कुल की मर्यादा
कुल की मर्यादा
बाहर गेट खुलने की आवाज़ से बरामदे में बैठकर पेपर पढ़ रहे रामदेव ने नज़रें उठाकर देखा , उसी समय उनके लिए चाय बनाकर कप के साथ रसोई से बैठक में कदम रखते हुए बिंदु ने भी सर उठाकर देखा दोनों की नज़रें आश्चर्य से खुली की खुली रह गईं । ....
दो दिन पहले की ही बात है....अभिराम ने पिता से कहा था कि उसके साथ एम.एस.सी पढ़ कर उसी के कॉलेज में काम करने वाली चंदा के साथ वह शादी करना चाहता है ।रामदेव ने कहा बहुत अच्छी बात है ,उन्हें आकर हमसे बात करने के लिए कहो । उस लड़की के पिता क्या कर रहे हैं और उनके परिवार के बारे में बता दो । हमें कोई आपत्ति नहीं है । वे किस कुल के हैं उनका गोत्र किया है वे हमारे दर्जे के हैं कि नहीं बस यह भी तो देखना है न । अभिराम ने डरते हुए बताया कि चंदा के पिता हरिजन हैं और उनकी यह तीसरी संतान है । अब आगे कुछ कहता इसके पहले ही रामदेव ने कहा ,"यह शादी नहीं होगी और वे उठकर वहाँ से चले गए ।" माँ ने अभि को समझाने की कोशिश की कि "हमारे ब्राह्मण कुल में ही बहुत सुंदर लड़कियाँ हैं तेरे लिए तो रिश्तों की लाइन लगी है । कल ही तेरे मामा ने भी एक रिश्ते के बारे में फ़ोन पर बताया है लड़की पढ़ी लिखी बैंक में नौकरी करती है ,अपने माता-पिता की अकेली संतान है । मैं और तुम्हारे पापा कल उस रिश्ते को हाँ कहकर आने वाले थे । तू इस तरह दूसरे कुल की लड़की से विवाह कर हमारा नाक कटाएगा क्या ?लोग क्या कहेंगे?हम उन सबको अपना मुँह कैसे दिखाएँगे ।" कहकर रोने लगी । रामदेव ने पुकारा "बिंदु उससे क्या बातचीत कर रही है ,कल हम जा रहे हैं और रिश्ता पक्का कर रहे हैं ,समझी उसको भी समझा दो ।" यह कल की बात थी ।
अब .....
अभिराम उस लड़की चंदा को ब्याह कर लाया है । जैसे ही अभिराम चंदा का हाथ पकड़कर आगे आया रामदेव ने कहा -"तुझे मैं अपने घर से अलग कर रहा हूँ ,मेरे अब एक ही बेटा और एक ही बेटी है । चला जा मेरी आँखों के सामने से कहकर -अंदर चले गए ।" जाते - जाते बिंदु का हाथ पकड़कर उसे भी अंदर ले गए और दरवाज़ा बंद कर दिया ।
अभिराम वहाँ से चंदा को लेकर चला गया । दोनों नौकरी करते तो थे इसलिए उन्हें कोई दिक़्क़त नहीं हुई । अभिराम और चंदा ने अपना तबादला दूसरे जगह करा लिया । जाने के पहले एकबार माता-पिता से मिलने के लिए गया पर भाई ने जो उससे तीन साल छोटा था दुत्कारते हुए कहा -"जिसे माता-पिता के इज़्ज़त का ख़याल नहीं है ,उसे इस घर में कदम रखने की इजाज़त नहीं है । "मुझे लगा जयराम कितना बड़ा हो गया है । मैंने कहा "मैं यहाँ रहने नहीं आया सिर्फ़ यह बताने आया हूँ कि मैं इस शहर को छोड़कर जा रहा हूँ ।" ....
उसने कहा "ठीक है मैं माँ पिताजी को बता दूँगा । आपके दिए हुए घाव से वे अभी-अभी संभल रहे हैं । उनसे मिलकर उनका दर्द मत बढ़ाइए । बॉय" ...कहकर उसने दरवाज़ा मुँह पर ही बंद कर दिया । मैं अपना -सा मुँह लेकर वापस आ गया । वैसे मुझे माँ को ही एकबार देखना था ।
मैं और चंदा दूसरे शहर में अपने - अपने काम में व्यस्त हो गए । चंदा के घर से कोई ख़बर नहीं ,न ही मेरे घर से कोई ख़बर थी । एक साल बाद हमारे घर एक प्यारा सा बेटा पैदा हुआ। बेटा धीरे-धीरे एक साल का हो गया और चलने लगा ।
रविवार के दिन चंदा और अभिराम घूमने निकले बच्चे का हाथ पकड़कर वे टहल रहे थे ,पीछे से किसी ने पुकारा अभि ..., जानी पहचानी आवाज़ थी ।अभिराम ने पीछे मुड़कर देखा ।उसके चाचा का लड़का था । आते ही वह अभिराम के गले लग गया । दोनों सालों बाद मिल रहे थे ,क्योंकि अभी के पिता ने खुद तो अभी को अपने घर से अलग किया ही था ,साथ ही उनके रिश्तेदारों ने भी अभी को अलग कर दिया था ।इसलिए इन सबसे मिले उसे काफ़ी साल हो गए थे । बातचीत के दौरान उसने बताया कि अभिराम के पिता की तबीयत ख़राब हो गई है ।कभी मिलकर आ जाओ क्योंकि कभी भी कुछ भी हो सकता है । यह सुनकर अभिराम को बुरा लगा कि भाई ने कम से कम ख़बर तो दे दी होती । उसकी इतनी बड़ी गलती तो नहीं थी कि माता-पिता के हाल-चाल के बारे में भी न बता सके । दूसरे ही दिन उसने छुट्टी ली और अकेले ही पिता के घर पहुँचा ,पर उसके पहुँच ने के एक घंटे पहले ही वे इस दुनिया को छोड़कर चले गए थे । भाई ने और बहन भी आई हुई थी पर किसी ने भी हाल-चाल नहीं पूछा और उसे घर के अंदर भी नहीं आने दिया । पूरे कार्यक्रम के बाद अभिराम को खाना भी पिछवाड़े में ही खिलाया । माँ ने देखा और सिर्फ़ आँसू बहाते रही । रात को सोने के लिए अपने दोस्त पंकज के घर गया बातों -बातों में उसने कहा मुझे एक बात तुझे बतानी है ,मैंने आँख उठाकर उसकी तरफ़ देखा । तुम्हारे पिताजी ने एक हरिजन लड़की से तूने शादी की तो तुझे घर और अपनी जायदाद से भी बेदख़ल कर दिया था परंतु उनका उसी हरिजन बस्ती की एक औरत के साथ नाजायज रिश्ता है । उस औरत के दो बच्चे भी हैं । पूरे गाँव को यह बात मालूम थी पर उनकी कड़वी ज़बान से लोग डरते थे । तुम्हारे साथ जो ना इंसाफ़ी हुई है ,उसे देख सहन न कर सकने के कारण मैंने यह बात तुम्हें बताई है।तुम्हारी माँ और भाई सबको यह बात मालूम है ,लेकिन किसी ने भी तुम्हारी तरफ़दारी नहीं की है ।इसी बात का मुझे बुरा लगा और मैंने तुम्हें सब बता दिया । अभिराम ने कहा -कल मुझे उनके घर ले चल । पंकज ने कहा ठीक है । दूसरे दिन सुबह उठकर अभिराम तैयार हो गया, पंकज ने घर का पता दे दिया ।अभी वहाँ पहुँचा वे उदास बैठी थी अभि को देख उठकर खड़ी हो गई और कहा "मेरा नाम कामिनी है ।आपके पिता ने मुझसे शादी नहीं की पर वे मेरे पति जैसे ही हैं ।उन्हें समाज का डर था । इसीलिए तुम्हारी माँ को ब्याह कर लाए और मुझसे बिना शादी के ही संबंध रखते थे । उन्होंने पूरी तरह से मेरा ख़याल रखा मेरे बच्चों की पढ़ाई और ज़िम्मेदारियों को भी अच्छे से निभाया । कभी भी किसी भी बात की कमी नहीं होने दी । तुम्हारे साथ ही उन्होंने अन्याय किया है । मैं भी तुम्हारी माँ के समान उनसे डरती थी । ज़बान के कटु थे पर दिल के बहुत अच्छे थे । इतने सालों में कभी भी मैं उन्हें बिना देखे नहीं रही ।आगे मालूम नहीं मेरी ज़िंदगी कैसे कटेगी । अभिराम ने कहा -चाहे तो आप उनसे जायदाद में हिस्सा माँग सकती हैं । कामिनी ने कहा -नहीं बेटा ,मेरे दोनों बच्चे अच्छी नौकरियाँ कर रहे हैं ।बड़ा बेटे रेलवे में है ।दूसरा बैंक में ,उन्होंने ने मुझे वहाँ आने के लिए कहा है ,दस दिन होते ही चली जाऊँगी । "
अभिराम वहाँ से घर आया ।भाई अपना रौद्र रूप लिए खड़ा था "तुम कामिनी को भड़काने के लिए उसके घर गए थे ।" अभि ने कहा -"देख जय उनके बच्चों के पास वे जा रही हैं ।तुम्हें उनसे डरने की ज़रूरत नहीं है ।तुमसे जायदाद में से हिस्सा माँगने कोई नहीं आएगा ।"कहते हुए पलट कर गेट की तरफ़ बढ़ा ,पीछे से भाई की बेटी गौरी ने आवाज़ दी -"बडे पिताजी यह चिट्ठी आपको दादी ने देने के लिए कहा" और चिट्ठी हाथ में रख कर भाग गई । अभिराम घर आकर चिट्ठी खोलकर पढ़ता है । माँ ने लिखा। है .........
अभि ढेर सारा प्यार ,
मेरी जब शादी हुई थी तब ही मुझे तुम्हारे पिता के नाजायज संबंध के बारे में मालूम था ,पर मैंने सब सहते हुए ही इतने साल गुजार दिए हैं । तुम्हारे साथ जो अन्याय हो रहा था ,उसे भी मैंने दिल पर पत्थर रख कर सह लिया । मेरे माता-पिता बहुत ही गरीब थे । इसलिए मुझे सब कुछ चुपचाप सहना पड़ा । अभि तुम्हारे भाई-बहन भी स्वार्थी हैं ।जब तुम्हारे पिता बीमार थे दोनों ने तुम्हारे ख़िलाफ़ उनके कान भरकर सारी जायदाद अपने नाम करा लिया है । मेरे पास मेरे गहने हैं ,अभि मैं तुम्हें वे देना चाहती हूँ । मेरे बाद जब भी तुम यहाँ आओगे यह चिट्ठी उन्हें दिखाना । बहुत सारा प्यार अभि दुनिया में लोग ऐसे ही होते हैं बेटा,अपने लिए एक नियम दूसरों के लिए एक नियम । मैं बहुत शर्मिंदगी महसूस करती हूँ कि माँ होकर भी मैंने तुम्हारे लिए कुछ नहीं किया । तुम्हारे परिवार के लिए मेरी ढेर सारी शुभकामनाएँ मेरे पोते को इस दादी की तरफ़ से बहुत प्यार,बहू को और तुझको मेरा प्यार और आशीर्वाद । मुझे माफ़ कर देना बेटा .......
तुम्हारे लिए कुछ न कर सकने वाली माँ
अभि ने पत्र पढ़ा और चंदा को माँ की चिट्ठी पढ़ने को देता है और उनकी मजबूरी बताते हुए रोता है ।
दूसरे ही दिन माँ के गुजरने की ख़बर मिलती है । पिछली बार के समान ही इस बार भी उसे घर के बाहर ही बिठाया जाता है । दस दिन बाद अभिराम वापस आ जाता है ,फिर कभी उस तरफ़ उसने जाने की सोची भी नहीं । साल महीने गुजर गए अभि का बेटा आई . आई . टी में इंजीनियरिंग करके एम.एस करने अमेरिका चला जाता है । एकदिन जयराम का फ़ोन आता है ,भाई आप और भाभी जल्दी से घर आ जाइए काम है । अभिराम के समझ में कुछ नहीं आया ।चंदा को भाभी बुला रहा था ।आश्चर्य की बात थी । चंदा के कहने -पर दोनों गाँव पहुँच गए और हमेशा की तरह अभि चंदा के साथ बाहर ही खड़ा था ,तभी भाई आकर कहता है "अरे !!आप लोग बाहर ही खड़े रह गए अंदर आइए ।" अंदर जयराम की बेटी किसी लड़के साथ बैठी थी ।जयराम ने कहा -"शुचि ये तुम्हारे बड़े पिताजी और बड़ी माँ हैं , अभि यह मेरी बेटी और मेरे होने वाले दामाद डेविड हैं ।"अब अभि के समझ में आया कि जयराम ने उसे क्यों बुलाया है। सालों पहले जो ग़लती उसने की थी वही ग़लती उसकी बेटी कर रही थी और वह अपनी बेटी को खोना नहीं चाहता पर लोग तो कहेंगे कि भाई को तो भगा दिया घर से और बेटी को घर पर रखा तो लोगों का मुँह बंद करने के लिए उसने मुझको बुलाया था ।
बहन रोशनी भी आ गई "भाई भाभी कैसे हैं" कहते हुए । उसी समय जयराम ने कहा -"अभि हमारी छोटी बहन है उसकी मदद हम ही कर सकते हैं न ।" अभि ने कहा "आगे क्या है ?कह दे !!जय आख़िर बात क्या है ?"
" कुछ नहीं अभि रोशनी की ननंद की बेटी है ,सुंदर पढ़ी लिखी ,तुम अपने बेटे के लिए इस रिश्ते को हाँ कह सकते हो न क्योंकि रोशनी की ननंद उसपर ज़ोर दे रही है कि किसी तरह यह रिश्ता करा दो कहते हुए ,अब अपनी बहन के लिए इतना तो कर सकते हो न । तुम दोनों सोच लो और चलो खाना खाने चलते हैं ,डायनिंग टेबल पर खाना परोस दिया गया ।" अभि अपनी पत्नी चंदा के साथ पिछवाड़े में अपनी जगह पर बैठ गया ।जयराम ने कहा "क्या है ?अभि ऐसे क्यों कर रहे हो ,अंदर सबके साथ बैठो न हमें।शर्मिंदा क्यों कर रहे हो ।'
अभिराम ने कहा देख जय —"पिछले पंद्रह सालों से मैं जब भी आता था ,वहीं बैठकर खाता था तब तुम्हें कोई शर्मिंदगी महसूस नहीं हुई ।आज मेरा बेटा पढ लिखकर अमेरिका गया तो तुम्हें शर्मिंदगी महसूस हो रही है और तेरी बेटी किसी और कुल के लडके से विवाह कर रही है तो मुझे अपने में मिलाकर अपने आप को ऊँचा दिखाना चाहता है । बस कर कितना नीचे गिरेगा ,मुझे यहीं अच्छा लगता है और मैं यहीं बैठूँगा और सॉरी मैं अपने बच्चे पर अपने विचार नहीं थोपूँगा ।उसे जिस किसी भी लड़की को अपना जीवन साथी चुनना है उसे पूरी स्वतंत्रता है । अब हम चलते है" कहते हुए चंदा का हाथ पकड़ कर गेट से बाहर निकल जाता है और पीछे मुड़कर भी नहीं देखता है । सच ही है स्वार्थ मनुष्य को कितने भी नीचे गिरा सकता है । वर्तमान समय में भी कुलों की बात करते हैं । हम तो इंसान के नाम पर धब्बा हैं । सबको समान समझ कर सबको साथ लेकर आगे बढ़ने की कोशिश करें ।