खुशी अनिवार्य है
खुशी अनिवार्य है
खुशी जीवन का अनिवार्य तत्व है।
गीता का अध्यात्म विज्ञान (राजयोग) कहता है कि सदा हंसते रहो प्रसन्न रहो तो योग और भी ज्यादा अच्छा लगेगा। योग से खुशी और खुशी से योग का गहरा सम्बन्ध है। खुशी रहने से योग सहज होता है। चिकित्सा विज्ञान कहता है कि हंसने से, खुश रहने से आपके बायोलॉजिकल सिस्टम में ऐसे हार्मोन्स (एंडोर्फिन आदि) का स्राव होता है जो आपको ताजगी व प्रसन्नता का अनुभव देते हैं। ऐसे हार्मोन्स के स्राव से आप शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ रहते हैं। व्यावहारिक विज्ञान कहता है कि प्रसन्नता ही जीवन जीने का पॉज़िटिव नेचुरल तरीका है। प्रसन्नता के प्रकम्मपन भी संक्रामक होते हैं। खुश रहने से आप दूसरों के जीवन में आशा की किरण बिखेरते हो। अर्थात खुश रहने से बिना ही विशेष प्रयास किए आप दूसरों की उदासी दूर करने में सहयोगी बनते हैं। शरीर शास्त्र के अन्तर्गत पतंजलि योगा विज्ञान कहता है कि संतुलित व्यायाम, आहार, नींद व परमात्मा के ध्यान से आपकी प्रसन्नता अक्षुण्ण (निरन्तर कायम) बनी रहती है। इसलिए खुशी बनी महत्वपूर्ण चीज है इसे बनाए रखिए। कभी गुरु गम्भीर रहिए तो कभी हंसमुख भी रहिए। कभी गुरु गम्भीर रह कर अलौकिक अनुभवों में मग्न रहीए। वह भी प्रक्रिया में आपकी प्रसन्नता को बढ़ाएगा ही। कभी मूर्ख अज्ञानी और भोला बन कर मुस्करा दीजिए। कभी बिना ही बात के ड्रामा की विचित्रता को देखकर ही मुस्करा दीजिए। पूरी प्रकृति में कितना बहुत कुछ है जिसे देखकर आपके चेहरे पर मुस्कान आ सकती है। ऐसी मूर्खता या ऐसा भोलापन भी अच्छा जिससे मुख मण्डल पर खुशी का झरना बहने लगे। स्माइल प्लीज। हंस दो जरा।
