कुछ यादें कुछ बातें
कुछ यादें कुछ बातें
बचपन में मां के हाथों का भोजन, जवानी में पत्नि द्वारा बनाया भोजन और वृद्धावस्था में बहुओं के द्वारा, तैयार किया भोजन, यह काल चक्र सभी के जीवन में आता है।
मां ने कहा "कहो तुम, आज क्या खाना चाहते हो। "
"मां आज कुम्हड़े की सब्जी बनाओ ना। मुझे बहुत पसंद है। "
"ठीक है बेटा, वही बनाती हूँ। तेरे पिता को भी, यही पसंद है। "
मां उस समय, देशी चुल्हे में ही खाना बनाती थी(लकड़ी जलाकर)। उस समय गैस सिलेंडर का, चलन नहीं था।
मां सब्जी तैयार कर रही थी। ठंड का समय था। मैंने चूल्हे में लकडियां ज्यादा डाल दी थी। इससे बहुत तेज आग प्रज्ज्वलित हुई। मां ने अपने हाथों से ही, सब्जी की हांडी पकड़कर नीचे हड़बड़ी में रख दी थी और उनका हाथ जल गया था।
मुझे बहुत ग्लानि हो रही थी। मैं रोने लगा। मां को मेरे रोने से बहुत दुख हुआ। कहा"बेटा मत रो, हम औरतों के जीवन में, कष्ट आते ही रहते हैं, सहना पड़ता है। "
मुझे आज भी याद है। मेरे कारण मां का हाथ जल गया था।
मेरी पत्नी पाक कला में बहुत ही निपुण रही है। भोजन लज़ीज बनाती रही है। परिवार के लोग स्वाद ले-लेकर खाते रहे हैं। पत्नि ने कहा "आज भोजन तैयार करने में, मैं नया प्रयोग करने वाली हूँ। "सभी को भरोसा था कि आज विशेष खाने को मिलेगा।
मैंने उनसे पूछा "क्या खास है। आज भोजन में, यह, तो बताओ। "पत्नि ने कहा "भोजन करते समय , खुद ही पता चल जायेगा। "
हम सभी भोजन करने बैठे। पत्नि ने चांवल में, सब्जी, हल्का मसाला मिक्स करके पुलाव तैयार किया था। पिता ने कहा"बहू, यह तो खास बन गया है। मैं तो रोटी नहीं खाऊंगा। "उस समय पिताजी की यह टिप्पणी, पत्नि के लिए विशेष मायने रखती थी । सुनकर मेरी पत्नी प्रसन्न हो गई और मैं उनकी हॅसी में, खुद को ढूंढने लगा।
हमारी बहुयें भी अच्छा भोजन बनाती है। एक बार उन्होंने भोजन पकाया। सब्जी बिगड़ गयी। हमारा बड़ा लड़का, क्रोध में आकर जोर से बोला "तुम दोनों में से किसने सब्जी बनायी है?"दोनों बहुयें भय के कारण, एक'-दूसरे का नाम ले रही थी।
मेरी पत्नी ने सामने आकर कहा"क्यों, मैंने बनाया है। सब्जी अच्छी नहीं बनी क्या?"बेटे ने अपनी माँ की बात सुनकर कहा"नहीं मां, बहुत अच्छी बनी है। "सभी ने प्रेम से भोजन किया, जैसे भी बन पड़ा। परंतु दोनों बहुयें अपनी सास को कृतज्ञतावश देख रही थी, किस तरह उन्होंने स्थिति को कुशलतापूर्वक संभाल लिया था।
मेरी पत्नी ने बेटों से कहा"बेटा, अच्छे भोजन की सभी तारीफ करते हैं। औरतों से भी कभी गलती हो जाती है। क्रोध ना कर, उन्हें समझाना चाहिए। आखिर रोज स्वाद का, भोजन वे ही तो बनाती हैं। "
उनकी बातें सुनकर मैं मंद मंद मुस्कुरा दिया। मेरी पत्नी ने सहज रूप से ही, औरतों का, उनके बनाये भोजन का वास्तविक चित्रण किया था।
