कर्मों का खेल
कर्मों का खेल
दूधिया चांदनी में रमन ने एक भिखारी को देखा, वह बिल्कुल फटेहाल अवस्था में खाने के लिए तरस रहे था, शायद बहुत दिनों से कुछ खाया न होगा। बाबू जी खाना दीजिए, भिखारी ने रमन से कहा।
रमन ने उस भिखारी को भला बुरा कहना शुरू कर दिया। होटल गणेश्वर में हरी बाबू भी बैठे थे। वह ये सब देख रहे थे और भिखारी को पास आने का इशारा किया। सजल नेत्र से वह भिखारी हरि बाबू के पास आकर खड़ा हो गया। हरि बाबू ने जीतू ताऊ को एक खाना और लाने का आदेश दिया।
भिखारी ने भरपेट खाना खाया और हरी बाबू को ढेरों सारी दुआएं दे के चला गया। हरि बाबू सोचने लगे कि मेरे पास सब कुछ है किंतु औलाद के दुःख से दिनरात उदास रहता हूं, पर ये भिखारी मुझे पुत्र का आशीर्वाद दे गया, पुत्र तो मेरे भाग्य में है नहीं। चलो जो हुआ सो अच्छा हुआ भिखारी तो तृप्त हो गया।
ठीक नौ माह के बाद हरि बाबू के घर पुत्र की किलकारियां गूंजी। तब हरि बाबू को गणेश्वर होटल में मिले उस भिखारी के शब्द याद आए। कभी कभी दुआएँ भी सब काम मौन तरीके से कर जाती है।