STORYMIRROR

Sankit Sharma

Abstract Romance

3  

Sankit Sharma

Abstract Romance

कोई गिला तो नहीं

कोई गिला तो नहीं

8 mins
499

सर्द हवाएं बेरुख सी बेह रही थी, जिससे पेड़ो पर लगी पत्तियां एक दूसरे से टकराकर आवाज कर रही थी या एक खूबसूरत सा शेर कर रही थी।

पत्तियां का ये शोर मन को कितना शांत कर देता है ना ओर शोर ही तो होता है जिसे हम याद रखते हैं। मौन बातों को कोई याद नहीं रखता साब भूल जाया करते है

कभी कभी यादों का शोर जो हमे तन्हाइयों में गुमनाम भटका सा मुसाफिर बना देता है ऐसे ही कुछ यादों के शोर ने मुझे भी स्थिर करके रखा था।

ये शुरुआती नवम्बर में हवाएं सर्द रूप लेती हुई हर सुबह और शाम में नरमी घोल देती है और मौसम को खुशनुमा कर देती है,पर!

ना जाने क्यों ये मौसम मेरी यादों के खुले हुए कुछ घावों को कुरेदता हुए नजर आ रहा था इस दफा।

इन सुबहों इन शामों का ये अजनबी रूप मेरे लिए नया था,जब भी कोई सर्द हवा का झोखा ईर बदन को छूता तो लगता कि जैसे किसी ने मुझे कुरेदा हो,जब जब मैं मौन बैठी महसूस करती इस बतावरण की तब तब मन की गहराइयों खाई सी बन जाती ओर में इनमें धसने लगती धीरे धीर

मैं आकाश से माफी मांग लूंगी मैंने मन में सोचा,

पर क्या माफ करेगा वो मुझे,क्या भूल जाएगा वो मेरी गलतियों को, मेरी बात काटने को एक सवाल गले में अटका ही रहा। कितना आसान लगता है ना हमें किसी के दिल को तोड देना, उसे उन सब बातों से रूबरू ना होने देना जिनकी उसको जरूरत है।कुछ इसी तरह अपने बर्तन को याद करते हुए मैं अपने अतीत की मुंडेर पर खड़ी थी।

वो सितारों भारी रात थी।

मैं ओर आकाश फूलों से सजे एक कमरे में बैठे खिड़की के उस पार सितारों से जगमगाते आसमान को देख रहे थे,

आकाश बहुत स्मार्ट ओर well doing लड़का है,बहुत भाएगा हमारी दीक्षा को, हां पापा ने लड़के के बारे में जिक्र करे हुए यही कहा थाओर मैंने कोई दिलचस्पी ना ली थी उसके बारे में जानने की।

आकाश था भी बिल्कुल वैसा रेशमी चमकदार बाल,चमचमाती आंखे ओर होंठो पर हमेशा एक हसीं,

किसी एमएनसी में मैनेजर की पोस्ट पर था।

मैं सोच ही रही थी कि मैंने अपने कंधे पर एक हाथ मैहसूस किया,आकाश का हाथ था ओर शायद दोस्ती की फरमाइश कर रहा था।

मैं तुरंत खड़ी हो गई ओर छटपटा के तुरंत दो कदम आगे बढ़ी,आकाश मुझे बड़ी हैरानी से देख रहा था।

क्या हुआ दीक्षा - आकाश ने पूछा

मैं कुछ देर मूक रहने के बाद बोली,

आकाश ये नहीं हो सकता, मैं तुम्हारी पत्नी बनकर नहीं रह सकती।

आकाश फटी आंखों से अधखुले होंठो संग चेहरे पर हैरानी लिए मुझे देख रहा था।

क्या हुआ दीक्षा मुझे बताओ - आकाश ने चुप्पी तोड़ते हुए मुझसे पूछा।

आकाश मैं किसी और से प्यार करती हूं ये शादी मेरी नमर्जी के बाद जबरदस्ती हुई है।

तुमने शादी को खेल समझ है क्या, दीक्षा नहीं ये खेल नहीं है, ये दो आत्माओं का संगम है इसमें जीवन का नया रूप जन्म लेता है।

रूंधते गले से कहते हुए आकाश के आंसू निकल आए,उसने कोई शिकायत ना करी थी मुझसे।

और पापा की तबीयत ठीक ना होने के कारण कोई विवाद भी नहीं चाहता था घर में

कितना बुरा होता है न जब परेशानियों का दौर में कोई हमसफ़र नहीं मिलता।

आकाश ने क्या कभी मेरी कमी महसूस नहीं करी होगी मेरी क्या उसे नहीं झकझोड़ा होगा उसके अकेलेपन ने। उसने अपने पति होने के सभी कर्तव्य निभाए थे ओर अपनी पत्नी होने के सभी अधिकार मुझे दिए थे फिर क्यो नही समझ पाई थी मै उसकी मोहब्बत को, उसके अपनेपन की जो वो मुझे महसूस करवाना चाहता था।

उस रात आकाश ने और कुछ भी नहीं कहा।

वो चुपचाप बैड के एक कोने के जरा से हिस्से में पड़ा रहा।

अगली सुबह आंखे खुली तो देखा आकाश पहली ही जागा हुआ है। वो पूरा दिन मेहमानों की कोलाहल में बिता।

हां, एक दो कॉल तो !

उत्कर्ष के, उत्कर्ष जिससे मै प्यार करती थी एक अमीर परिवार का लड़का उड़ाने खाने में पूरा व्यस्त लड़का फिर भी मुझे उस पर प्यार क्यों आया मैं नहीं जानती!

शाम आते आते रात हो गई और सभी मेहमान भी अपने अपने घर लौट गए आकाश के मम्मी पापा भी,उन्हें कोई जरूरी काम था उन्होंने बाद में आने का वादा भी किया था जाने से पहले वे अपने मूल घर में रहते थे।

जो बनारस में था आकाश काम के मामले में दिल्ली आया था।

तुमने खाना खाया दीक्षा ?

सोने से पहले आकाश ने मुझसे पूछा।

मैंने हां कह दिया।

अच्छा ठीक है आकाश ने कहा।

तुम्हें परेशानी ना हो इसलिए मैं बाहर ड्राइंग रूम में सोफे पर सो जाता हूं

आकाश ने तकिया उठाया और शांत आंखे लिए बाहर की तरफ मुड़कर चल दिया,मै देख रही थी उसे जाते जाते।

खिड़की से झांकती चमकदार किरण की तेज से अगली सुबह मेरी आंखें खुली चाय का कप सिरहाने रखा था और आकाश ऑफिस के लिए तैयार हो रहा था तभी फोन वाइब्रेट हुआ उत्कर्ष का मैसेज था जब फ्री हो तो कॉल करना इतनी देर तक आकाश जा चुका था मैंने तुरंत फोन उठाया और उत्कर्ष को फोन मिला दिया

तुम्हारे और मेरे बीच जो भी था वह खत्म हुआ तुम मेरे लायक नहीं हो तुम मेरी बनकर नहीं रह सकती इसलिए आज के बाद ना मुझे तुम फोन करना और ना ही मैसेज मुझसे बात करने की कोशिश भी मत करना फोन उठाते ही उत्कर्ष ने जो भी उसके मन में था सब कह दिया उत्कर्ष का ऐसा रूप नया था मेरे लिए

ऐसा नहीं होता उत्कर्ष तुम मुझे ऐसा कह कैसे सकते हो तुमने प्यार किया था मुझसे और तुमने प्यार को क्या खेल समझा हुआ है मुझे गुस्सा आ गया था।

तुमने भी तो खिलबाड़ किया है ना आकाश की जिंदगी से अपने बारे में क्या ख्याल रखती हो ?

उत्कर्ष किस बात ने मुझे फोन कर दिया हां किया था मैंने खिलवाड़ आकाश की जिंदगी से

मैंने फोन काटा और बेड पर गुस्से में पटक दिया मेरी आंखें आंसुओं से भरी हुई थी अचानक से पीछे देखा तो आकाश खड़ा था।

वो. मेरी घड़ी रह गई थी इसलिए आना पड़ा

क्या हुआ परेशान लग रही हो?

आंखों में आंसू देखकर आकाश ने मुझसे पूछा

नहीं कुछ नहीं, गर्दन ना के इशारे में हिलाकर मैंने ऐसे करने की कौशिश करी की जैसे सच में कुछ नहीं हुआ।

फिर आकाश चला गया।

रोते-रोते मैंने उत्कर्ष को कई मैसेज किए कॉल भी किया लेकिन कोई जवाब नहीं आया।

हम दूर की चीजों की आस में कई बार हमारे पास जो मौजूद है उन चीजों का ख्याल रखना भूल जाते हैं। जज्बातों की इसी तोड़ मरोड़ में मेरे दिन बीतने लगे।

मैं आकाश को सब कुछ बता देना चाहती थी लेकिन अंतर्मन से उठा डर मुझे हमेशा रोक लेता था। मैंने धीरे-धीरे आकाश को समझना शुरू कर दिया था, उसकी सादगी बिल्कुल बेदाग थी मैंने आकाश को उसके पति होने का कभी अधिकार नहीं दिया और ना कभी आकाश ने कोई जबरदस्ती करी।

पर अब यह अधूरी शामें मुझे खलने लगी है ये आसमान का संतरीपन मेरी आंखों में चुभने लगा है। मै इसे सहन करने के लिए अब सक्षम नहीं हूं इसलिए मैं माफी मांग लेना चाहती हूं आकाश से।

कभी-कभी हम कितने स्वार्थी होते हैं ना प्यार पाने की चाहत में प्यार की मांग करते हैं और उसकी तरफ दौड़ते हैं।

आज मैं देर से उठी तब तक आकाश जा चुका था और मैं अकेली थी एकांत कमरे में,

अकेलापन खामोश कर देता है। जेहन में ये सवाल भी आता है कि हम अपने बनकर क्यों नहीं रहते उनके, जो हमारे अपने होते हैं, क्यों हम दूसरों को ज्यादा तवज्जो देते हैं। अपने जीवन से भी ज्यादा क्या अपनों के प्यार में कोई कमी होती है।

शायद नहीं क्योंकि हम जैसे जैस बड़े होते है हमारी सोच का भी आकर बढ़ने लगता है और हम दूसरो को देखकर उन चीजों की चाहत करने लगते है जो दूसरो के पास है।

और ये सिर्फ मै नहीं हर कोई करता है।

आज का पूरा दिन सोच भरा गुजरा एक मचलती शाम फिर मेरे सामने आ खड़ी थी! सवालात लिए मन से आवाजें उठ रही थी और अकेलेपन में मन से उठती है ये आवाज मुझे विचलित कर रही थी, अंदर से भावनाएं उमड़ने लगी वहीं मेरी भावनाएं जो आकाश की मेरे लिए थी शायद इसलिए अधूरी जिंदा थी कि कि कभी तो मेरा प्यार जन्मे गा उन्हें पूरा करने के लिए।

मैं मांग लूंगी माफी आकाश से!

मैं कह दूंगी अपना पूरा हाल-ए-दिल कह दूंगी मैं रूठी पड़ी हूं खुद से मुझे मना लो तुम,

पत्नी ना सही दोस्त बना लो बहुत जरूरत है मुझे एक दोस्त की जो मेरी बातें सुन कर उन पर हसे, मुझसे रूठे, मुझे मनाएं। मेरे साथ बैठे और देर रात तक देखे इस चांदनी रात को, अनंत नीले आसमान को।

आसमान !

हाँ ये वही आसमान है वहीं चांदनी रात थी, सितारे जगमगा रहे थे, ताजी हवा पर्दों से खेल रही थी और आकाश और मैं जब बेड पर बैठे हुए थे।

इस बीच कुछ खा रहा था मुझे भी और शायद आकाश को भी।

वह सन्नाटा था जो मेरे मन में डर लिए और आकाश के में में सवाल लिए हुए था।

अगले दिन में आकाश के सामने खड़ी थी। नम लिए और आकाश मुझे बड़ी खूबसूरती से देख रहा था,

मुझे माफ कर दो आकाश मैं खुद को और काट कर नहीं रख सकती, तुम्हारे इश्क का तिरस्कार करा मैंने मेरी गलती थी,मैं मुंह नीचे करके रोने लगी।

तभी मैंने अपने गालों पर नरम से हाथ महसूस करें मैं छठ पटाई नहीं थी,इस बार मैंने इस बार उन नरम हाथों को महसूस करने की कोशिश करी थी कोशिश करी थी कि मैं ढूंढूं उन हाथों में अपनापन इन हाथों की तो मुझे जरूरत थी, उन हाथों में वो था जिसकी मुझे बहुत वक्त से चाहत रही थी उन हाथों में अपनापन था,इसी की तो तलाश थी मुझे मैंने कैसे अपने दिन काटे रातें गुजारी सिर्फ मैं जानती हूं पर क्या आकाश को भी कमी खली होगी ऐसे ही नर्म हाथों की

हां ! खली तो होगी।

दीक्षा सच्चाई को अपनाना बहुत कठिन लगता है सच्चाई सदैव यातना भरी लेकिन खूबसूरत होती है हम सभी चीजों में प्यार चाहते हैं इस वजह से भटकते हैं और दुख पाते हैं क्योंकि जरूरी नहीं हर चीज जिससे हम प्यार चाहते हैं वो हमारे लायक हैं या फिर वह हमें सपोर्ट करेगी इसलिए हमें अपनी जरूरतों के हिसाब से चलना चाहिए जरूरतों और फरमाइश में फर्क होता है खैर इसमें तुम्हारी कोई गलती नहीं तुम अब से मेरी हो और मेरी ही रहना सदा।

आकाश ने शांत लहजे में कहते हुए मुझे गले से लगा लिया ऐसा लगा जैसे मुझे सारे जहां मिल गया।

गहराई थी उन एहसासों में किसी नीले सागर से भी कई गुना।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Abstract