क्या सोच कभी बदलेगी
क्या सोच कभी बदलेगी
"कितनी देर कर दी तूने आज शालु ..पता था न तुझे, मुझे बाहर जाना है!" मैं बोलती ही चली जा रही थी, जैसे ही मैंने शालु की तरफ देखा तो, वो तो काँप रही थी और रो रही थी मैंने उसे बैठाया, शालु हमारी कामवाली जो बहुत सालों से हमारे घर काम कर रही है। उसे इस हालत मे देखकर अजीब सा महसूस हुआ और साथ में किसी अनहोनी का डर भी सता रहा था। मैंने उसे चाय दी और वहीं बैठ गई ।
"क्या हुआ शालु तु इतना डरी हुई क्यों है?" मेरे इस सवाल पर वो और भी रोने लगी मैं करूँ तो क्या ! "अरे बता न क्या हुआ?" "भाभी क्या बोलूं रोज की तरह आज भी काम पर आई! वो मिता दीदी अपने मायका गई है! बोलकर गई थी ! साहब के जाने से पहले सफाई कर के जाना! रोज तो जाती थी साहब ने कुछ नहीं कहा पर आज ..."इतना कहकर वो रोने लगी।
"आज... क्या... बता तो ?" मेरी साँस जैसे रुक सी गई थी। "वो मैं बेडरूम साफ करने को गई तो साहब भी आ गए मैंने सोचा कुछ लेने को आऐ होगें पर नहीं मेरा हाथ पकड़ के बिस्तर पर बैठाने लगे, मैंने वहां से निकलने की कोशिश की तो जोर से पकड़ कर ज़बरदस्ती करने की कोशिश करने लगें, मैंने जब अपने आप को छुड़ाने की कोशिश की तो बोलते हैं नखरे मत दिखा खूब जानता हूँ ..तुम जैसे को पैसे दे दूँगा.. आ जा किसी को पता नहीं चलने दूँगा।" इतना बोलकर वो और जोर से रोने लगी। मैं तो अवाक सी बैठी रह गई।
"भाभी किसी तरह भागी हूं मैं...अब मैं नहीं जाऊंगी! लेकिन मुझ पर यकीन कौन करेगा भाभी! किसी को बोलना नहीं भाभी, मैं भी भूल जाऊँगी, बड़े लोगों पर उंगली कोई नहीं उठाएगा भाभी ! सब मुझे ही बोलेंगे, पर सच्ची बोलती हूं "गरीब हूं पर बदचलन नहीं हूं भाभी" दो पैसे में गुजारा कर लूंंगी, पर कोई इज़्ज़त से खेले मंजूर नहीं।" इतना बोलकर वो आँसू पोछ कर काम पर लग गई, पर मैं सोचने पर मजबूर हो गई, क्यों ग़रीब को मुँह बंद रखना पड़ता है। "क्यों बड़े लोगों के आगे गरीबी को दम तोड़ना पड़ता है।" "मर्द बाहर काम करे तो शक नहीं हम पेट भरने को काम कर रहे भाभी तो सोच इनकी ऐसी। पति को मालूम होगा तो काम नहीं करने देगा वो। देर होती है तो सौ सवाल जवाब होते हैं रोज। हम औरतें कल भी मजबूर थे आज भी। मर्द की सोच गलत फिर भी कटघरे में हमें ही खड़ा किया जाता है।
जब सिता जैसी देवी को इन लोगों ने न छोड़ा तो हम क्या है इनके आगे। अग्निपरीक्षा तो हमेशा हमें ही देनी होगी, हर हाल में पति को नहीं बताना बिबी जी नहीं तो मुझपर ही उंगली उठाकर नाटक शुरू मैं भला अपने आप को साबित कैसे कर पाउंगी।"
इतना कहकर वो काम में लग गयी पर मैं यही सोचती रही सचमुच हर अग्निपरीक्षा से औरतों को ही क्यों गुजरना पड़ता है। सवालों की उंगली औरतों पर ही कर्मों उठाई जाती है करता ये सोच बदल पाएगी कभी ....? शायद नहीं।
