कृपण कथा
कृपण कथा
पंडित जी की कंजूसी एवम् मुफ्तखोरी की शोहरत हो चुकी थी। पूरी कॉलोनी भुक्तभोगी थी। एक दिन कॉलोनी निवासियों में से दो , वर्मा जी और रावत जी रविवार सुबह 9 बजे पंडित जी के घर
पधार कर पंडित जी से बोले क़ि पंडिताइन माता जी हलवा बहुत बढ़िया बनाती हैं। आज बनवा कर खाइए। थोडा हमको भी खिलवाईए। पंडिताइन बोली क़ि पंडित जी आवश्यक सामिग्री ला दें तब बना देंगी।
पंडित जो झोला लेकर सामान लाने निकल गए और बड़ी जल्दी सूजी , चीनी एवम् देसी घी लेकर आ गए। वार्तालाप में समय बीता। स्वादिष्ट हलवा तैयार हुआ।वर्मा जी एवम् रावत जी ने भरपूर खाया।
( अब जिगर थाम कर सुनिए ) हलवा खाने के पश्चात् जब वर्मा जी एवम् रावत जी अपने अपने घर पहुंचे तब उन्हें पहाड़ी पुदीना याद आ गया।
वर्मा जी के घर से पंडित जी सूजी और चीनी ले गए थे और देसी घी रावत जी के घर से ले गए थे। यह कहकर क़ि कॉलोनी के बाहर वाली परचून की दुकान बन्द है और वर्मा - रावत जोड़ी हलवा खानेके उद्देश्य से उनके घर पर बैठे हैं।
तो मित्रों , जो ये सोचते हैं क़ि पंडित जी या उनकी पण्डिताइन को कोई चूना लगा देगा तब भूल जाए। बहुत पक्की गोलियां खेले हुए हैं। हम तो उनको झेले हुए हैं।
