ख़ुशी की तलाश
ख़ुशी की तलाश
हमनेअपना यह क्या हाल बना रखा है।
हम स्वयं कि ख़़ु़ुशी के बारे में कभी सोचते भी नहींं।
देश दुनियां कि चिंता में सेमिनारें आयोजित करते हैं।
देश दुनियां का विकास भी जरूरी है।
हम सब चाहते हैं कि सबका साथ सबका विकास हों।
परन्तु हमें राजनैतिकआध्यात्मिकता से ऊपर
उठकर स्वयं को खुश रखने के
नये तरीक़े तलाशने चाहिए।
जबकि हम स्वयं सांसारिक जीवन में दुुःखी हैं।
तो दुसरे लोगों को कैसे ख़ुश कर सकते हैं।
पहले क्रियाआप कमाईये।
फिंरऔरों को फरमाइयें।
अर्थात पहले हम स्वयं सांसारिक जीवन में खुशियां तलाशें।
बाद में दुसरो को खुश रहने के तरीके बतायेगा।
यदि हम स्वयं दुखी हैं।
तो यह झुुुठी शान दिखावे
कि सेमिनारें कभी आयोजित नहीं करें।
क्योंकि इसका कोई मतलब नहीं निकल सकता है।
भावार्थ:स्वयं मरे वगैर कभी स्वर्ग नहीं जा सकते हैं।
