Diya Jethwani

Inspirational

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Diya Jethwani

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कर्मों का फल

कर्मों का फल

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कर्म करें किस्मत बनें 

जीवन का यह मर्म । 

प्राणी तेरे हाथ में

तेरा अपना कर्म।। 

अर्थात. कर्म करने से ही किस्मत बनतीं हैंऔर जीवन का यहीं रहस्य हैं। व्यक्ति के कर्म उसके स्वयं के हाथों में होता हैं। अर्थात किस्मत का बनना और बिगड़ना इन्सान के अपने ही हाथों में होता हैं। नसीब को दोष देने से कोई लाभ नहीं हैं। 

इसी कर्मों के चक्कर को एक छोटी सी कहानी से आप सबके सामने रख रहीं हूँ। ये कहानी कभी मैंने अपने पिताजी से सुनी थींऔर कुछ समय पहले मैने इसे कहीं पढ़ा भी था। 

बहुत समय पहले की बात हैं एक मांसाहारी (मांस खाने वाला) परिवार था। परिवार में पांच सदस्य थे। पति - पत्नी और उनके तीन बच्चे। बड़े बच्चे की उम्र चार साल की थीं दूसरे बेटे की उम्र ढाई साल और सबसे छोटा बच्चा गोद में था कुछ महीनों का। 

पड़ोस में हर कोई उस औरत को किस्मत का धनी और खुशनसीब कहते थे क्योंकि वो तीन तीन बेटों की माँ थीं। वो औरत भी अपने तीनो बेटों पर बहुत अभियान करतीं थीं। पूरे गाँव में दोनों पति पत्नी बहुत ही अभिमान से रहते थे। आए दिन अपने अंहकार से किसी ना किसी का दिल दुखी कर देते थे। लेकिन कोई उनकों कुछ कह नही पाता था क्योंकि उनकी जूबान बहुत कड़वी थीं। इसलिए गाँव के लोग उनसे दूरी बनाकर ही रखते थे। उस आदमी की एक खास दैनिक क्राय प्रणाली थीं वो रोजाना सवेरे मुर्गे को पकड़ कर उसकी गर्दन मरोड़ कर उसे अधमरा करता था फिर छूरी से उसकी गरदन काट कर सफाई कर अपनी पत्नी को बनाने के लिए दे देता था। उसके दोनों बेटे रोजाना यह सब देखते थें। लेकिन वो कुछ समझ नहीं पाते थे। उन्हें उस वक्त ऐसा लगता था उनके पिताजी रोज कोई खेल खेलते हैं और उस खेल में उन्हें बहुत मजा आता हैं। वो दोनों दूर खड़े होकर तालियां बजाते थे। 

एक रोज की बात हैंउनके पिता किसी काम से शहर गए हुए थे। वो दोनों बच्चे आस पास मुर्गे को तलाशने लगे जब वो नहीं दिखाई दिया तो उन्होंने आपस में ही खेल खेलने का सोचा.। बड़े लड़कें ने अपने पिता की तरह ही अपने भाई की दोनों टांगें पकड़ी फिर उसकी गर्दन मरोड़ने की कोशिश की। गरदन मरोड़ने पर वो बच्चा चीखा तो बड़े लड़कें ने छूरी उसकी गरदन पर चला दी। बच्चे की गरदन से खून की धार बहनें लगी. ये सब देखकर बड़ा लड़का भी बहुत डर गया उसे लगा अब उसके माता पिता उसे बहुत मारेंगे डर के मारे वो छत पर भाग गया और छत से छंलाग लगा लीछत से गिरते ही उसकी मौत हो गई.चीखें सुनकर उनकी माँ जो उस वक्त सबसे छोटे बच्चे को टब में बिठाकर नहला रहीं थीं वो बच्चे को वही छोड़कर दौड़ती हुई बाहर आई। बाहर आकर उसने जब दोनों बेटों की लाशें देखीं तो चक्कर खाकर वही गिर पड़ीं। कुछ देर बाद उसने खुद को संभाला तो उसे तीसरे बेटे की याद आई वो दौड़कर भीतर गई. पर तब तक बहुत देर हो गई थी। वो बच्चा भी पानी में डूबकर मर चुका था। 

अंहकारअभिमान और उनके कर्मों की वजह से आज उनका सब कुछ खत्म हो चुका था। किसी बेजुबान को निर्ममता से मारने और अपने बेटों पर हद से ज्यादा घंमड करने की उन दोनों को सजा मिल चुकी थीं। 

इसलिए ही ऊपर लिखी पंक्ति में कहा गया हैं की जो कुछ होता हैं तुम्हारे कर्मों की वजह से होता हैं। इसलिए अपने कर्म अच्छे करो। 


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