कशमकश

कशमकश

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शामली जी बहुत ही सुलझी हुई और समझदार बहू, पत्नी, और माँ और अब सास बनने जा रही थी। उनके बेटे अक्षत में अपनी दोस्त जिया को उनसे मिलवाते हुए बता दिया था कि वो दोनों एक दूसरे से शादी करना चाहते हैं।

शामली जी को भी जिया पसंद आ गयी और फिर बेटे की पसंद के आगे वो क्या बोलती, बस उनके जो अपने अरमान थे अपनी पसंद की बहू लाने के वो कहीं दिल में ही दबे रह गए थे। राजेश जी ने उन्हें समझते हुए कहा था "ज़िन्दगी तो बेटे-बहू को ही साथ में बितानी है, तो अच्छा है अपनी पसंद से शादी करेंगे। कल को हमें कुछ नहीं कह पायेंगे।" शामली जी ने सोच लिया था, जो सब उन्होंने इतने साल सहन किया है। वो सब उनकी बहू के साथ नहीं होगा। शामली जी चाय का कप खिड़की के पास लेकर बैठ गयी और अतीत की यादों में खो गयी।

शादी तो उनकी और राजेश जी की भी एक दूसरे की पसंद से हुई थी। दोनों एक ही मौहले में रहते थे। दोनों ने जब अपने-अपने घर में बताया था, तो बहुत बवाल मचा था, जब जा कर शादी के लिए हाँ हुई थी। शामली जी बहुत अमीर घर की थी पर देखने में बहुत ही साधारण जबकि राजेश जी मध्यम वर्गिये परिवार के थे पर किसी राजकुमार से कम नहीं लगते थे। जिस वजह से हर बात पर शामली जी को ताने सुनने पड़ते थे की पता नहीं मेरे बेटे को इसके अंदर क्या दिख गया था जो इसे ब्याह कर ले आया। बेचारी ज़रा सा किसी बात में बोलती तो यह सुनने को मिलता "पैसे वाले घर की है, तू क्या जाने कैसे घर चलाना होता है।" धीरे-धीरे उन्होंने चुप रहना शुरू कर दिया की किसी को उनका बोलना पसंद नहीं है तो कोई यह कहे बिना नहीं रहता न शक्ल न सूरत पता नहीं किस बात की अकड़ है।

बेचारी अंदर ही अंदर घुटने लगी पर राजेश जी उनका दुःख समझते थे, इसलिए एक दिन बहुत हिम्मत कर ले घर वालों से अलग होने का फैसला कर लिया था। गुस्से में घर वालों ने उन्हें बिना कुछ दिए घर से निकाल दिया। राजेश जी बहुत खुद्दार थे, उन्होंने अपनी ससुराल वालों से भी एक पैसे की मदद नहीं ली। एक छोटे से काम से शुरुआत की और देखते ही देखते अपना बिज़नेस बहुत अच्छा जमा लिया। शामली जी ने हर मुश्किल में उनका पूरा साथ आज उनके बेटे अक्षत ने उनके सामने वाणी को लेकर खड़ा कर दिया था। जो रूप रंग में किसी अप्सरा से कम नहीं थी। वाणी बहुत ही गरीब परिवार की थी, शामली जी को उसकी गरीबी से कोई फर्क नहीं पड़ा पर उनका बेटा अक्षत बिल्कुल उनके ऊपर गया था देखने में बहुत ही साधारण इसलिए शामली जी को डर था की कहीं उनके बेटे को भी सब हर समय वाणी से ही न मिलाते रहें।

खैर बेटे के सामने वो कुछ नहीं बोली। वाणी जब शादी हो कर उनके घर आई शामली जी ने उसे बिल्कुल अपनी बेटी ही समझा। शादी के कुछ समय बाद एक दिन शामली जी ने अपने कुछ रिश्तेदारों को खाने पर बुला रखा था। सब आपस में कानाफूसी करने लगे की कितने गरीब घर की लड़की है। अपने खानदान की नाक ही कटवा दी। ऐसा क्या, बस सुन्दरता पर लट्टू हो जाओ। थोड़ा तो अपने से मिलता-जुलता घर देखना चाहिए था। शामली जी बहुत देर तक यह सब सुनती रही फिर उनकी सहन करने की शक्ति खत्म हो गयी। शामली जी ने सबके मुंह पर यह कह कर ताला लगा दिया की "लड़की अच्छी है, सुन्दर है, मिलनसार है और क्या चाहिये। इसके माता-पिता ने इसे इतने अच्छे संस्कार दिए हैं, कि इतनी देर से आप सब इसे के मुंह पर इसके और इसके परिवार वालों के बारे में पता नहीं क्या-क्या बोल रहे हो फिर भी इसने किसी को पलट कर जवाब नहीं दिया। इसके संस्कार ही आज के समय में सबसे बड़ी दौलत है।

सब आपस मैं बड़बड़ाते हुए बाहर चले गये। लड़की तो इनकी दौलत पर लट्टू हो गयी होगी नहीं तो बिल्कुल बेमेल जोड़ी है। अभी चार दिन में इनकी अकल ठिकाने लगा देगी, सब कुछ हड़प कर चलती बनेगी। शामली जी बहुत आराम से प्यार से वाणी को अपने तौर- तरीके सिखाती रहती थी। कभी भी उसकी गरीबी का मज़ाक नहीं बनाती। शामली जी के मन में सब की बातें सुन-सुन कर कहीं न कहीं यह डर बैठ गया कि उनकी बहू उन्हें धोखा न दे दे, जैसा की आजकल बहुत से घरों में हो रहा है। एक दिन वाणी ने शामली जी से कहा कि "उसकी कुछ सहेलियां उनके घर आना चाहती हैं।" शामली जी ने कहा "बुला ले उन्हें, इसमें मुझसे क्या पूछना था। तू बस यह बता दे खाने में क्या-क्या बनाना है, मैं सब तैयारी जिस दिन वाणी कि सहेलियां आई शामली जी ने उसे सुबह ही कह दिया था की "मैं सब नाश्ता-खाना तुम्हारे कमरे में ही भिजवा दूँगी, तू आराम से बैठ कर उनसे बातें करियो।"

शामली जी ने जैसा कहा वैसा ही किया, फिर उनके मन में आया की चलो एक बार मैं भी कुछ देर वाणी की सहेलियों के पास बैठ आऊं। कहीं सब को यह न लगे कि इस की सास में कितनी अकड़ है, एक बार मिलने भी नहीं आयी। शामली जी के कदम वाणी के कमरे के दरवाज़े पर ही रुक गये, अंदर से वाणी की सहेलियों की आवाज़ें आ रही थी। वो वाणी को उनसे अलग होने ले लिए उकसा रही थी। एक ने कहा "इतने दिन तो तूने गरीबी देखी है, अब जब इतने अमीर घर की बहू बनी है, तो अपने सास-ससुर की नौकरी छोड़ सारी जायदाद अपने नाम करवा ले और चैन से अपने पति के साथ रह।"

दूसरी बोली "तुझे गरीब घर की समझ के बिल्कुल नौकरानी बना देंगे ये लोग।"

तीसरी ने कहा "मैंने माना प्यार अँधा होता है, इसलिए तूने न अक्षत की शक्ल देखी न सूरत बस फट से उससे शादी कर ली। अब कम से कम अपने भविष्य का तो सोच। अगर अक्षत अपने मम्मी- पापा से अलग होने से मना कर दे, तो तू उससे मोटी रकम वसूल और तलाक ले ले।"

तभी अचानक वाणी चिल्ला पड़ी "बस करो तुम लोग, ये क्या बोलती जा रही हो। तुम सब अपने-अपने घरों में रोज़ किसी न किसी बात पर बवाल खड़ा करती हो और मुझे भी यही करने को कह रही हो। मेरी सास हर कदम पर मेरा साथ दे रही हैं, तो उनसे अलग होने का कैसे सोचू और अक्षत को मैं खुद से भी ज़्यादा प्यार करती हूँ, तो उनसे अलग होने का तो मैं सोच ही नहीं सकती। तुम सब मेरी इतनी अच्छी सहेलियां हो कर, क्यूँ मेरा घर तुड़वाना चाहती हो। घर बसाना और बिगाड़ना जितना सास के हाथ में है, उतना ही बहू के हाथ में भी है।"

वाणी की सहेलियां वहां से यह कहते हुए उठ गयी कि "हम यहाँ अपना अपमान करवाने नहीं आये थे। आज तू बड़े घर की बहू बन गयी, तो हमें ही भाषण दे रही है।" वो सब वहां से गुस्से में चली गयी। वाणी उन सब के जाने के बाद बहुत उदास हो गयी। तभी शामली जी उसके पास आयी और बोली वाणी "मैंने तुम  सब की सारी बातें सुन ली हैं। हर एक के घर की परिस्तिथियाँ अलग होती हैं। क्या पता उनके घर में उनके साथ क्या हो रहा है। तू परेशान मत हो दोस्त ज़्यादा दिन एक दूसरे से गुस्सा हो कर नहीं रह सकते। कुछ दिनों में तुम सब के बीच सब पहले जैसा हो जायेगा। वाणी शामली जी की गोदी में ऐसे लेट कर रोने लगी जैसे छोटा सा बच्चा अपनी माँ की गोद में रोता है।


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