खुशियों का रंग

खुशियों का रंग

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ये एक छोटा सा किस्सा है या हूँ कहूं तो एक मीठा सा पल था जो हमेशा मुझसे बंधा रहेगा जब कभी भी मुझे याद आएगा मेरे चेहरे पे एक मीठी मुस्कराहट छा जाएगी।

हुआ कुछ यूँ होली से एक दिन पहले ऑफिस में होली उत्सव मनाकर मुझे और मेरे दोस्त को मेट्रो स्टेशन पहुँचाना था | (हमें मेट्रो स्टेशन जाने की इतनी जल्दी थी जैसे क्रिकेट वर्ल्ड कप का अंतिम ओवर हो और हम घर के बाहर दरवाजे पे घंटिया बजा रहे हो ) क्यूंकि पिछली होली पे हम दोनों २ घंटे टिकट काउंटर की कतार पे खड़े थे बस वही मंजर हमारे दिमाग में कोंध रहा था।

हमने अपने सहकर्मियों से अलविदा लिया और हम दोनों निकल पड़े अपने मंजिल की ओर। अपने बैग को सँभालते हुए ऑटो के धक्के खा कर के जैसे तैसे हम हुड्डा सिटी सेंटर पहुँचते है | वहा पहुँच के जो नजारा दिखता है मानोनोटेबंदी फिर वापस आ गयी हो " ! मेरी मंजिल थी उत्तमनगर ईस्ट मेरे दोस्त का स्टॉप था कश्मीरी गेट ,जहाँ से उसे अपने घर करनाल के लिए बस पकड़नी थी | टोकन (token ) की लाइन काफी लम्बी थी मुझसे पहले ५०-६० लोग कतार पे खड़े थे और मैं भी खड़ा हो गया कतार पे | ऐसा प्रतीत होरा था मानो अगले प्रधानमंत्री का चुनाव मतदान यही हो रहा हो | फिर धीरे-धीरे क़तार लम्बी होती गयी अब तो २०० - २५० लोग क़तार पे थे।

मेरा दोस्त के चहरे के हाव भाव और शरीर की बनावट से वो सरकारी ऑफिसर लगता है ,कड़क आवाज और चेहरे के हाव भाव मानो साक्षात् अमरीश पुरी जी गरज रहे हो।

वो टिकट काउंटर पे मेट्रो कर्मचारी से कड़क आवाज में कहता है "अरे ! भाई जल्दी कर कतार सड़क तक पहुंच गयी है" ! टिकट कर्मचारी दब्बी आवाज में "यस सर जल्दी कर रहा हूँ " ! मेरा दोस्त वापस आकर कहता है भाई टिकट काउंटर और लोगो को नियंत्रण (manage ) कर के ऐसा महसूस हो रहा है जैसे वो भी सरकारी कर्मचारी है। कई लोग कतार के बीच में घुसाने की कोशिश कर रहे थे, मैं उन्हें कतार के बीच में घुसने से मन कर रहा था और लोगो से भी अनुरोध कर रहा था वो भी किसी दूसरे का टोकन न ले। ऐसे ही नोंक झोंक में बीस तीस मिनट बीत गया जो अब तक आपने पढ़ा था वो बस एक बिना रंग के चलचित्र थे अब असली रंगीन पिक्चर यहाँ से शुरू होती है क्योंकि पिक्चर में एंट्री होने वाली है एक खूबसरत लड़की की।

वो लड़की आती है सीधे चलकर हमारे काउंटर वाली टोकन खिड़की पे जा खड़ी होती है लेकिन मेट्रो कर्मी उससे टोकन नहीं देता है अब वो क़तार पे भी नहीं लग सकती क्यूंकि अब तक २०० से ३०० लोग क़तार में लग चुके थे। उसे टोकन खिड़की पे ही १० से २० मिनट हो चुके थे और वो भी लोगो से अनुरोध कर कर के थक चुकी थी मजाल है जो कोई उसका टोकन ले ले। उस लड़की के अलावा भी बहुत लोग थे जो बीच में आकर लोगो से टोकन के लिए अनुरोध कर रहे थे अब इन्हे कौन समझाए सबको मना कर दिया। जैसे जैसे समय चलता गया लोगो की भीड़ का बढ़ना जारी थी और दूसरी तरफ अब में भी टोकन खिड़की के काफी नजदीक पहुँच गया था बमुश्किल आठ दस लोग ही मेरे आगे क़तार पे खड़े थे। मैंने जब उस लड़की की चेहरे की तरफ देखा तो उसके चेहरे से ऐसा प्रतीत हो रहा था वो काफी परेशान है उससे बहुत आवश्यकता है टोकन की। उसी समय एक हट्टा कट्टा नौजवान मेरे पास आ गया और कहना लगा भैया मेरी भी टोकन ले लीजियेगा। मेने साफ़ मना कर दिया और सबको साफ़ साफ़ कह दिया कोई भी किसी अन्य लोगो का टोकन नहीं लेगा ये सब सुनकर वो लड़की गुस्से से मेरी तरफ देखती है।

मेरे आगे क़तार पे खड़े लड़को से अनुरोध करती है कोई तो उसे भी टोकन दिलवा दे साथ में १०० रपये रखने को कह रही थी परन्तु कोई भी इसके लिए तैयार नहीं था अब वो काफी दुखी लग रही थी | सच कहूं तो अब से देख के मुझे भी काफी बुरा लग रहा था क्यूंकि अँधेरा भी काफी हो गया था मझे ऐसा लग रहा था मानो उससे काफी दूर जाना हो। उसने मुझसे टोकन के लिए नहीं कहा भला कहती भी कैसे मैं तो सबको टोकन के लिए मना जो कर रहा था। मैं टोकन खिड़की

अब मेरा नम्बर था टोकन का और मैंने लिए ३ टोकन ! एक मेरे लिए दूसरा मेरे दोस्त के लिए और जो अंतिम टोकन था ? अंतिम टोकन ! बताओ किस के लिए होगा ? "जी हाँ सही पकडे हो " वो तीसरा टोकन उस लड़की के लिए था। मैंने उससे चुपके से कह| वो ऍका एक अच्चम्भित हो गयी ! जो लड़का सबको मन कर रहा था टोकन लेने से वो अचानक बिना बोले उसका ले लेता है।

उसके चेहरे पे खुशियों का भाव उमड़ पड़ा था जिस में साफ़ देख सकता था। उसने १०० रुपये निकाले और हमें देने लगी लेकिन हम दोनों ने रुपये लेने से मन कर दिया लेकिन अब वो भी जिद्द पे अड़ने लगी ! कहती है अगर आप १०० रुपये नहीं लेने चाहते तो टोकन के पैसे ले लीजिये उसके पास छट्टे नहीं थे वो paytm के लिए कहने लगी फिर। .उसके चेहरे की खशी को देख के मैं ये कह सकता हूँ की इस होली मैंने किसी के चेहरे पे खुशियों का गुलाल लगाया है।

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.ा आपका टोकन ले लिया


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