क्या यही प्यार है ?

क्या यही प्यार है ?

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मेरे पिता मेरे लिए बरसों पहले मर गए थे। सुनने में अजीब लग रहा होगा मगर सच यही है। पिता का प्यार, पिता का संरक्षण क्या होता है, कभी महसूस नहीं कर सका। अच्छी नौकरी, अच्छी तनख्वाह होते हुए भी उन्होंने घर में कभी खुशी का माहौल नहीं बनने दिया। सिवाय दहशत और दुख के हमने और कुछ नहीं भोगा, कुछ नहीं देखा।मां का उनके प्रति असीम प्रेम मेरी समझ में कभी नहीं आया।वे सामंजस्य बिठाने की भरपूर कोशिश करतीं, मगर वे एक दर्जे के पियक्कड़ थे, जिनका शाम होते ही एक दूसरा रूप होता। वे एक सरकारी नौकरी में थे। मुझे आज भी याद है, उनके आने का समय होता, मेन गेट खुलने की आहट से हम कांपने लगते।हम अपने कमरे में बंद हो जाते।अन्य बच्चे पिता के आने से उछलने लगते हैं, खुश होने लगते हैं वह खुशी हमें कभी मयस्सर नहीं हुई।हां, जब किसी काम से वे एक आध बार शहर से बाहर जाते, वह हमारा बेहतरीन वक्त होता।

मेरी मां घर पर ही कोचिंग क्लास चलातीं थीं। वह सुबह 8 बजे से 8:30 बजे रात तक ट्यूशन पढ़ाती थीं। उनकी कमाई से ही घर चलता था। पिता कोई मदद नहीं करते थे।उनकी कमाई शराब पर खर्च होती थी।वे शाम 6:00 बजे के करीब घर आते थे।मां मुस्कुरा कर उनका स्वागत करतीं, चाय पहले से ही चढ़ा कर रखतीं।मैंने मां के चेहरे पर पिता की उपस्तिथि में कभी एक भी शिकन नहीं देखी।वे चाय पीते, कपड़े बदलकर फिर घर से बाहर चले जाते और रात 11:30 बजे से पहले नहीं आते थे, जब लौटते, नशे में धुत होते।

 फिर एक रात उनकी तबीयत बिगड़ी तो हम उन्हें अस्पताल ले गए। डॉक्टर ने बताया कि उनका लीवर खराब हो गया है।महीनों इलाज चला।मां ने तन, मन, धन सब लगाने में कोई कोताही नहीं की, मगर उन्हें बचा नहीं सकीं, उनकी मौत हो गई। चूंकि वे सरकारी नौकर थे, मां को उनकी जगह नौकरी मिल गई, मगर मात्र ₹2100 महीने पर।

मां ने आज तक परिवार से, समाज से, गरीबी से और स्वास्थ्य से लड़ाई लड़ी हैं, अत्यंत संघर्षपूर्ण जीवन बिताया लेकिन हार नहीं मानी। हमारे जीवन की गाड़ी कठिनाइयों भरे कंकरीले - पथरीले रास्ते से मंजिल की ओर मंत्र मगर दृढ़ गति से आगे बढ़ती गई।परिस्थितियां प्रतिकूल थीं, किंतु यह मान का ही विश्वास और प्रयास थकी आज मैं इंजीनियर हूं। मैं अक्सर सोचता हूं, अगर मां और पिताजी का वो रिश्ता था, क्या वह प्यार था ?


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