कुछ ना बदला
कुछ ना बदला
दो चचेरे भाई, दोस्त ज्यादा चचेरे भाई कम। नाम भी एक जैसे, बंसी और मुरली। बंसी उम्र में एक दिन बड़ा। बंसी पुश्तैनी व्यापार में पिता के ही साथ व्यापारी हो गया। मुरली पुश्तैनी व्यापार छोड़ शहर का नामी सर्जन डाक्टर बन गया। दोनों में छनती भी बहुत और विचार विमर्श में विरोध भी बहुत।
अब सीनियर सिटीज़न हो गए, ६५ के पार। बंसी को हाइड्रोसील की शिकायत हुई। मुरली ने ऑपरेशन शुरू किया। लोकल एनेसथीसिया दिया गया।
मुरली ने बताया के एक जगह खून की क्लौटिंग है यानि कि एक जगह खून जम गया है, जिसे भी हटाना पड़ेगा। बंसी ने मुरली को याद दिलाया कि बचपन में क्रिकेट खेलते हुए जब वह बल्लेबाज़ी कर रह था, तब दूसरे छोर से तुम ही ने गेंदबाजी करते हुए, यहाँ बॅाल मारी थी।
अब तुम ही ठीक करो, हिसाब किताब तो इसी जन्म में चुकता करना पड़ेगा। ६५ साल में कुछ ना बदला था। काश दुनिया ऐसे ही चलती रहे, सब ऐसे ही हो जायें, हर कोइ खुश
