कुछ गुमनाम चेहरे
कुछ गुमनाम चेहरे
हर साल 14 नवम्बर को सरकार वीरता पुरस्कार विजेताओं की घोषणा करती है।यह पुरस्कार 16 वर्ष से कम आयु के बच्चों को विषम परिस्थितियों में उनके दिखाए अदम्य साहस के लिए प्रदान किया जाता है।
इन पुरस्कारों को देने की शुरुआत कैसे और कब हुई आइए जानते हैं।
भारत में बहुत ही कम लोग चांदनी चौक निवासी हरीशचंद्र मेहरा को जानते होंगे,जिनके साहस ने न केवल भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु के प्राणों की रक्षा की बल्कि सरकार को वीरता पुरस्कार आरंभ करने के लिए प्रेरित किया।
बात 1957 की है नेहरू रामलीला मंचन देख रहे थे।14 वर्षीय हरीश उस समय स्काउट वीआईपी एनक्लोजर में गार्ड की ड्यूटी पर थे। अचानक टेंट में आग लग गई।किसी का ध्यान उधर नहीं गया, हरीश ने देखा टेंट ने आग पकड़ ली थी ।वह 14 वर्षीय बालक घबराया नहीं, अपनी जान की परवाह न करते हुए टेंट में घुसा और नेहरू का हाथ पकड़कर उन्हें खींचते हुए बाहर ले आया ।उसके बाद वह दोबारा उस जलते हुए टेंट में घुसा और 20 फुट ऊंचे पोल पर चढ़कर अपने स्काउट छुरे से उस रस्सी को काट दिया जिसमें वह कपड़ा बंधा था।
एक भयानक अग्निकांड होने से बच गया।हरीश के हाथ बुरी तरह जल गए थे।
<p>(हरीश प्रधानमत्री से पुरुस्कृत होते हुए तब और आज सैल्यूट सर)
हरीश की बहादुरी और त्वरित निर्णय बुद्धि को देखकर नेहरू अत्यंत प्रभावित हुए। उन्होंने उस बालक को राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कृत करने का निर्णय लिया।उन्होंने अपनी बेटी, इंदिरा को हरीश के स्कूल भेजा, जिससे वे हरीश की बहादुरी शेष बच्चों को बता सकें।
3 फरवरी 1958 तीन मूर्ति भवन में प्रधानमंत्री नेहरू ने स्वयं अपने हाथों हरीश को पहला वीरता पुरस्कार प्रदान किया। उस वर्ष 2 बच्चे पुरुस्कृत हुए ,जिनमे पहले थे हरिश्चंद्र मेहरा ।उसके बाद यह पुरस्कार वार्षिक रुप से संस्थापित हो गया।
दिलचस्प बात यह है कि हरीश पहले असैनिक थे जिन्होंने उस वर्ष गणतंत्र दिवस परेड की अगुवाई की।
दुर्भाग्य से इस घटना के 5 वर्ष बाद हरीश को अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़ देनी पड़ी। उन्हें परिवार की देखभाल के लिए चांदनी चौक में काम करना पड़ा। आज भी वे चांदनी चौक में रहते हैं।वे 75 वर्ष के हैं। लगभग गुमनाम जिंदगी जी रहे हैं। देश का पहला वीरता पुरस्कार पाने वाले हरीशचंद्र मेहरा को चांदनी चौक के आसपास के लोग," नेहरू की जान बचाने वाला बच्चा" के नाम से जानते हैं।