कमजोर नहीं थी वह
कमजोर नहीं थी वह
यातना भरे साल का अंत हो ही गया आखिर। पूरे एक वर्ष से जमुना इस छोटे से कमरे में कैदी की भाँति समय गुजार रही थी। न कोई बात करनेवाला, न मोबाइल फोन की सुविधा, टीवी भी नहीं था कमरे में। कोई करे तो क्या करे? बस तय समय पर घर के आँगन में खुलने वाली छोटी सी खिड़की खुलती और घर की नौकरानी कमला की आवाज आती
"भाभी आपका खाना रख दिया है।" और खिड़की बन्द हो जाती।
कई बार अगर मौका मिल जाता तो कमला उससे सहानुभूति प्रगट करके हालचाल भी पूछ लेती थी, पर ऐसा अवसर कम ही आता था क्योंकि जमुना का पति स्वयं या उसका कोई जासूस भोजन खिड़की पर रखने के समय वहाँ उपस्थित रहता ही था।
आज भोजन की थाली में मनपसन्द खीर देख कर वह चौंकी क्योंकि उसके नसीब में अच्छा भोजन किसी खास मौके पर ही आता था। जमुना के कमरे में कोई कैलेंडर तक नहीं था कि कौन सी तारीख है वह यह भी जान पाये। उसके तो दिन रात सब बराबर थे। पर खीर देख कर यह तो समझ गयी वह कि उसका लाड़ला दो बरस का हो गया है। उसकी आँखों में चलचित्र की भाँति सब कुछ घूमने लगा।
अपने माता पिता की इकलौती सन्तान जमुना उनके साथ एक छोटे से कस्बे में रहती थी। पढ़ने लिखने में मेधावी जमुना के पिता बेहद साधारण नौकरी करके परिवार का भरण पोषण करते थे। जमुना बारहवीं से निकल कर कॉलेज में पहुँची तो माँ को उसके विवाह की चिन्ता सताने लगी। जमुना आगे पढ़ना चाहती थी और इसमें पिताजी का पूरा सहयोग रहा। हिन्दी साहित्य में जमुना की बहुत रुचि थी और वह अक्सर प्रतियोगिताओं में भाग लेकर विजयी भी होती। उसके शिक्षकों को पूर्ण विश्वास था कि एक दिन वह साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान देकर नाम रोशन अवश्य करेगी। पर होनी को कुछ और मंजूर था। उस दिन जमुना किसी प्रतियोगिता में भाग लेने कॉलेज की ओर से दूसरे शहर गयी थी, ट्रॉफी जीतकर वापस लौट रही थी कि किसी पड़ोसी ने मोबाइल फोन पर माँ पिताजी की दुर्घटना की सूचना दी। वह खैरियत की प्रार्थना करते हुए जब घर पहुँची तो वह दोनों दुनिया को अलविदा कह चुके थे।
बस उसी दिन से जिन्दगी बदल गई जमुना की। चाचा चाची आकर उसे अपने साथ गाँव ले गये। मकान तो वैसे भी किराए का था तो खाली करना ही था। पढ़ाई भी छुड़वा दी गयी उसकी। कुछ दिन तक सबकी सहानुभूति जमुना के साथ रही, धीरे धीरे सारे घर की जिम्मेदारी उसके कन्धों पर आती चली गयी मगर फिर भी उसे बोझ कहा जाता। वह कमजोर नहीं थी लेकिन हालात के आगे समझौता कर चुकी थी। हर डिबेट जीतने वाली जमुना बिना मुँह खोले किसी भी अत्याचार को चुपचाप सह जाती।
एक दिन अपने से दोगुने उम्र के पास के गाँव के जमींदार से उसका विवाह कर दिया गया। यह तो ससुराल आकर पता चला कि इसके बदले में चाचा चाची ने एक मोटी रकम जमींदार कमलनाथ से ली थी।कमलनाथ की पहली पत्नी ने आत्महत्या की थी दूसरी शादी से कोई साल भर पहले। शायद उसको भी बहुत यातनाओं से गुजरना पड़ा होगा और जब सब्र का बाँध टूट गया तो दूसरा कोई रास्ता नहीं सूझा होगा।
जमुना विवाह करके आई तो साल भर सब ठीक ठाक चला। कमलनाथ के दो बच्चे व एक बूढ़ी माँ थीं। बच्चे तो खैर जमुना की शक्ल भी देखना पसंद नहीं करते थे। बूढ़ी सास को अपने पोते पोती के आगे कुछ नहीं दिखाई देता था इसलिये वह भी जलीकटी सुनाती ही रहती थी, पर कमलनाथ पूरी तरह लट्टू थे जमुना पर। यही कारण था कि जिन्दगी गुजारने लायक खुशियाँ उसकी झोली में आ गिरी थीं। आगे पढ़ाने का तो कोई सवाल ही नहीं था पर घर के एक छोटे कमरे को जमुना ने पति से आज्ञा लेकर अपना स्टडी रूम बना लिया था। खाली समय में वह वहाँ बैठ कर अच्छी किताबें पढ़ती और कुछ लेखन कार्य भी करती। यद्यपि उसका हौसला बढ़ाने को कोई नहीं था पर वह मनपसंद काम कर पा रही थी और वह इतने में ही खुश थी। असली खुशी तब मिली जमुना को, जब विवाह के साल भर बाद उसने बेटे को जन्म दिया। अब उसका सारा ध्यान बेटे पर रहता जिसकी वजह से पति की जरूरतों पर वह ध्यान नहीं दे पाती। साथ ही माँ बनने के बाद कमलनाथ को वह पहले की तरह आकर्षक भी नहीं लगती थी। कमलनाथ के लिये औरतों की कमी पहले भी नहीं थी। जमुना का ध्यान ही नहीं गया और कमलनाथ फिर से किसी के साथ प्यार की पींगें बढ़ाने लगा। जब तब वह औरत घर भी आने लगी तो जमुना का माथा ठनका। कम बोलने वाली जमुना ने अपने हक के लिये आवाज उठाई। कमलनाथ तो अलग ही मिट्टी का बना था उसके कानों पर जूँ तक नहीं रेंगी। झगड़ा बढ़ने लगा। कभी कभी आश्वासन दे भी देता कि आगे से नहीं होगा परन्तु वह कब सुधरने वाला था?
सास से बात की जमुना ने। उन्होंने उसे ही दोषी ठहरा दिया कि अगर पति को बाँध कर नहीं रख सकी तो इसमें जमुना का ही दोष है।दोनों सौतेले बच्चे इस रोज रोज के झगड़े से खुश दिखाई देते। आखिर उनकी माँ की जगह लेने वाली को सबक मिल रहा था।
ऐसे ही कुशाग्र का पहला जन्मदिन आ गया। कुशाग्र कमलनाथ का भी प्रिय था।उसके जन्मदिन को खूब धूम धाम से मनाने का निर्णय किया कमलनाथ ने। पार्टी तो शाम को थी, पर जमुना ने सुबह घर में कथा का आयोजन किया। प्रसाद में खीर पूड़ी और भी बहुत से व्यंजन बनाए। पंडित जी ने कथा में पति पत्नी को बालक के साथ बैठने को कहा लेकिन कमलनाथ का कुछ अतापता ही नहीं था। दुखी जमुना हार कर स्वयं ही पुत्र के साथ अकेले बैठी पूजा में। दोपहर बाद जब कमलनाथ ने प्रवेश किया तो जमुना ने प्रसाद की खीर उन्हें पकड़ाते हुये पूजा में न आने का उलाहना दिया तो कमलनाथ ने खीर का कटोरा उसके मुख पर उछाल दिया। इतने पर भी क्रोध शांत नहीं हुआ तो एक जोर का थप्पड़ भी जड़ कर कहा कि उनसे इस तरह बात की तो ऐसी सजा देंगे जिसके बारे में जमुना सोच भी नहीं सकती।
जमुना का आहत मन रो दिया लेकिन उसने बात न बढ़ाने में ही भलाई समझी। शाम को पार्टी थी, उसने भरसक प्रयत्न करके स्वयं को सामान्य किया। लेकिन पार्टी में जब अपनी सौत को देखा तो उसका दिल खून के आँसू रो दिया। जमुना अच्छी तरह तैयार हुयी थी पर कमलनाथ का सारा ध्यान तो दूसरी औरत पर था। यहाँ तक कि केक काटते समय भी वह कमलनाथ के दूसरी ओर पत्नी की तरह खड़ी थी।
नशे में कमलनाथ का उस औरत पर गिर गिर जाना और वहाँ उपस्थित लोगों का जमुना को अजीब नजरों से देखना, भीतर तक छलनी कर गया उसे। फलस्वरूप पार्टी के बाद जोरदार लड़ाई हुयी दोनों के बीच। बस उसी रात कमलनाथ ने उसे उसके स्टडी रूम में यह कहते हुए बन्द कर दिया
"मैंने कहा था दिन में तुमसे कि दोबारा उलझी मुझसे तो ऐसी सजा दूँगा कि तुम सोच भी नहीं सकती, पर तुम बाज नहीं आयी। अब रहो इस दड़बे में।
अब यह दरवाजा एक साल बाद खुलेगा जिन्दा रही तो बाहर आ जाना नहीं तो क्रियाकर्म कर दूँगा।"
यकीन नहीं हुआ जमुना को कि कमलनाथ सच बोल रहा होगा। उस रात तो वह भी गुस्से और अपमान से तिलमिलाई उस कमरे में रोती रही, लेकिन जब दरवाजा अगले दिन भी नहीं खुला तो उसने जोर जोर से दरवाजा पीटा। छोटे से कुशाग्र की नजरें माँ को ढूँढ रही थीं। वह बहुत रो रहा था। सब उसे चुप कराने का प्रयास कर रहे थे लेकिन दरवाजा किसी ने नहीं खोला। एक तो वैसे भी जमुना को कोई पसंद नहीं करता था, दूसरे कमलनाथ के खिलाफ जाने की किसी में हिम्मत भी नहीं थी। कुछ दिनों में कुशाग्र भी रोते रोते थक गया। ऐसे में उसे सबसे अधिक सँभाला कमला ने। बहुत माफी माँगी जमुना ने, लेकिन कमलनाथ नहीं पिघला। सुविधा के नाम पर एक साथ में लगा हुआ बाथरूम था उस कमरे में।
पंखा और लाइट भी थे। गनीमत रही कि कमलनाथ ने कमरे की बिजली नहीं काटी। जब बाहर आने की सारी मिन्नतें बेकार साबित हुयीं तो जमुना ने लिखने पढ़ने में ध्यान लगाना प्रारंभ कर दिया। कभी कभी मौका पाकर कुशाग्र को खिड़की से दूर से दिखा देती कमला जमुना को, पर अब तो वह उसे नजर भर देखता भी नहीं था। शायद भूल गया था। जमुना उसे आवाज़ भी नहीं दे पाती कि अगर कोई सुन लेता तो यह क्षणिक नयन सुख भी नहीं नसीब होता।
साल होते होते जमुना ने कई किताबें लिख डालीं। बस छपना बाकी था, सामग्री भरपूर थी उसके पास।कमला से ही पता चला था कि वह दूसरी औरत कुछ महीने यहीं घर में रही फिर एक दिन लड़ाई करके चली गयी।
आज एक साल हो गया था। आज फिर कुशाग्र का जन्मदिन था। शाम को फिर पार्टी का आयोजन था। पार्टी से घंटा भर पहले जमुना को आजाद करके पार्टी के लिये तैयार होने का हुक्म मिला। जमुना ने कोई प्रतिरोध नहीं किया क्योंकि वह जान चुकी थी यह तरीका कमलनाथ पर कारगर नहीं है। वह अब खामोश ही रहने लगी थी। कमलनाथ इसे अपनी जीत समझता था। एक दिन जब कमलनाथ कुछ दिनो के लिये शहर से बाहर था तो वह भी चाचा चाची से मिलने का बहाना करके अपने पुराने कॉलेज पहुँच गयी। उसे वहाँ हाथों हाथ लिया गया। अपनी लिखी सारी सामग्री मित्रों की सहायता से छपने दी और तलाक के लिए कागजात भी तैयार करवा लिये। जब तक कमलनाथ की नींद खुलती तब तक तो 'जमुना की आत्मकथा' नामक पहली ही पुस्तक धूम मचा चुकी थी। रातों रात प्रसिद्धि पा चुकी जमुना के आगे अब कमलनाथ तलाक रोकने के लिये गिड़गिड़ा रहा था, परन्तु अब जमुना कमजोर नहीं थी कि झुक जाती। उसके पास लेखनी की ताकत थी। कहने की आवश्यकता नहीं कि कुशाग्र पर भी कानूनी तौर पर जमुना का अधिकार अधिक था।
