आखिरी मंजिल इश्क है
आखिरी मंजिल इश्क है
दिन का उजाला हिचकोले खाते खाते अस्त होने को था और आसमान का रंग धीरे धीरे संतरी हो रहा था। हवाएं सामने पार्क से ताजी सुगंध लाती और मेरी साँसों मे घोल देती। साँसों मे एक मीठा सा रस घुल जाता, तभी अचानक से आसमान का संतरीपन गायब सा होने लगा और अंधेरा अपना साया फैलाने को तत्पर हो गया, हवाएं तेज और रेतीली हो गई।
बादल आसमानी से काले होने लगे थे तेज हवा मे घुल रही मिट्टी का एहसास गालों पर साफ झलक रहा था। मैंने इस हवा को छूने को हाथ जैसे ही खिड़की से बाहर निकाला तो एक बंद मेरी हथेली पर आकार गिरी पर हवा के वेग से जल्द ही अद्रश्य हो गई, हल्की फुल्की बूंदा-बाँदी से बारिश शुरू हो चुकी थी।
बारिश !
अगर कोई शख्स बारिश के मौसम मे एकांत बैठता है तो ये उसकी उन सब यादों को हर कर देती है जो उसकी खुशी ओर गम का कारण रहे होते है।
बारिश तेज हो चुकी थी ओर आसमान काला, तभी मेरी नजर स्ट्रीट लाइट पर पड़ी कितनी खूबसूरत चमक रही थी इस रोशनी मे बुँदे बिल्कुल मोती की तरह जो खाली ओर शांत पड़ी उस सड़क को ओर भी खूबसूरत बना रही थी।
बारिश की छम छम सी आवाज और हवा का ताजापन मुझे मेरे अतीत की ओर धकेलने लगा और मुझे खिचकर ले गया मेरे कॉलेज के दिनों में,
वो शाम मुझे अभी याद है जब कॉलेज से अपने घर लौटा ही था की फोन वाइब्रैट हुआ, किस अजनवी का मैसेज था।
अजनबी:- हैलो(हस्ती हुई एमीजी के साथ)
हैलो जी, आप कौन के सवाल के साथ मैंने उत्तर दिया,
अजनबी :- हाई, मैं आशि तुम्हारी ही क्लास मे पढ़ती हूँ।(उधर से जवाब आया )
आशि कौन है मैंने तो आजतक नहीं देखा था(मैंने मन मे सोच और जवाब दिया)
ओह अच्छा, नाइस टु मीट यू आशि
मैंने जवाब दिया और फोन साइड मे रख दिया और सोचने लगा
ये आशी कौन है, चलो होगी कोई, (इस बात से अनजान की वो आशि ही तो है मेरे जीवन को खूबसूरत बनाएगी)
(आशि मेरे जीवन की किताब का वो खूबसूरत अध्याय है जिसे पढ़ने मे मैंने शायद थोड़ी देरी करी थी,
या यूँ कहें की ध्यान ही नहीं दिया था कभी।)
हम अक्सर चाहते है की खुशिया जब हमारे जीवन मे आए तो हमारे पास वो सदा के लिए रहे बिल्कुल स्थिर अवस्था मे और कभी कभी हम खुद उनका तिरस्कार करने। हम उनकी कद्र नहीं करते बस आने वाली खुशी की सोच में।
आशि भी वही खुशी थी मेरे जीवन मे, जिसे न मैंने जानने की कोशिश करी थी और न ही उसे अपनाया था। मन मे कभी एक विचार भी नहीं आया की कभी मैं उसे पहचनु उन्हे आपनाऊ।
शुरुआती तौर पर कभी-कभी खूबसूरत दिखने वाली चीजें भी भयंकर भी होने लगती है और कुछ अजीव बातें भी सुंदरता को पहन लेती है एक समय के बाद।
तुमने भी तो खूबसूरत बनाई थी न !
मेरी जिंदगी, फीकी सी पड़ी स्वादहिन जिंदगी,
जिसका नहीं था कोई ठिकाना उसे दिया था न ठिकाना
बारिश से हुई ठंडी हवा के एहसास ने मुझे मेरी सोच से बाहर खिच लिया। मैं उठा और अपने लिए एक चाय बनाई मैं देख रहा था चाय से उठती भाप का हवा से मिलन कितनी चुपचाप और शांति से भर मिलन था ये कोई आहट भी नहीं थी, हवा और गर्म भांप का वो मिलन मुझे खिच कर ले गया मेरे अतीत के उस वक्त मे जब आशि ओर मेरी पहली मुलाकात हुई थी।
मेसेग आने के अगले दिन मैं क्लास में पहुच कर बैठा ही था की मैंने अपने कंधे पर किसी का स्पर्श महसूस किया, ऐसे जैसे कोई मेरा ध्यान अपनी तरफ आकर्षित करना चाहता हो, मैंने पीछे गर्दन घुमाकर देखा आशि थी !
Umm.. मैं आशि, कल मेसेज किया था न(उसने कहाँ )
मैं जरा हिचकिचाया ओर हैलो का इशारा करते हुए हास दिया,
तुम बहुत अच्छा लिखते हो, बात को आगे बढ़ते हुए शि ने कुछ अलफाज और जोड़े
मैंने जरा सी मुस्कुराहट देते हुए शुक्रिया कहा और बस इससे ज्यादा किसी बारे मे बात हुई नहीं थी बातों का शांत सा शीलशिला हम दोनों की चुप्पी तले रुँध गया।
बस इसी तरह दिन, हफ्ते बीते ओर छोटी छोटी बातें होती रही,
वक्त के साथ अक्सर इंसान के किरदार में बदलाव आने लगता है लेकिन मैंने कभी आशि को उस नजर से जाँचने की कोशिश नहीं करी थी इस बात से बेखबर की वो अक्सर कल्पनाओ की नोक से नए नए ख्वाब रचा करती थी।
प्यार करना, प्यार की बाते करना ये सब मुझे समय व्यर्थ लगता था, और मैं हमेशा कोशिश करता था की दूर ही रहूँ, तो क्या मैं प्यार से डरता था हाँ डर ही था शायद ये वो डर था जिसका आधार मेरे सिमटे विचारों तक ही सीमित था।
वक्त गुजरा और कॉलेज की पढ़ाई खतम हुई, मैं शहर से बाहर अपनी आगे की पढ़ाई के लिए चला गया था बिना किसी की सुद लिए आशि का तो विचार ही मन मे नहीं आया था मेरे।
शहर से बाहर आकार पढ़ना हमे कुछ नए अनुभव प्रदान करता है हम नए आवेश अपनाने लगते है ओर भूलने लगते है पुरानी बातों को, कुछ ऐसा ही हुआ था मेरे साथ भी मैं अपनी पढ़ाई मे पूरा व्यस्त हो गया मैंने शायद छोड़ दिया था अपनी सभी पुरानी यादों को टटोलना।
ऐसा नहीं था की बाहर जाने के आशि ने मुझे संदेश भेजने बंद किए थे मैं हर रोज सुबह शाम अपने फोन की स्क्रीन पर आशि की तरफ से आए देखता था जिन्हे मैंने कई बार अनदेखा भी किया था ओर जवाब देने मे हमेशा देरी भी की थी।
पढ़ाई के बाद जब वापिस मैं अपने शहर लौट तो सब नया सा लगा मुझे था, इंसान पर जब नए विचारों की परत पड़ती है तब हर तत्व को वो नए तरीके से देखना शुरू कर देता है और शायद सभी बातों पर एक नयापन चढ़ जाता है।
घर पर सब बहुत खुश थे मैं नई उपलब्धियों के साथ जो घर लौट था, सबसे मिला, साथ वक्त गुजारा, साथ बैठकर खाना खाया और बहुत सारी बातें करी।
शाम गुजरी और आसमान मे सेकड़ों सितारे चमकने लगे, दिन भर की व्ययस्थता के चलते फोन को उठाकर देखने की फुरसत भी नहीं मिल पाई थी और थकावट के कारण अब शरीर भी आराम मांग रहा था इसलिए मैं सीधा सोने चल गया फोन वही पास मे ही पड़ा था, बैड पर लेता ही था की फोन वाइब्रैट हुआ, मैंने फोन उठाकर देखा।
आशि का मेसेज था, वेलकम बैक लेखक साब, उसका पिछला मेसेज 6 घंटे पहले का था। पहली बार मन में टीस सी उठी, जिसने मुझे याद किए बिना एक भी दिन नहीं छोड़ा मैं उसे देखता तक नहीं हूँ पहली बार मैंने स्वीकार किया की हाँ मैं एक गैरजिम्मेदार इंसान हूँ अगर कोई हमारी परवाह करता है तो हमे भी उसकी परवाह करनी चाहिए न तो क्यों नहीं करी थी मैंने कभी आज मन अपने ही सवालों मे घीरा हुआ था ये पहली भावना थी जिसने मुझे आशि की तरफ धकेला था।
Umm.. सॉरी वो वापिस आने के बाद सबसे मिलने मे रिप्लाइ करने का टाइम नहीं मिला एण्ड थेनक्यू फॉर योर ग्रीटिंग, मैंने रिप्लाइ किया;
कोई बात नहीं होता है;जवाब के साथ रिप्लाइ आया।
आशि क्या तुम्हें मुझसे कोई गिला, शिकवा नहीं है?
अगर नहीं है तो क्यों नहीं है तुम्हारी जगह अगर मैं होता तो नहीं करता मैं ऐसे किसी भी शख्स से बात जिसे मेरी कदर नहीं है मन के अधेड़ कोने से आवाज उठी।
मैं तुम्हारे जीवन का एक खराब किरदार हूँ न आशि ;मैंने खीझते हुए पूछा
किसी के जीवन के किरदारों को ते करना आपके हाथ में नहीं है, छोड़िए इन बातों को कहिए कैसे बीते आपके दिन?
उधर से आशि का मैसेज आया।
मेरे लिए उसकी बातों मे इतना अपनापन देख कर हैरान था मैं मैं अपने खुद के ही सवालों मे घिर गया था।क्या मुझे करना चाहिए था आशि को अनदेखा?
क्या उसे कभी मेरी जरूरत महसूस नहीं हुई होगी ?
कुछ इसे ही सवाल थे जो मेरे जेहन को कुरेद रहे थे।
दूसरे मैसेज ने मेरा ध्यान खींचा
क्या हुआ ? उसने दोबारा पूछा
मैंने जवाब मे कहा;
कुछ अजीज जो छोड़ गया था यहाँ अनजाने मे उसे अब अपना बनाने का मन है, क्या तुम मुझे अपना बनने का मौका दोगी आशि ?क्या कर दोगी तुम मेरी न समझी को माफ।
उधर से मैसेज में सिर्फ एक बात ही लिखी हुई थी;
मैं तुम्हारी ही थी अजेश सदा से और सदा के लिए तुम्हारी ही रहूँगी।

