुंचे थे तो उनका गृह प्रवेश कराना तो दूर--आर्यन की माॅ ने दुत्कार कर आरती को रात के अंधेरे में घर से निकाल दिया था।

आरती की शादी की खबर तब तक उसके मायके में फैल चुकी थी। उसके माता पिता के घर के दरवाजे भी उसके लिए बंद हो चुके थे। किसी ने एक पल के लिए भी यह न सोचा कि इतनी रात को बेचारी आरती कहाॅ जाएगी। सबको अपने खानदान की इज्जत ही ज्यादा प्यारा ला था उससमय।सारा दोष आरती के सिर ही मढ़ा गया था, क्योंकि सदियों से गलतियाॅ सिर्फ औरतें करती हैं और इसलिए सजा की हकदार भी वही ठहराई जाती है। जबकि सच तो यह है कि शादी की सहमति में वे उन दोनों की बराबर रूप में शामिल थे। परंतु आरती को अकेले ही बेघर कर दिया गया।

सालभर बाद आर्यन की शादी ईशा से हो गई थी! हाॅ, इसबार बहू आर्यन के माॅ पापा के पसंद से आई थी। आज वही बहू उनके परिवार को वारिस देने में असमर्थ सिद्ध हो चुकी थी।

बीती बातों की याद से खुद-ब- खुद आरती की आंखों से आंसू झरने लगे थे।

उस रात उसे वर्किंग वूमन्स हाॅस्टल में गुजारनी पड़ी थी। फिर अथक परिश्रम से कुछ वर्ष वाद वह अपने लिए यह एक कमरे वाला फ्लैट खरीद पाई थी। आज तो उसके पास गाड़ी भी है। परंतु आद्यंत अकेलापन जो उसकी जिन्दगी में उसदिन से पसरा है वह अभी भी उसी रूप में विद्यमान है।

आर्यन के साथ उसका डाइवोर्स न हुआ था। उन लोगों ने इससे पहले ही आर्यन और ईशा की शादी करवा दी थी। इसलिए कानूनतः वह आज भी आर्यन की पत्नी थी। शायद आरती के अलावा इस बात की परवाह भी और किसी को न थी।

ईशा और आर्यन को एक सरोगेट मदर मिल गया जो मुफ्त में ही उनके बच्चों का गर्भ धारण करने को तैयार हो जाती हैं। डाॅक्टर साहब से बहुत बार गुजारिश करने पर भी वे दोनों उस महान महिला से मिल नहीं पाते क्योंकि लिगल काॅन्ट्रक्ट में ऐसा लिखा था।

सरोगेसी का नियम भी यही है कि सरोगेट मदर और बच्चे की परिवार को कभी मिलने नहीं दिया जाता।

आर्यन आरती को यह खुशखबरी देने उसके घर गया था। पर वह उसे वहाॅ न मिली थी।

आज मेहता भवन में रौशनी ही रौशनी है। चारों तरफ से प्रकाश की लड़ियों से उस घर को सजाया गया था, जिसे कभी वारिस पाने के ललक में गिरवी रख दिया गया था। आज उस घर को वारिस मिल गया था और इस कारण एक बड़ी सी पार्टी का आयोजन वहाॅ हुआ था। चारों तरफ खुशियों का माहौल था। लोगों का कहकहा चहूं दिशाओं में गूंज रहा था।

हाॅल के बीचोंबीच एक बड़े से पलंग पर ईशा अपने बेटे को लेकर बैठी थी। राजमाता सी वैभव और चमक उसकी आंखों में इसवक्त नज़र आ रही थी।

इसी वक्त, कोलाहल से दूर, कहीं एक ब्लैक मारूती रित्ज आकर उस मेहता भवन के सामने रुकती है। गाड़ी चलानेवाली महिला आद्योपांत काले वस्त्रों से ढकी थी। शांत मुद्रा में वह थोड़ी देर तक मेहता भवन के रौनक को देखती रही। फिर अपने पेट के उस स्थान पर हाथ फेरती हैं जहाॅ सिजरियन सेक्शन के ऑपरेशन के निशान थे। और अट्टहास करने लगती है!!!तभी अचानक मेहता भवन की ओर से कोई स्त्री पूजा की थाली लिए बाहर आई और उसके कदम उस मारूति के आगे आकर रुक गए। यह आर्यन की माॅ थी।

पूजा विधि के तहत कुछ फल -फूल पेड़ के पास डालने आई थी।अंधेरे में ऑखों को काफी संकुचित करने और ध्यान लगाकर थोड़ी देर देखने के बाद गाड़ी में बैठी हुई औरत को वे पहचान पाई थी।

वह औरत कोई और नहीं बल्कि आरती थी !

" कुलच्छनी हमें कभी तेरा अहसान न लेना पड़े।"

घर से निकालने से पहले बहू के लिए सास का यह अंतिम वाक्य था।

कुल्छनी भी कभी कुलदीपक पैदा कर सकती है --यह बात उन्होंने कभी सपने में भी न सोची था !


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