नवजात संस्मरण " स्कूटी एक प्रेम कथा"
नवजात संस्मरण " स्कूटी एक प्रेम कथा"
कल सुबह जब स्कूल जाने के लिए अपनी "धन्नो "यानी स्कूटी को स्टार्ट किया तो उसने चलने से इंकार कर दिया। असल में पिछले दिन एक पानी से भरे गड्ढे को पार करने के चक्कर में शायद उसके साइलेंसर में पानी चला गया था।खैर उसे स्टार्ट नहीं होना था न हुई ,किसी तरह पड़ोस के एक भइया ने उसे किक से स्टार्ट किया तो मुझे लगा कि किसी तरह स्कूल पहुंच जाऊं,फिर कोई चिंता नहीं है,लेकिन रेलविहार कॉलोनी के गेट पर आकर वह फिर रुक गई । करीब पंद्रह मिनट तक परिश्रम किया लेकिन बेकार फिर वहीं से विद्यालय में सूचित किया ,अचानक से वह स्टार्ट हो गई ,मेरे अनेक वर्षों के अनुभवों ने मुझे आगाह किया कि स्कूटी घर की ओर मोड़ लूं मैंने वही किया और वाकई गेट पर फिर वो बन्द हो गई,मैंने बेटे को बुलाकर स्कूटी अंदर करवाई और ओला बुक करने लगी,तभी पतिदेव का फोन आया बोले "क्या हुआ कोई दिक्कत"? असल में हमारे घर में चार सी सी टी वी कैमरे लगे हैं जिनका एक्सेस हम चारों के फोन में है,पतिदेव मैं और दोनों बेटे ।पतिदेव कुंवर अनुराग सिंह लगभग इस वर्ष के आरंभ से ही अहमदाबाद में शिफ्ट हो चुके हैं,उन्हे नौकरी का बेहतर अवसर वहां मिला है,और जीवन के इस मोड़ पर एक अच्छी नौकरी भी बहुत आवश्यक है, यही सोचकर हम लोगों ने यह निर्णय लिया ,लेकिन वह पूरी तरह यहां की हर खबर मौसम तथा गतिविधि से परिचित रहते हैं,इसलिए कैमरे भी लगवा दिए थे।
अक्सर हम लोग घर के अंदर होते हैं और मॉनिटर पर नजर नही होती है तब तक फोन आ जाता है "गेट पर कोई है जाकर खोलो"प्रतिदिन सुबह मेरे स्कूल जाने तक ,वो अहमदाबाद में चाय के साथ साथ सेक्टर एल आशियाना की खबरों का आनंद लेते रहते हैं,कल भी यही हुआ और उन्हें जैसे ही लगा कि समस्या है तो तुरंत फोन किया मैं भरी बैठी थी ,ओला लगातार लेट हो रही थी मैंने अपना सारा गुस्सा इनके ऊपर उड़ेल दिया "आपको क्या,आप तो आराम से बैठे हो,ऑफिस ने गाड़ी दी है,यहां हमारी हालत खराब हो रही है अकेले क्या क्या संभालें। बस सवेरे सवेरे उठकर न्यूज चैनल की तरह घर की खबरें देखते रहते हैं,कुछ कर पाएंगे? " बोलते बोलते मेरे रुलाई फूट पड़ी और मैने फोन काट दिया।तब तक ओला आ चुकी थी मैं विद्यालय पहुंची,खैर यह एक सुखद बात थी कि सभी को मेरी परेशानी से सहानुभूति थी किसी ने कुछ नहीं कहा।
दिन भर तनाव में थी कि' कल कैसे आऊंगी?' मैकेनिक तक गाड़ी कैसे जायेगी'?इनके लखनऊ में रहने पर मैं कभी अपनी गाड़ी का पेट्रोल भी नहीं झांकती थी।बीमा,प्रदूषण तथा अन्य चीजें भी जब सम्पन्न हो जाती थीं तभी पता चलती थीं,लेकिन आज पहली बार इस स्थिति का सामना हो रहा था। अपनी मित्र की गाड़ी से घर पहुंची तो बहुत सुखद आश्चर्य हुआ मैकेनिक घर आकर गाड़ी ले गया था किसी तरह स्टार्ट करके ,और जब वापस आया तो मेरे पूछते रहने पर भी पैसा नहीं बताया केवल हंसकर बोला "भइया (पतिदेव) ने मना किया है,वो हमें ऑनलाइन पेमेंट कर देंगे,कह रहे थे गाड़ी देकर चुपचाप चले आना"
मित्रों यों तो यह बात बहुत छोटी सी है लेकिन बड़ी गहरी अनुभूति से जुड़ी है लखनऊ से लगभग डेढ़ हजार किलोमीटर की दूरी पर रहकर भी उन्होंने हमे गाड़ी बनवाने नहीं जाने दिया। बहुत से काम ऐसे हैं जो वो वहां बैठे बैठे ही करवा देते हैं। यह बात मेरे मन को छू गई ,अकड़ के मारे धन्यवाद नहीं बोला तो इस पोस्ट के माध्यम से बोल रही हूं।इस स्कूटी के आगमन की कहानी भी बहुत रोचक है।मुझे साइकिल चलाना भी नहीं आता था,जब सेक्टर एल में अपने घर पर हम लोग 2006 में शिफ्ट हुए तो ये हमे नियम से छोड़ने जाते थे,और वापसी में रिक्शा आदि कर लेती थी।लेकिन इनकी एक आदत बहुत गड़बड़ थी कभी कभी ये मेरे निकलने के समय पौधों में पानी डालने चले जाते थे तो कभी नहाने और इस चक्कर में मैं लेट हो जाती थी,और फिर पीछे बैठकर इनकी बुलेट की ही तरह पूरे रास्ते धकधकाती रहती थी
मुझे अच्छी तरह याद है वह 26जनवरी सन 2010 की सुहानी सुबह थी मैं विद्यालय के झंडारोहण कार्यक्रम के लिए तैयार हो रही थी ये टीवी में राजपथ के कार्यक्रम की तैयारी कर रहे थे।मैं तैयार खड़ी थी मुझे देर हो रही थी लेकिन साहब रजाई से उठने को तैयार नहीं। जब मुझे बहुत तेज गुस्सा आता है तो मैं रोने लगती हूं सो रोने लगी ।खैर ये जल्दी से उठे और स्कूल के गेट पर छोड़ा लेकिन पूरे रास्ते मैं बड़बड़ाती रही क्या कुछ नहीं कहा मैने इनसे उस दिन,लेकिन जनाब के मुंह पर एक चुप तो हजार चुप।
हालांकि बाद में मुझे बहुत पछतावा भी हुआ,जब घर लौटी तो ये गायब मिले,मुझे लगा हो सकता है गुस्सा होकर किसी मित्र के यहां चले गए हों,लेकिन बच्चों ने बताया कि बहुत अच्छे मूड में थे,तो इंतजार करना मैने बेहतर समझा।
करीब तीन बजे दरवाजे की घंटी बजी।बच्चों ने बताया कि पापा आए हैं किसी अंकल के साथ ,मैं नीचे गई इन्होंने अचानक से हंसते हुए मेरा दाहिना हाथ पकड़ा और हथेली पर काले रंग की चाबी रखकर मेरी मुट्ठी बंद कर दी,फिर सामने खड़ी गाड़ी की ओर संकेत करके बोले यह ब्रेक है,यह लाइट है ,यह हॉर्न है, अब एक हफ्ते में सीख लो एक हफ्ते के बाद तुम्हारी ये बुलेट की सवारी बंद।
आप विश्वास मानिए करीब दस मिनट तक उस एक्टिवा ने मुझे और मैने एक्टिवा को निहारा फिर हिम्मत करके चलाई,मुझे किसी ने गाड़ी चलाना नहीं सिखाया मैने अपने दोनों बेटों को भी ऐसे ही गाड़ी सिखाई है,पतिदेव का यह तरीका बहुत अच्छा था ,वाकई पीछे बैठकर गाड़ी सिखाने के स्थान पर यह सही ढंग है,प्रभु श्रीराम जी की कृपा से एक हफ्ते के बाद मैं अपने दोनो छोटे छोटे बच्चों को लेकर स्कूल जाने लगी।
बस गाड़ी की मेंटीनेंस ये देखते थे। इस प्रकार यह एक्टिवा,मेरी स्कूटी हमारे प्यार की प्यारी सी निशानी है।यह मुझे इतनी प्रिय है कि मेरे परिवार में किसी ने भी मुझसे यह कहने की हिम्मत नहीं की कि इसे बेच दो। जब तक बस चलेगा इसे नहीं बेचूंगी हां दूसरी आ सकती है, लान में बहुत जगह है। मुझे गर्व है कि मेरे जीवन में जिन लोगों को मैं चाहती हूं वो इतने ही झक्की और साफदिल हैं|
