होशियार कारीगर
होशियार कारीगर
सिंघालगढ़ राज्य के राजा त्रिवेंद्र विक्रम का राज्य बहुत उन्नत था प्रत्येक कारीगर अपने कार्य को कुशलतापूर्वक करता था और राज्य के नागरिक आत्मनिर्भर थे।
बसंतपंचमी के दिन विशाल उत्सव का आयोजन किया गया जिसमें एक प्रदर्शनी का आयोजन हुआ जिसमें सभी कारीगरों ने अपने बेहतरीन नमूने प्रदर्शित किये ,आगन्तुको द्वारा प्रदर्शनी में कालीन बहुत पसंद किए गए तब कालीन बनाने वाले करीगरों के मन मे विचार आया क्यो न कालीन को दूसरे देश मे जाकर व्यापार किया जाए ,उन्होंने राजा से अपनी इस बात से अवगत कराया राजा ने सहर्ष स्वीकार किया ,कारीगर दूसरे देश मे व्यापार करने गए और बहुत सा धन कमाकर वापस हो रहे थे कि रास्ते मे कुछ डाकुओं ने उन्हें बंदी बना लिया ,बहुत दिनों तक कारीगर सिंघलगढ़ नही पहुचे तो राजा को चिंता हुई उसने उनकी तलाश में सैनिक भेजे परन्तु कोई सूचना नही मिली ।
कुछ महीनों बाद एक व्यक्ति कालीन बेचने सिंघलगढ़ आया उसने राजा को सुंदर नमूने दिखाए लेकिन राजा उदास था उसे कुछ अच्छा नही लग रहा था ,वह व्यक्ति अपने कालीन ले कर जाने लगा तभी मंत्री ने उसे रोक लिया और राजा के कान में कुछ कहा ,बात सुनकर राजा ने फिर से कालीन देखे और दो कालीन मुँह माँगी कीमत पर खरीद लिये ।
कालीन में नक्शा बना था जल्दी ही मंत्रिमंडल ने नक्शे के रास्तों को समझ लिया और उन रास्तो पर एक सैनिक टुकड़ी भेजी तब पाया गया कि ये कालीन उन्ही के बंदी बनाये गए कारीगरों से बनवाये गए थे सैनिको ने डाकुओं को पकड़ लिया और कारीगरों को आज़ाद कर दिया ।
इस बुद्धिमानी से कारीगरों ने अपनी जान बचाई और मंत्री मंडल की समझदारी ने खतरनाक डाकुओं को पकड़ लिया ।
